Mansoor Ali Khan Pataudi: आज भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान मंसूर अली खान पटौदी का जन्मदिन है। उनका जन्म 5 जनवरी 1941 को मध्य प्रदेश के भोपाल में नवाब खानदान में हुआ था और उनका निधन 22 सितंबर 2011 को दिल्ली में हुआ था। मंसूर अली खान अपनी रियासत यानी पटौदी खानदान के नौवें नवाब थे। लोग उन्हें टाइगर के नाम से भी जानते थे। नवाब खानदान में पैदा होने वाले मंसूर अली खान ने क्रिकेट को अपने करियर के रूप में चुना। मात्र 21 साल की उम्र में उन्हें भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तानी की जिम्मेदारी मिल गई थी। वे सीधे हाथ से बल्लेबाजी और गेंदबाजी करते थे।
भारतीय क्रिकेट की दुनिया में मंसूर अली खान को एक बेहतर और सफल कप्तान के रूप में भी जाना जाता है। मंसूर अली खान के जीवन में एक ऐसा हादसा हुआ, जिससे उनके क्रिकेट करियर पर खतरा मंडराने लगा था लेकिन, टाइगर ने उस विपरीत परिस्थिति में हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी कमजोरी को ताकत बनाया और क्रिकेट की दुनिया में शानदार शोहरत हासिल की। आज मंसूर अली खान के जन्मदिन पर हम आपको यहां उनकी जीवन से जुड़ी कुछ खास पहलुओं से रू-ब-रू करा रहे हैं…
Mansoor Ali Khan Pataudi: मंसूर के ग्यारहवें जन्मदिन पर पिता का हो गया था निधन!
मंसूर अली खान, इफ्तिखार अली खान (जो खुद एक प्रसिद्ध क्रिकेटर थे) और भोपाल की नवाब बेगम साजिदा सुल्तान के पुत्र थे। उनके दादा हमीदुल्लाह खान भोपाल के अंतिम शासक नवाब थे। मंसूर अली ने अलीगढ़ में मिंटो सर्कल, देहरादून में वेल्हम बॉयज स्कूल, हर्टफोर्डशायर में लॉकर्स पार्क प्रेप स्कूल और विनचेस्टर कॉलेज से अपनी पढ़ाई की थी। उन्होंने बैलिओल कॉलेज,ऑक्सफोर्ड में अरबी और फ्रेंच की भी पढ़ाई की। 1952 में मंसूर के ग्यारहवें जन्मदिन पर दिल्ली में पोलो खेलते समय उनके पिता की मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद मंसूर पटौदी के नौवें नवाब बने। हालांकि, 1947 में ब्रिटिश राज की समाप्ति के बाद पटौदी की रियासत का भारत में विलय कर दिया गया था, लेकिन 1971 में संविधान के 26वें संशोधन के माध्यम से भारत सरकार द्वारा अधिकारों को समाप्त किए जाने तक उन्होंने इस उपाधि को धारण किए रखा।
ऑक्सफोर्ड में थे पहले भारतीय कप्तान मंसूर
पटौदी जूनियर, जैसा कि मंसूर को उनके क्रिकेट करियर के दौरान जाना जाता था। वह विंचेस्टर में बल्लेबाजी करने वाले एक स्कूली छात्र थे। उन्होंने 1959 में स्कूल टीम की कप्तानी की, उस सीजन में मंसूर ने 1,068 रन बनाए, 1919 में डगलस जार्डिन द्वारा बनाए गए स्कूल रिकॉर्ड को तोड़ दिया। उन्होंने पार्टनर क्रिस्टोफर स्नेल के साथ पब्लिक स्कूल रैकेट चैंपियनशिप भी जीती। मंसूर ने अगस्त 1957 में 16 साल की उम्र में ससेक्स के लिए प्रथम श्रेणी में डेब्यू किया और विश्वविद्यालय में रहते हुए ऑक्सफोर्ड के लिए भी खेले और वहां वे पहले भारतीय कप्तान भी बने।
कार एक्सीडेंट में खोई अपनी दाहिनी आंख
