अदालत में जूता फेंकने की घटना पर CJI बी. आर. गवई बोले, “हम स्तब्ध थे, लेकिन अब यह एक विस्मृत अध्याय है”

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नई दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही के दौरान हुई जूता फेंकने की घटना पर भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) बी. आर. गवई ने कहा कि वह और उनके साथ बैठे न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन उस वक्त स्तब्ध रह गए थे। हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अब यह घटना उनके लिए “एक विस्मृत अध्याय” बन चुकी है।

यह घटना 6 अक्टूबर को तब हुई थी जब प्रधान न्यायाधीश गवई की अध्यक्षता वाली पीठ वकीलों द्वारा उल्लेख किए गए मामलों की सुनवाई कर रही थी। इसी दौरान 71 वर्षीय वकील राकेश किशोर ने अचानक अपना जूता उतारकर न्यायाधीशों की ओर फेंकने का प्रयास किया। हालांकि, जूता न्यायाधीशों तक नहीं पहुंच सका और कोर्ट स्टाफ ने तुरंत स्थिति पर नियंत्रण पा लिया।

घटना पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों और वकीलों की कड़ी प्रतिक्रिया

यह मामला गुरुवार को तब फिर उठा जब अदालत वनशक्ति मामले से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इस दौरान CJI गवई ने कहा, “सोमवार को जो कुछ हुआ, उससे मैं और मेरे साथी न्यायमूर्ति चंद्रन बेहद स्तब्ध थे; हमारे लिए यह एक विस्मृत अध्याय है।”

पीठ में शामिल न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां ने हालांकि इस घटना पर अलग मत व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि यह “सुप्रीम कोर्ट का अपमान” है और इसके लिए उचित कार्रवाई की जानी चाहिए। उन्होंने टिप्पणी की, “प्रधान न्यायाधीश पर जूता फेंकने का प्रयास मजाक नहीं है।”

सॉलिसिटर जनरल और वरिष्ठ वकीलों ने जताई नाराजगी

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस कृत्य को “अक्षम्य” बताया और प्रधान न्यायाधीश की उदारता की सराहना की।

अदालत में मौजूद वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन से सुनवाई को आगे बढ़ाने तथा इस चौंकाने वाले प्रकरण पर आगे चर्चा न करने को कहा।

वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने भी इस मामले पर कोई और चर्चा न करने का सुझाव दिया। इसके बाद प्रधान न्यायाधीश ने दोहराया, “हमारे लिए यह एक विस्मृत अध्याय है,”
और फिर पीठ ने संबंधित मामले की सुनवाई आगे बढ़ाई।

इस घटना की देशभर में कड़ी निंदा हुई थी, जिसे अदालत की गरिमा के खिलाफ माना गया।