जम्मू-कश्मीर में गुस्साई भीड़ के खिलाफ सुरक्षाबलों द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली पैलेट गन पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कहा कि वह भीड़ को काबू करने के लिए पैलेट गन के बजाय किसी अन्य प्रभावी माध्यम पर विचार क्यों नहीं करती। कोर्ट ने कहा कि सरकार को पैलेट गन के बजाय किसी और हल्के हथियार का उपयोग करना चाहिए क्योंकि यहां बात जिंदगी और मौत से जुड़ी हुई है। हालांकि केंद्र सरकार ने पैलेट गन के उपयोग का बचाव करते हुए कहा कि यहां सवाल देश की संप्रभुता और अखंडता की है जो इस वक्त दांव पर लगी हुई है।

चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अगुवाई वाली बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए चिंता जाहिर की कि कश्मीर घाटी में हो रहे विरोध प्रदर्शन में शामिल बच्चों को भी पैलेट गन से चोट का सामना करना पड़ रहा है। कोर्ट ने पूछा कि अगर विरोध प्रदर्शन और पथ्थरबाजी में बच्चें भी शामिल हैं तो क्या उन्होंने बच्चों के माता-पिता से बात की और क्या उनके खिलाफ कोई कार्यवाई की गई। सरकार की पैरवी कर रहे अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से सुप्रीम कोर्ट ने विरोध प्रदर्शनों के दौरान सरकार की ओर से उठाए गए प्रभावी कदमों से जुड़ा विस्तृत जवाब दाखिल करने को कहा है।

कोर्ट ने कहा कि शांतिपूर्ण विरोध करने का अधिकार सभी को है। कोर्ट के इस तर्क पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि पैलेट गन के प्रयोग से पहले एक सही स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल का पालन किया जाता है। जिसकी उपयोग करने का निर्देश मजिस्ट्रेट भी देते हैं। देश की अखंडता और संप्रभुता दांव पर है और इसे बचाने के लिए पैलेट गन ही अंतिम और उचित उपाय है।

सरकार का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल ने कहा भीड़ पत्थर और तेज धार वाली वस्तुओं का प्रयेाग करती है। हिंसा में लगभग 3777 सुरक्षा कर्मियों भी घायल हुए हैं। सरकार ने भी पूछा है कि सुरक्षाबलों क्या करना चाहिए क्यों कि यह शांतिपूर्ण स्थिति नहीं है। आठ जुलाई 2016 से अगले 32 दिनों में सीआरपीएफ पर करीब 252 हमले हुए। जिसके बाद फिलहाल, मामले की सुनवाई को 10 अप्रैल तक के लिए टाल दिया गया है।

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