प्रधानमंत्री मोदी जिस रेवड़ी कल्चर बात की कर रहे हैं … हो सकता है…. आप में कई इस बारे में अच्छी तरह जानते होंगे….जो नहीं जानते हैं उनके लिए बता दूं कि भारत की राजनीति में चुनाव जीतने के लिए नेता गण अपने चुनावी भाषणों में जनता जनार्दन के लिए कई लुभावने वादे करते है….उसी को आज कल राजनीतिक शब्दावली मे रेवड़ी कल्चर बोला जा रहा है। नेताओं द्वारा किए गए वादे उनके कुर्सी पा जाने की स्थिति में …कुछ पूरे होते हैं तो कुछ छूट जाते हैं…..कई बार आधे अधूरे रहे जाते हैं….. कई बार तो नेतागण अपने ही किए वादों को भूल जाते हैं….. इसी रेवड़ी कल्चर को लेकर आजकल घमासान मचा हुआ है। जो पहले इसके हिमायती थे आजकल विरोधी बने हुए हैं…जो पहले इसके विरोधी थे आजकल हिमायती बने हुए हैं….क्या है गोलमाल और क्यूं है यह गोलमाल….बताएंगे आपको पूरी बात …. जुड़े रहिए हमारे साथ……नमस्कार….मैं मनीष राज…मेरे साथ …आप सुन रहे हैं ……समससामयिक चर्चाओं का विशेष पॉडकास्ट सुनो भई साधो…. इस खास कार्यक्रम में आप सभी का स्वागत है।
साधो ……. प्रधानमंत्री मोदी देश के समग्र विकास का हवाला देते हुए देश में बढ़ते रेवड़ी कल्चर पर लगातार प्रहार कर रहे हैं। लेकिन तमाम विरोधी दल राजनीतिक मजबूरियों की वजह से जनता की गरीबी की दुहाई देते हुए देश में रेवड़ी कल्चर पर एक नए सिरे से बहस की मांग कर रहे हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तो रेवड़ी कल्चर पर जनमत संग्रह कराने की बात कह कर एक नया शिगूफा छेड़ दिया है। इस बहस में तमाम राजनैतिक दल अपना नफा नुकसान देखते हुए कूद पड़े हैं।
हम सब जानते हैं कि भारत के संविधान मे भारत की परिकल्पना एक कल्याणकारी सरकार के साथ की गई है। विपक्षी दलों पर फ्री रेवड़ी कल्चर अपनाने का आरोप लगाने वाली सरकार जब खुद ही देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज और राशन दे रही है, साथ ही उसका यशोगान कर रही है तो ऐसे में यही कहा जा सकता है पर उपदेश कुशल बहुतेरे। और शायद यही वजह है कि विपक्षी दल सरकार पर राजनैतिक जुमलेबाजी करने के आरोप लगा रहे हैं।
ऐसे में सरकार का कहना है कि सब्सिडी और मुफ्तखोरी दो अलग चीजे हैं और दोनों को बिलकुल अगल नजरिए से देखा जाना चाहिए। सरकार जो सब्सिडी देती है , वह महात्मा गांधी के सिद्धांतो के तहत समाज के अंतिम छोर पर बैठे लोगो को मिलने वाली सहायता है, जबकि मुफ्तखोरी बिलकुल अलग चीज है। समाज के निर्धन लोगों की बुनियादी जरुरतों में जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, मिड डे मील देना किसी भी सरकार के लिए निहायत जरुरी चीजें है। लेकिन ऐसे वर्ग के लिए जो सरकारी सब्सिडी के मुहताज नहीं है, उसे फ्री रेवड़ी बांटना देश के लिए ठीक नहीं ।
बहरहाल इस बहस को सुलझाने की जिम्मेवारी सुप्रीम कोर्ट के उपर है। रेवड़ी कल्चर पर डाली गई याचिकाओं पर सुप्रीमकोर्ट काफी गंभीरता से सुनवाई कर रहा है। सरकार का पक्ष रखते हुए एससी तुषार मेहता ने कहा कि रेवड़ी कल्चर पूरी तरह बंद होना चाहिए। कोर्ट ने इस मामले में सख्त रुख अख्तियार किया है। हालांकि अदालत ने ऐसे वादे करने वाली पार्टियों की सदस्यता रद्द करने से इनकार कर दिया है। इस मामले को लेकर सीजेआई ने कहा कि वे नई पीठ को यह मामला भेज रहे हैं। तीन जजों की पीठ आगे फ्रीबीज मामले पर सुनवाई करेगी। तब तक तो साधो यह विवाद जारी रहेगा कि रेवड़ी कल्चर की रेवड़ी का स्वाद अच्छा है कि बुरा ……….
आज के लिए बस इतना ही। आपने अभी तक चैनल या पेज को सब्सक्राईब नहीं किया है तो जरुर करें… आपको हमारा पॉडकास्ट कैसा लगा…..इस बारे में कमेंट कर सकते हैं…इसे लेकर सुझाव दे सकते हैं…सुनो भई साधो में मैं फिर मिलूंगा….एक नए मुद्दे से आपको रुबरु कराने………तब तक के लिए आज्ञा दीजिए…..नमस्कार …आपका दिन शुभ हो।