Allahabad HC: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 के तहत कार्यरत तकनीकी सहायकों और कंप्यूटर ऑपरेटर्स के लिए अच्छी खबर है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तकनीकी सहायकों और कंप्यूटर ऑपरेटर्स का वेतन बढ़ाने पर विचार करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को समिति बनाने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि प्रदेश सरकार इस मामले पर गौर करे।
यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमसेरी ने विमल तिवारी सहित 32 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए दिया है। याचियों की ओर से कहा गया कि राज्य सरकार उन्हें कम पारिश्रमिक दे रही है। वह एक कल्याणकारी राज्य होने की जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं कर पा रही है।
उन्हें लोक निर्माण विभाग में कार्यरत कनिष्ठ अभियंताओं या तकनीकी सहायकों और कंप्यूटर ऑपरेटरों के समान निर्धारित वेतनमान, ग्रेड वेतन और अन्य भत्ते में नियमित वेतन प्रदान किया जाए।
Allahabad HC: दिहाड़ी मजदूरों को भी उनसे अधिक वेतनमान मिल रहा
कहा गया कि ग्राम विकास विभाग, पंचायती राज, लोक निर्माण विभाग सहित विभिन्न निगमों में भी इसी तरह का वेतनमान दिया जा रहा है।
उन्होंने न्यायालय के समक्ष तर्क दिया कि वे वही काम कर रहे हैं जो यूपी राज्य के लोक निर्माण विभाग और पंचायती राज विभाग में संबंधित पदों पर कार्यरत लोगों द्वारा किया जा रहा है। कोर्ट को बताया गया कि दिहाड़ी मजदूरों को भी उनसे अधिक वेतनमान दिया जा रहा है।
कहा गया कि पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, मिजोरम और छत्तीसगढ़ राज्यों द्वारा उच्च मासिक परिलब्धियां तय की गई हैं। जिससे मासिक वेतन 18 हजार रुपये हो गया है। कुछ राज्यों में 35 हजार रुपये प्रति माह दिया जा रहा है। जबकि, यूपी में आठ हजार रुपये ही प्रतिमाह मिल रहे हैं।
Allahabad HC: दूसरी ओर सरकारी अधिवक्ता की ओर से तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं को अनुबंध के आधार पर मानदेय दिया जा रहा है।कोर्ट ने कहा कि यूपी राज्य के लोक निर्माण विभाग और पंचायती राज विभाग में जूनियर इंजीनियरों की नियुक्ति जिनके साथ याचिकाकर्ताओं द्वारा पारिश्रमिक लाभ पाने की समानता की मांग की जा रही है। लेकिन, कोर्ट के सामने तुलनात्मक आंकड़े नहीं है। इसलिए वह मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है।
कोर्ट ने मध्य प्रदेश राज्य बनाम आरडी शर्मा 2022 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले का उल्लेख किया। जिसमें यह माना गया था कि समान काम के लिए समान वेतन मौलिक अधिकार नहीं है। हालांकि, यह सरकार द्वारा प्राप्त किया जाने वाला एक संवैधानिक लक्ष्य है।
मामले में कोर्ट ने याचियों को राहत देने से इंकार कर दिया।हालांकि, कोर्ट ने कहा कि इन्हें मिल रहा मासिक वेतन एक सभ्य जीवन को बिताने के लिए कम है। इसलिए सरकार वेतन बढ़ाने के संबंध में समिति गठन करे। यह समिति तर्कपूर्ण निर्णय लेगी।
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