किसी ने सच ही लिखा है… ‘ना उम्र की सीमा हो ना जन्म का हो बंधन, जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन’।
प्यार होता तो केवल ढाई अक्षर का है लेकिन इसकी गहराई किसी सागर से कम नहीं होती। यह भले ही एक छोटा सा शब्द है लेकिन इसका भावनात्मक रूप असीमित और सम्पूर्ण होता है। यह एक ऐसी भावना है जो हर कोई एहसास करना चाहता है, जिसकी चाहत हर उम्र के लोगों को होती है और जिसका इंतजार कोई ताउम्र ही नहीं कई जन्मों तक कर सकता है। ऐसे ही दो प्रेमियों को उनका प्यार जीवन के 70 से अधिक बसंत बीत जाने के बाद मिला है। उन्होंने अब इसे रिश्तों की डोरी से बांध लिया है।
यह कहानी है छत्तीसगढ़ के जशपुर के 75 साल के रतिया राम और 70 साल के जिमनाबरी की, जिनकी मुलाकात एक सामाजिक कार्यक्रम में 15 दिन पहले हुई थी। दुल्हा बने रतिया राम बताते हैं कि उनको पहली नजर में ही एक दूसरे से प्यार हो गया और उसी समय दोनों ने एक-दूसरे के साथ रहने का मन बना लिया। इसके बाद रतिया राम जिमनाबरी को लेकर अपने गाँव बगडोल आ गए और साथ रहने लगे।
इसी दौरान सरपंच ललित नागेश को यह बात पता चली और उन्होंने दोनों की शादी कराने की सोची। रतिया राम कोरवा समाज से आते हैं और कोरवा समाज में अकेले जीवन जीने वाले पुरुष अपने समाज की किसी अकेली महिला को चूड़ी पहनाकर पत्नी के रूप में रख सकते हैं। इसलिए कोरवा समाज ने सरपंच द्वारा बुलाए गए पंचायत की बैठक में दोनों की रज़ामंदी पर मुहर लगा दी और 16 अगस्त को दोनों की धूमधाम से शादी हो गई।
इस शादी में दुल्हा-दुल्हन के नाती-पोते, रिश्तेदार और पूरा गांव समेत अनेक नेता भी शामिल हुए। शादी को बहुत धूम-धाम से आयोजित किया गया। लोग खुशी से नाच-गा रहे थे। रतिया राम के पोते दहिया राम ने कहा कि यह समाज का सही फैसला है। दोनों अब साथ हैं, खुश हैं और उनका अकेलापन भी अब दूर हो चुका है।
सरपंच ललित नागेश ने शादी संपन्न हो जाने के बाद कहा, ”ये हमारे समाज की धरोहर हैं। आदिवासी समाज को इस मायने में विकसित समाज कहा जा सकता है।”
आपको बता दें कि झारखण्ड और छत्तीसगढ़ के छोटा नागपुर पठारी इलाकों में आदिम युगीन जनजाति कोरवा निवास करते हैं। कौरव के वंशज माने जाने वाले इस जनजाति के लोगो ने इस शादी के द्वारा हमारी तथाकथित आधुनिक सभ्यता के सामने एक मिसाल पेश किया है, जहां उम्र के आखिरी पड़ाव में इंसानों को अकेलापन दूर करने के लिए ‘ओल्ड एज होम’ का सहारा लेना पड़ता है।