छठ पूजा (Chhath Puja) के दूसरे दिन की शुरुआत खरना (Kharna) से हुई। खरना का मतलब है शुद्धीकरण। मंगलवार को खरना के साथ ही 36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत की शुरुआत हो जाएगी। इसके बाद बुधवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार यह कार्तिक मास की पंचमी को मनाया जाता है। आज के दिन गुण की खीर बनाई जाती है और उसे ही प्रसाद के तौर पर ग्रहण किया जाता है। इस में फल भी शामिल होता है। महिलाएं गोधूलि बेला को अर्घ्य देंगी।
36 घंटे का शुरू हो जाएगा कठिन व्रत
उदीयमान सूर्य को 11 नवंबर को सुबह अर्घ्य देने के बाद व्रतियां व्रत का पारण करेंगी। इसके साथ छठ पूजा संपन्न हो जाएगी। चार दिन घाटों पर रौशनी रहती है। भक्त मां की भक्ती में वीलीन रहते हैं। छठ पूजा के उपवास में खरना के दिन पूरे दिन उपवास रखा जाता है। इसमें 36 घंटे के उपवास के दौरान न कुछ खाया जाता है और न ही पानी पिया जाता है।
शाम को छठवर्ती के घरों में गुड़, अरवा चावल व दूध से मिश्रित रसिया बनाए जाते हैं। रसिया को केले के पत्ते में मिट्टी के ढकनी में रखकर मां षष्ठी को भोग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि मां षष्ठी एकांत व शांत रहने पर ही भोग ग्रहण करती हैं। छठ व्रत के दूसरे दिन यानी बुधवार को खरना में शाम में मिट्टी के चूल्हे में आम की लकड़ी से गन्ने की रस या गुड़ के साथ अरवा चावल मिला कर खीर बनाया जाएगा।
खीर के साथ घी चुपड़ी रोटी और कटे हुए फलों का प्रसाद भगवान सूर्य को अर्पित किया जाएगा। दूध और गंगा जल से प्रसाद में अर्घ्य देने के बाद व्रतियां इसे ग्रहण करेंगी
यह हैं खरना के नियम
इस दिन छठ व्रती सुबह स्नान करके साफ़ सुथरे कपड़े पहनती हैं। और फिर नाक से मांग तक सिंदूर लगाती हैं। इस दिन व्रती दिन भर उपवास रखती हैं और शाम के समय चूल्हे पर आम की लकड़ी से साठी के चावल और गुड़ की खीर बनाकर प्रसाद तैयार करती हैं। फिर पूजा करने के बाद व्रती इस प्रसाद को ग्रहण करते हैं और उसके बाद घर के बाकी सदस्य उस प्रसाद को ग्रहण करते हैं। इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद व्रती 36 घंटे का निर्जला उपवास रखते हैं।
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