Rajiv Gandhi Assassination Case: राजीव गांधी हत्याकांड के छह दोषियों की समय से पूर्व रिहाई के आदेश पर दोबारा विचार करने के लिए केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। केंद्र सरकार ने पुनर्विचार याचिका में कहा है कि हमें अपना पक्ष रखने का पूरा मौका नहीं दिया गया। याचिकाकर्ताओं की गलती के कारण मामले की सुनवाई में भारत सरकार अपना पक्ष नहीं रख पाई। इससे नैचुरल जस्टिस के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है। आपको बता दें, बीते 11 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने राजीव गांधी की हत्या के छह दोषियों को समय से पहले रिहा करने का आदेश दिया था।
Rajiv Gandhi Assassination Case: तीन दशकों से जेल में बंद थे दोषी
पिछले तीन दशकों से राजीव गांधी हत्याकांड के दोषी जेल में नलिनी श्रीहरन और पांच अन्य शेष दोषी आजीवन कारावास की सजा काट रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सजा कम करते हुए उन्हें रिहा कर दिया। ससे पहले रिहा हुई दोषी नलिनी ने दावा किया है कि उसके दृढ़ विश्वास कि वह निर्दोष है। उसके इस विश्वास ने ही उसे इतने वर्षों तक जीवित रखा है।
आपको बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल 18 मई को इस केस के एक दोषी पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया था। बाकी दोषियों ने भी उसी आदेश का हवाला देकर कोर्ट से रिहाई की मांग की थी। इन सभी दोषियों ने जेल में पूरे 31 सालों की सा काटी है। नलिनी देश में सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाली महिला कैदी थी और उसे 1991 में गिरफ्तार किया गया था जब वह 24 साल की थी।
कांग्रेस की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को अस्वीकार्य बताया गया है। कांग्रेस की ओर से बयान जारी कर कहा गया, “सुप्रीम कोर्ट का पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों को रिहा करने का फैसला पूरी तरह से अस्वीकार्य और पूरी तरह गलत है।”
Rajiv Gandhi Assassination Case: केन्द्र की ओर से दायर याचिका में कही गई ये बातें
पुनर्विचार याचिका में कहा गया है कि पूर्व पीएम की हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट को केंद्र सरकार को भी सुनना चाहिए था।
- याचिका में कहा गया है कि इससे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है। जिन छह दोषियों को छूट दी गई है, उनमें से चार श्रीलंकाई नागरिक हैं।
- देश के पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या के जघन्य अपराध के लिए देश के कानून के अनुसार दोषी ठहराए गए दूसरे देश के आतंकवादियों को रिहा किया गया है। इस फैसले का अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव होगा और इसलिए यह पूरी तरह से भारत सरकार के शक्तियों के अंतर्गत आता है।
- याचिका में कहा गया है कि ऐसे संवेदनशील मामले में भारत सरकार की भागीदारी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे देश की सार्वजनिक, शांति व्यवस्था और आपराधिक न्याय प्रणाली पर गहरा असर पड़ेगा।
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