Punjab Congress में जारी विवादों के बीच पार्टी के पंजाब प्रभारी हरीश रावत ने पद छोड़ने की पेशकश की है। उन्होंने एक के बाद एक कई ट्वीट कर पार्टी आलाकमान को उन्हें उत्तराखंड(Uttarakhand) में समय देने के लिए पद मुक्त करने की मांग की है। उन्होंने कहा है कि मैं उत्तराखंड को पूर्ण रूप से समर्पित रह सकूं। इसलिए पंजाब में जो मेरा वर्तमान दायित्व है, उस दायित्व से मुझे अब मुक्त कर दिया जाय। आज्ञा पार्टी नेतृत्व की, विनती हरीश रावत की। “जय कांग्रेस पार्टी”।
रावत ने अन्य ट्वीट में लिखा है कि मैं आज एक बड़ी उपापोह से उबर पाया हूंँ। एक तरफ जन्मभूमि के लिए मेरा कर्तव्य है और दूसरी तरफ कर्म भूमि पंजाब के लिए मेरी सेवाएं हैं, स्थितियां जटिलत्तर होती जा रही हैं। क्योंकि ज्यौं-जयौं चुनाव आएंगे, दोनों जगह व्यक्ति को पूर्ण समय देना पड़ेगा। मैं, पंजाब_कांग्रेस और पंजाब के लोगों का बहुत आभारी हूंँ कि उन्होंने मुझे निरंतर आशीर्वाद और नैतिक समर्थन दिया। संतों, गुरुओं की भूमि, नानक देव जी व गुरु गोविंद सिंह जी की भूमि से मेरा गहरा भावात्मक लगाव है।मैंने निश्चय किया है कि, लीडरशिप से प्रार्थना करूं कि अगले कुछ महीने उत्तराखंड के लिए पूर्ण समर्पित रहूं।
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पार्टी में जारी विवादों के बीच राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता अमरिंदर सिहं ने कांग्रेस छोड़ने का ऐलान कर दिया है। साल 2002 से 2007 और फिर मार्च 2017 से 18 सितंबर 2021 तक दो बार पंजाब के मुख्यमंत्री रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी माने जाते हैं। पंजाब कांग्रेस के इतिहास को देंखे तो पूर्व मुख्यमंत्री सरदार बेअंत सिंह के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह ही थे जिन्होंने पंजाब की राजनीति में कांग्रेस की पैठ बनाये रखी।
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पंजाब की राजनीति पर गौर करें तो इस समय बीजेपी और अकाली दल में छत्तीस का आंकड़ा चल रहा है। कृषि कानून के खिलाफ अकाली दल एनडीए से बाहर हो गई और सुखबीर बादल की पत्नी हरसिमरत कौर ने मोदी मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया। वहीं पंजाब बीजेपी में इस समय कोई बड़ा चेहरा भी नहीं है।
अकाली दल से अलग होने के बाद पंजाब में बीजेपी सबसे कमजोर स्थिति में आ गई है। ऐसे में कैप्टन अमरिंदर सिंह की नई पार्टी से भारतीय जनता पार्टी को भी बहुत उम्मीदें हैं। लेकिन कैप्टन और बीजेपी के बीच कृषि कानूनों को लेकर पेंच फंसा हुआ है।
वैसे कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इशारे-इशारे में यह कह भी दिया है कि उन्हें बीजेपी के साथ जाने में कोई गुरेज नहीं है बशर्ते बीजेपी किसान आंदोलन और कृषि कानूनों का कोई शांतिपूर्ण हल खोज ले।
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