चीन और भारत के बीच हमेशा से छत्तीस का आंकड़ा रहा है। चीन हमेशा कोई ऐसी चाल चलता है जिससे भारत की चिंता बढ़ जाती है। इस बार भी उसने ऐसा ही कुछ किया है। चीन ने अपनी महत्वकांक्षी परियोजना वन बेल्ट वन रोड (OBOR) में अब नेपाल को भी अपना साथी बना लिया है। शुक्रवार को नेपाल ने चीन की इस परियोजना में शामिल होने के लिए हस्ताक्षर किए। नेपाल के हस्ताक्षर के साथ ही दक्षिण एशिया में भारत एक मात्र ऐसा देश बच गया है जो चीन की इस परियोजना का हिस्सा नहीं है। नेपाल के OROB में शामिल होने के साथ ही चीन के अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने भारत के खिलाफ कुछ नफरत भरे बयान दिए। उन्होंने कहा कि अगर भारत इस परियोजना का हिस्सा नहीं बनता है तो वो दक्षिण एशिया में एक मात्र ऐसा देश होगा। चीन के विशेषज्ञों ने कहा कि भारत दक्षिण एशिया का एक प्रभावशाली देश है और भविष्य में वह बाकी देशों से अलग-थलग पड़ जाएगा।

14-15 मई को शिखर सम्मेलन

दरअसल, 14 और 15 मई को चीन इस प्रोजेक्ट से संबंधित शिखर सम्मेलन आयोजित करने जा रहा है। भारत के साथ-साथ अमेरिका, जर्मनी, और फ्रांस जैसे कई मुल्कों ने इस शिखर सम्मेलन से दूर रहने का फैसला किया है। हालांकि हाल ही में सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक अब भारत ने भी अपने कुछ विशेषज्ञों को सम्मेलन में भेजने का फैसला लिया है। भारत-अमेरिका समेत इन सभी देशों का मानना है कि चीन इस परियोजना के तहत विश्व में अपना वर्चस्व बढ़ाना चाहता है।Nepal become part of "One Belt One Road" of China

क्या है OBOR का इतिहास

चीन अपनी जिस महत्वाकांक्षी योजना वन बेल्ट वन रोड के लिए उतावला है, उसे सिल्क रोड प्रॉजेक्ट भी कहा जाता है। सिल्क रोड प्रोजेक्ट नाम होने के पीछे भी एक बड़ा कारण है। दरअसल, करीब एक हजार साल पहले तक यूरोप, मध्य एशिया और अरब से चीन को जोड़ने वाला एक व्यापारिक मार्ग काफी चलन में था। उस वक्त भारतीय व्यापारियों ने भी इसका खूब प्रयोग किया था। इस मार्ग को ही रेशम मार्ग यानि सिल्क वे कहा जाता था। अब चीन अपनी इस नई योजना के जरिए उसे फिर से जीवित करना चाहता है। चीन द्वारा प्रस्तावित योजना वन बेल्ट वन रोड के दो रूट होंगे।  पहला लैंड रूट चीन को मध्य एशिया के जरिए यूरोप से जोड़ेगा, जिसे कभी सिल्क रोड कहा जाता था। दूसरा रूट समुद्र मार्ग से चीन को दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्वी अफ्रीका होते हुए यूरोप से जोड़ेगा, जिसे नया मैरिटाइम सिल्क रोड कहा जा रहा है। इसे लेकर कई तरह की आशंकाएं जताई जा रही हैं। कहा जा रहा है कि इस परियोजना की वजह से गरीब देश कर्ज के बोझ से दब जाएंगे।

चीन की चाल

वहीं दूसरी ओर चीन तर्क दे रहा है कि ‘वन बेल्ट, वन रूट’ परियोजना के तहत इन देशों में भारी भरकम निवेश होगा और बुनियादी ढांचा मजबूत होगा। इसके अलावा इन देशों के लोगों की माली हालत में सुधार होगा और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। चीन इससे खुद को होने वाले फायदे को बताने से गुरेज कर रहा है। हालांकि भारत और अमेरिका जैसे देश उसकी इस चाल को भलीभांति समझ रहे हैं।

वैश्विक बाजार में बढ़ाना चाहता है अपना वर्चस्व

चीन इस परियोजना के जरिए वैश्विक बाजार का सबसे बड़ा खिलाड़ी बनना चाहता है। पिछले कुछ दशकों से चीन अपनी वस्तुओं के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध रहा है लेकिन हाल के समय में चीनी वस्तुओं की मांग में गिरावट आई है। इसकी वजह से चीन की अर्थव्यवस्था में भी फर्क पड़ा है और चीनी कंपनियों को अपने कई कर्मचारियों को भी निकालना पड़ा है। इन सभी परेशानियों से निजात पाने के लिए चीन ने वन बेल्ट वन रोड के जरिए एक नया उपाय खोजा है। चीन इस परियोजना के जरिए वैश्विक बाजार में अपना वर्चस्व कायम करना चाहता है, जहां वह अपने ओवर प्रोडक्शन को आसानी से सप्लाई कर सकेगा।

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