तालिबान (Taliban) द्वारा अफगानिस्तान (Afghanistan) पर 15 अगस्त 2021 के कब्जे के बाद संगठन की चर्चा होने लगी। इससे पहले तालिबान की कोई बड़ी और आतंकी संगठन के अलावा खास पहचान नहीं थी। किसी भी देश में लोकतांत्रिक सरकार को खदेड़ना और फिर पूरे देश पर राज करना यह कहानी किसी भी आम नागरिक के गले से नहीं उतरती है। इसलिए तलिबान द्वरा अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद गूगल पर लोग सर्च करने लगे What is Taliban इसके साथ ही यह 2021 में टॉप गूगल सर्च में आ गया।
Taliban का सपना

तालिबान कौन है? कहां से आया? अफगानिस्तान पर कब्जा क्यों किया? इन सभी सवालों को लेकर उलझी हुई जनता गूगल पर पहुंची और जवाब खोजने लगी। इसी कड़ी में हम भी जवाब देते हुए यहां पर बता रहे हैं कि आखिर कौन है तालिबान? या गूगल सर्च की जुबान में कहें तो What is Taliban?
अफगानिस्तान में कई तरह की जुबान बोली जाती है। इसी में पश्तो और दारी है। पश्तो में तालिबान को छात्र कहते हैं। नब्बे के दशक की शुरुआती समय में जब सोवियत संघ (अब रूस) अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुला रहा था तो उसी दौरान पाकिस्तान में छात्रों के समूह मतलब तालिबान ने पूरे देश पर राज करने का सपना देखा और खुद को उस काबिल बनाने की तैयारी शुरू कर दी। सोवियत संघ के जाने के बाद तालिबान धीरे धीरे पनपने लगा।
तालिबान पूरे देश में अपनी भाषा, अपना कानून, अपना पहनावा, खान पान और उन सभी बातों को लागू करना चाहता जिससे वो प्रभावित था। साफ शब्दों में कहें तो वह शरिया कानून लागू करना चाहता था। यह तभी संभव था जब देश की सत्ता उसके हाथ में हो।
Taliban का वादा

तालिबान की इस सोच को पश्तो आंदोलन से बल मिला जो कि सबसे पहले धार्मिक मदरसों में उभरी। इस आंदोलन के लिए सऊदी अरब ने फंडंगि की थी। इस आंदोलन में सुन्नी इस्लाम की कट्टर मान्यताओं का प्रचार किया जाता था।
अफगानिस्तान की जनता ब्रितानी (अब ब्रिटेन), ब्रिटेन, सोवियत संघ, सय्यद मोहम्मद नजीबुल्लाह के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट सरकार और मुजाहिदीनों के राज से तंग आ चुकी थी। जनता का दम घुटने लगा था। उसे अब कोई ऐसा शासक चाहिए था जो इस लड़ाई से इतर नया जीवन दे सके। तालिबान अफगानियों को यह सपना दिखाने में कार गार रहा।
जल्दी ही तालिबानी अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के बीच फैले पश्तून इलाक़े में शांति और सुरक्षा की स्थापना के साथ-साथ शरिया क़ानून के कट्टरपंथी संस्करण को लागू करने का वादा करने लगे था।
Taliban का छलावा

जनता से अच्छे जीवन का वादा करते हुए दक्षिण पश्चि अफगानिस्तान पर अपना प्रभाव बढ़ाते चला गया। सितंबर माह के 1995 में तालिबान ने ईरान सीमा से लगे हेरात प्रांत पर कब्जा कर लिया। इसके ठीक एक साल बाद तालिबान ने देश की राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया। शुरुआत में अफगान की जनता ने सड़कें, रोजगार पर ध्यान देने वाले तालिबान का स्वागत किया। पर तालिबान के शरिया कानून लागू करने के बाद वहां के हालात काफी खराब हो।
तालिबान के आतंक से जनता को मुक्त कराने के लिए अमेरिका ने 2001 में अपनी सेना भेजी। 20 साल तक लड़ने के बाद अमेरिका ने 2021 अगस्त माह में वहां से अपनी सेना को बुलाने का ऐलान किया। 11 सितंबर को अमेरिकी सेना जाने के बाद देश में एक ऐसे तालिबान का फिर जन्म हुआ जिसके साए तक से जनता दूर जाना चाहती है।
Taliban का अंत कब?

बता दें कि अफगानिस्तान एक तरह से केंद्रीय संचार लिंक है। मतलब इस देश पर राज करने वाला, एशियाई देशों, अरब देशों और पश्चिमी देशों पर आसानी से नजर रख सकता है। यही कारण है कि इसे पाने के लिए हर देश ने कोशिश की पर वे मिट्टी में मिल गए फिर इसे नाम दिया गया सामराज्यों का कब्रिस्तान। दुनिया अब तालिबान के राज को देख रही आखिर वे कब तक सामराज्यों के कब्रिस्तान पर राज करते हैं?
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