UNHRC: भारत सरकार के नागरिकता संशोधन कानून को लेकर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर जब भी कोई सवाल खड़ा हो रहा है। भारत उसका बेबाकी से जवाब दे रहा है। चाहें वो UN का मंच हो या कोई और अंतर्राष्ट्रीय मंच भारत इसका जोरदार जवाब दे रहा है। दरअसल, दुनिया के कुछ सीएए को मुद्दा बना कर भारत को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में जब कुछ देशों ने सीएए का मुद्दा उठाया तो भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार कापूर ने इन देशों को विस्तार से भारत का पक्ष समझाया।
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि सीएए उन कानूनों की तरह हैं जो अलग-अलग देशों में नागरिकता के लिए मानदंड तैयार करते हैं। इस कानून में परिभाषित मानदंड भारत और उसके पड़ोस के लिए विशिष्ट है और ऐतिहासिक संदर्भ और वर्तमान की जमीनी हकीकत को ध्यान में रखता है। जिनेवा में चल रही मानवाधिकार समीक्षा में कई सदस्य देशों ने भारत में सीएए के मुद्दें को लेकर चिंता जताई थी।
UNHRC: धार्मिक आधार पर पीड़ित लोगों के लिए CAA सही- तुषार मेहता
सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि इस कानून का उद्देश्य भारत के पड़ोसी देशों अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के 6 अल्पसंख्यक समुदाय हिंदू, सिख, बौद्ध, पारसी, जैन और ईसाई लोगों को धार्मिक उत्पीड़न के आधार पर भारतीय नागरिकता मिलने में सहायता देना है। तुषार मेहता ने कहा कि ये कानून पड़ोसी देशों के धार्मिक आधार पर पीड़ित हुए लोगों को सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन जीने में मदद करेगा। यह अधिनियम न तो किसी भारतीय नागरिक की नागरिकता छीनेगा और न किसी भी धर्म से संबंधित किसी भी विदेशी को भारतयी नागरिकता प्राप्त करने की मौजूदा प्रक्रिया में संशोधन करता है।
UNHRC: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी दिया जवाब
संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों द्वारा उठाए गए मुद्दों पर जवाब देते हुए सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की गांरटी देता है। उन्होंने कहा कि किसी भी अन्य स्वतंत्रता की तरह, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रकृति में पूर्ण नहीं है और भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, दूसरे देशों के साथ संबंधों, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या उसके हित में उचित प्रतिबंधों के अधीन है।
मेहता ने कहा कि इन प्रतिबंधों की कल्पना राष्ट्रीय और सार्वजनिक हितों की रक्षा के लिए की गई है। इन्हें काफी हद तक पूरा करने की आवश्यकता है। मेहता ने कहा कि उचित प्रतिबंध लगाने से हेट स्पीच और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को विनियमित करने में मदद मिलती है।
बता दें कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की यूनिवर्सल पीरियॉडिक रिव्यू एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों को बाकी सदस्य देशों के मानवाधिकार रिकॉर्ड की समीक्षा करने का अवसर दिया जाता है। ये समूह 7 से 18 नवंबर के दौरान कई अन्य देशों के रिकॉर्ड की भी जांच करेगा।
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