विश्वभर में लगातार बढ़ रहे ऊर्जा दामों के बीच बीते सोमवार को ‘पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन’ प्लस- OPEC + (ओपेक+) ने कच्चे तेल के उत्पादन में 1,00,000 बैरल प्रतिदिन की कटौती करने का निर्णय लिया है. उत्पादन में कटौती वैश्विक तौर पर होने वाली कच्चे तेल की आपूर्ति का 0.1 प्रतिशत के बराबर है.
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल 95.07 डॉलर प्रति बैरल
इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल 95.07 डॉलर प्रति बैरल के आसपास चल रहा है. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, 2023 में ईंधन की वैश्विक मांग पूर्व-महामारी के स्तर से ऊपर उठने की उम्मीद है.
ओपेक प्लस (OPEC +) संगठन के देशों ने अक्टूबर महीने में कच्चे तेल के उत्पादन में 1 लाख बैरल की कटौती के बाद पहले से ही कच्चे तेल के दामों मे देखी जा रही तेजी के और ज्यादा बढ़ने के आसार हैं.
पिछले हफ्ते ही ओपेक+ ने वैश्विक स्तर पर बाजार की मांग के लिए अपने पूर्वानुमान को 9,00,000 बैरल प्रतिदिन से घटाकर 4,00,000 बैरल प्रतिदिन तक संशोधित किया था.
अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश और ओपेक+ (OPEC +) का प्रमुख सदस्य रूस इस समय उत्पादन में कटौती के समर्थन के पक्ष में नहीं है.
कोरोना से उभर रही है बड़ी अर्थव्यवस्थाएं
अप्रैल 2020 में कच्चे तेल के दाम 18 साल में सबसे कम 20 डॉलर प्रति बैरल तक चले गए थे. लेकिन कोरोना महामारी से उबर रही बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के चलते तेल के दामों में फिर से तेजी देखने को मिल रही है.
2022 के फरवरी में, यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के कारण अप्रैल तक तेल की कीमतों में तेजी से वृद्धि देखने को मिली थी. तेल की कीमतें जनवरी से बढ़ने लगीं और मार्च की शुरुआत में $140 प्रति बैरल तक चली गई थी. इसके बाद जुलाई से कीमतों में गिरावट का दौर शुरू हुआ.
भारत और कच्चा तेल
भारत के लिए कच्चे तेल की कीमतों में प्रति बैरल 1 डॉलर की बढ़ोतरी उसके चालू खाते के घाटे पर करीब 1 अरब डॉलर (8,000 करोड़ रुपये) का प्रभाव पड़ता है.
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है, और 2021-22 (वित्त वर्ष 2021-22) तक कच्चे तेल की अपनी कुल मांग का 85 फीसदी आयात से पूरा करता है.
तेल मंत्रालय के पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण प्रकोष्ठ (PPAC) के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2022 में भारत का आयात बिल लगभग दोगुना होकर 119.2 बिलियन डॉलर हो गया. जो 2020-21 में 62.2 बिलियन डॉलर से लगभग दोगुना है.
पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण प्रकोष्ठ के अनुसार, भारत ने 2021-22 में 212.2 मिलियन टन कच्चे तेल का आयात किया, जो पिछले वर्ष के 196.5 मिलियन टन से ज्यादा है.
भारत ने 2022 वित्तीय वर्ष में 202.7 मिलियन टन पेट्रोलियम उत्पादों की खपत की, जो पिछले वर्ष में 194.3 मिलियन टन थी. इसी तरह, देश ने 2021-22 में आयातित 32 बिलियन क्यूबिक मीटर एलएनजी पर 11.9 बिलियन डॉलर खर्च किए, वहीं पिछले वर्ष 33 बीसीएम गैस के आयात पर 7.9 बिलियन डॉलर खर्च किए गए थे.
कच्चे तेल के दामों में बढ़ोतरी से भारत की सरकारी तेल कंपनियों पर पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ाने का दबाव बनेगा. इससे पहले रूस और यूक्रेन युद्ध के चलते जब कच्चे तेल के दाम बढ़े थे तो सरकारी तेल कंपनियों ने पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ाने का निर्णय लिया था. लेकिन अब कई महीनों से भारत में तेल के दामों में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है.
घरेलू उत्पादन में लगातार गिरावट के कारण भारत की आयात निर्भरता बढ़ी है.
भविष्य की तेल जरूरतों का पुनर्मूल्यांकन कर रही है केंद्र सरकार
द इकोनॉमिक टाइम्स (ईटी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार ने तेल मंत्रालय से देश की भविष्य में ईंधन की मांग और शोधन क्षमता की जरूरतों पर एक रिपोर्ट तैयार करने को कहा है.
भारत में, पेट्रोल की मांग पूर्व-महामारी के स्तर से 11 प्रतिशत अधिक है. डीजल की मांग महामारी से पहले के स्तर से महज 2 फीसदी कम है. भारत ईंधन का शुद्ध निर्यातक है, लेकिन बढ़ती मांग ने आयात को बढ़ा दिया है.
ओपेक ने यह भी कहा है कि वह बाजार की जरूरत के अनुसार उत्पादन को समायोजित करने के लिये पांच अक्टूबर को होने वाली बैठक का आयोजन पहले कर सकता है.पश्चिम में आर्थिक मंदी और मंदी की आशंका से बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड ऑयल जून के 120 डॉलर से गिरकर 95 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया है.
‘पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन प्लस’ (ओपेक+)
ओपेक एक स्थायी, अंतर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना 5 देशों (ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब और वेनेजुएला) द्वारा सितंबर 1960 में बगदाद सम्मेलन में की गई थी. ओपेक का मुख्यालय विएना (आस्ट्रिया) में है.
इस संगठन का उद्देश्य अपने सदस्य देशों की पेट्रोलियम नीतियों का समन्वय और एकीकरण करना एवं उपभोक्ता को पेट्रोलियम की कुशल, आर्थिक व नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये तेल बाजारों का स्थिरीकरण सुनिश्चित करना है.
ओपेक के सदस्य देशों की संख्या 13 है-
ईरान, इराक, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, अल्जीरिया, लीबिया, नाइजीरिया, गैबॉन, इक्वेटोरियल गिनी, कांगो गणराज्य, अंगोला, और वेनेजुएला आदि ओपेक के सदस्य हैं.
ओपेक को अर्थशास्त्रियों द्वारा ‘कार्टेल’ कहा गया है.
ओपेक+ के सदस्य देश 2018 तक वैश्विक तेल उत्पादन का अनुमानित 44 प्रतिशत और दुनिया के ‘सिद्ध’ तेल भंडार का 81.5 प्रतिशत हिस्सा रखते हैं.
ओपेक +
यह ओपेक सदस्यों और विश्व के 10 प्रमुख गैर-ओपेक तेल निर्यातक देशों का गठबंधन है. इसके सदस्य देशों में – अजरबैजान, बहरीन, ब्रुनेई, कजाखस्तान, मलेशिया, मैक्सिको, ओमान, रूस, दक्षिण सूडान और सूडान शामिल हैं.