नगालैंड (Nagaland) में छह महीने के लिए फिर AFSPA बढ़ा दिया गया है। Armed Forces (Special Powers) Act (AFSPA) को हटाने की मांग काफी समय से हो रही है। 4 दिसंबर को सुरक्षा बलों द्वारा कथित तौर पर गलति से मारे गए आम नागरिकों के बाद AFSPA को हटाने की मांग जोरों शोरों पर हो रही थी। नगालैंड के सीएम नेफियू रियो (CM Neiphiu Rio) और मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा (Meghalaya Chief Minister Konrad Sangma) ने हटाने की मांग की थी। इस बीच नागरिकों को फिर छह माह तक AFSPA झेलना पड़ेगा।
फोरम फॉर नागा रिकंसिलिएशन (FNR) ने कहा कहा था कि AFSPA, अपने स्वभाव से, “शांति विरोधी” है। राज्य सरकार को इसे निरस्त करने और नागरिक क्षेत्रों से सशस्त्र बलों को हटाने की सिफारिश करनी चाहिए।
Nagaland में इस तरह आया AFSPA

सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम (Armed Forces (Special Powers) Act) को भारत की संसद ने साल 1958 में लाया था। इस कानून के तहत सुरक्षा बलों को कुछ विशेष शक्तियां दी जाती है जिससे वे अशांत क्षेत्रों में कानून व्यवस्था को बनाएं रख सकें। अशांत क्षेत्र (विशेष न्यायालय) अधिनियम 1976 के अनुसार एक बार क्षेत्र को अशांत घोषित कर दिया जाता है तो वहां पर कम से कम तीन माह तक यथास्थिति (Quo) को बनाए रखना पड़ता है।
इसी तरह का एक अधिनिय 11 सितंबर 1958 में भारतीय संसद ने नागा हिल के लिए पास किया था। बाद में इसे असम में फिर धीर धीरे 7 बहने (7 Sisters) कहे जाने वाले सभी पूर्वोत्तर राज्यों में लागू कर दिया गया। इसे अभी वर्तमान रूप में असम, नगालैंड, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सो में लागू किया गया है। बता दें कि इस तरह का अधिनियम बॉर्डर से सटे राज्यों में ही लागू किया जाता है।
Nagaland में 4 दिसंबर को क्या हुआ था?

बता दें कि नगालैंड में सेना की गलती के कारण 4 दिसंबर की रात को दर्जन भर नागरिकों की जान चली गई थी। नगालैंड में सुरक्षा बलों के एक आतंकवाद विरोधी ऑपरेशन में ‘गलत पहचान’ के चलते कई स्थानीय लोग मार गए। पुलिस ने बताया था कि मरने वालों की संख्या में दर्जन भर लोग शामिल हैं। घटना म्यांमार की सीमा से लगे नगालैंड के मोन जिले के ओटिंग गांव में हुई थी।
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