जो बाइडेन सरकार ने अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुला लिया है। यह खबर वहां की महिलाओं के लिए सबसे अधिक दु:ख विदारक रही। 1980 के बाद से वस्तु की तहर जिंदगी गुजार रही महिलाओं के लिए अमेरिका उम्मीद की किरण बनकर आया था लेकिन एक बार फिर अफगानी महिलाओं की जिंदगी से रौशनी दूर जा रही है।

विश्व की राजधानी अमेरिकी ने अप्रैल माह में जैसे ही अपनी सेना को वापस बुलाने का ऐलान किया उसके फौरन बादी ही अफगानिस्तान का आतंकी संगठन तालिबान ने वहां के 50 से अधिक जिलों पर कब्जा कर लिया। कब्जे के साथ ही इस्लामिक कानून को लागू कर दिया।

तालिबानी कानून के अनुसार, कोई महिला अकेले घर के बाहर नहीं जाएगी, शिक्षा से रिस्ता खत्म करना होगा, फैशन से दूरी बनानी होगी। कहते हैं जब किसी देश में सत्ता में फेर बदल होता है तो महिलाओं को सबसे पहले शिकार बनाया जाता है। इस कहावत की तस्वीर अफगानिस्तान में दिख रही है।

तालिबानी कानून महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों के लिए भी सख्त है। अब वहां के पुरुष दाढ़ी नहीं बना सकते हैं। लेकिन सबसे अधिक कहर तो महिलाओं पर बरपा है। तालिबानी कानून के अनुसार महिलाएं अब सिर्फ वस्तु हैं। उन्हें सांस लेने की इजाजत होगी लेकिन फैसला तालिबान करेगा कब तक लेनी है।

2001 में अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान आने से पहले तालिबान ने पूरे अफगानिस्तान में जंगल राज कायम कर दिया था और नियमों का उल्लंघन करने वालों को जलील किया जाता था। महिलाओं को सड़कों पर मारा जाता था, और तालिबान कि इस्लामी पुलिस महिलाओं पर सख्ती से तालिबानी कानून लागू करती थी।

उसी अंधेरे में महिलाएं फिर जा रही हैं। बता दें कि तालिबान धीरे-धीरे पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा करने में जुट गया है। कई जिलों में रंगीन ब्यूटी पार्लर को बंद करा दिया है। पतंगों से सजी दुकानों पर ताला लटक रहा है।

पर सवाल यह है कि, वक्त के साथ साथ दुनिया आगे जा रही है, महिलाएं पीएम, राष्ट्रपति का ओहदा संभाल रही हैं लेकिन अफगानिस्तान इतना पीछे क्यों है। क्या हमेशा से देश की तस्वीर ऐसी ही थी। जवाब है नहीं, कभी नहीं, अफगानिस्तान कभी भी ऐसा नहीं था। एक वक्त था जब अफगानी महिलाएं दुनिया भर में लोगों के लिए फैशन ऑइकॉन थी।

तो यह सब कुछ अचानक क्यों बदल गया ? आखिर क्यों महिलाएं यहां पर महज वस्तु बनकर रह गई हैं ?

भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश महिलाओं के लिए आज आधुनिक बने हैं। लेकिन अफगानिस्तान 1960 में ही आधुनिक बन गया था। यहां की महिलाओं के पास आजादी थी। अपने मन से कपड़े पहनती थी। पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती थी। लेकिन यह अधिक समय तक नहीं चल सका 1990 से धीरे धीरे देश में आतंकी संगठन तालिबान का कहर बढ़ता गया और महिलाओं पर पाबंदियां होती गईं। साल 1996 के बाद सड़क पर पुरुष ही दिखने लगे क्योंकि महिलाओं को घर में कैद कर दिया गया।

तालिबान की कैद से महिलाओं को छुड़ाने के लिए अमेरिका साल 2001 से कोशिश कर रहा था लेकिन यह कभी न खत्म होने वाला युद्ध था। यही कारण है कि बाइडेन ने अपनी सेना को वापस बुला लिया और वहां कि महिलाओं की जिंदगी से सबेरा शब्द हमेश के लिए खत्म हो गया।

यहां हम आपको 80 के दशक की अफगानी महिलाओं से रुबरु करा रहें हैं।

यह तस्वीर 1962 में काबुल विश्वविद्यालय में ली गई थी। तस्वीर में दो मेडिकल छात्राएं अपनी प्रोफेसर से बात कर रही हैं। उस समय महिलाएं घर के साथ साथ बाहर भी काम करती थी। अफगान के समाज में महिलाओं की अहम भूमिका थी।

इस तस्वीर को साल 1962 में कैद किया गया था। तस्वीर में साफ दिख रहा है कि यहां पर महिला अपनी बेटी के साथ पार्क में तस्वीर खींच रही है।

यह तस्वीर साल 1981 की है। इस दौर में महिलाओँ का पुरुषों के साथ उठना बैठना आम बात थी लेकिन 10 साल के सोवियत हस्तक्षेप के खत्म होने के बाद देश में गृहयुद्ध छिड़ गया जिसके बाद तालिबान ने यहां अपनी पकड़ मजबूत कर ली। इस तरह की तमाम तस्वीरें हैं जिसमें दिखता है कि अफगानी महिलाएं अब वस्तु बन गई हैं।

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