वर्ष 1961 और तारीख थी 1 जुलाई। मंसूर अली खान एक कार में यात्रा कर रहे थे, तभी एक बड़ा हादसा हुआ और कार का एक्सीडेंट हो गया। उस दौरान कार की टूटी हुई विंडस्क्रीन से कांच का एक टुकड़ा उनके दाहिनी आंख में घुस गया। तब डॉ डेविड सेंट क्लेयर रॉबर्ट्स नाम के एक सर्जन को उनकी आंख के ऑपरेशन के लिए बुलाया गया। यह आशंका थी कि इससे उनका क्रिकेट करियर समाप्त हो जाएगा, लेकिन पटौदी जल्द ही नेट्स में खेलते हुए दिखाई दिए। वे अपनी एक आंख से खेलना सीख रहे थे। उन्होंने उस विपरीत परिस्थिति में अपने को बिल्कुल भी कमजोर नहीं होने दिया। टाइगर यानी मंसूर अली खान ने अपनी दाहिनी आंख को खोने के बावजूद भी हिम्मत नहीं हारे और एक आंख से ही बेहतर क्रिकेट खेलने का प्रयास करने लगे।
21 साल की उम्र में बने भारतीय टीम के कप्तान
कार हादसे के 6 महीने बाद मंसूर अली खान पटौदी ने इंग्लैंड के खिलाफ दिसंबर 1961 में अपने टेस्ट करियर की शुरुआत की और शतक जड़ दिया। मंसूर ने मद्रास में तीसरे टेस्ट में 103 रन बनाए, जिससे भारत को इंग्लैंड के खिलाफ अपनी पहली सीरीज जीतने में मदद मिली। उन्हें 1962 में वेस्टइंडीज के दौरे के लिए उप कप्तान नियुक्त किया गया। मार्च 1962 में, मात्र 21 साल की उम्र में मंसूर को भारतीय क्रिकेट टीम का कप्तान बनाया गया। वह सबसे कम उम्र के भारतीय टेस्ट कप्तान और इसके साथ ही दुनिया भर में तीसरे सबसे कम उम्र के अंतर्राष्ट्रीय टेस्ट कप्तान भी रहे।
46 मैचों में से 40 में की कप्तानी
मंसूर अली खान ने 1961 और 1975 के बीच भारत के लिए 46 टेस्ट मैच खेले, जिसमें 34.91 के औसत से 2,793 रन बनाए, इसमें 6 टेस्ट शतक भी शामिल हैं। वे 46 मैचों में से 40 में भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान थे, जिनमें से केवल 9 में उनकी टीम को जीत मिली। इसके साथ ही बाकी के 19 मैचों में हार और 19 मैच ड्रॉ रहे। उनकी जीत में 1968 में न्यूजीलैंड के खिलाफ विदेशों में भारत की पहली टेस्ट मैच जीत शामिल थी। भारत ने उस श्रृंखला को जीत लिया, जिससे यह भारत की विदेश में पहली टेस्ट श्रृंखला जीत बन गई थी। उन्होंने 1970 में वेस्टइंडीज के दौरे के लिए भारतीय क्रिकेट टीम की कप्तानी छोड़ दी और 1970 से 1972 तक टेस्ट नहीं खेले। वह 1973 में अजीत वाडेकर की कप्तानी वाली भारतीय टीम में इंग्लैंड के खिलाफ तीसरे टेस्ट के लिए लौटे। 1974 में वेस्टइंडीज के खिलाफ भारत की कप्तानी की, लेकिन अंततः 1975 में एक खिलाड़ी के रूप में वे बाहर हो गए।
टाइगर की ये लव स्टोरी है फेमस
कहा जाता है कि मंसूर अली खान (टाइगर) की लव स्टोरी भी क्रिकेट से ही जुड़ी हुई थी। उनका क्रिकेट करियर रोमांचक तो था ही लेकिन उनकी लव स्टोरी भी कम नहीं थी। मंसूर अली और मशहूर अभिनेत्री शर्मिला टैगोर की प्रेम कहानियों के किस्से उन दिनों खबरों में बने रहते थे। बताया जाता है कि जब मंसूर अली खान शर्मिला टैगोर से पहली बार मिले थे तभी वे अपना दिल अभिनेत्री को दे बैठे थे। लेकिन शर्मिला को शादी के लिए राजी करना उनके लिए उतना आसान नहीं था। उसके लिए उन्हें काफी ‘पापड़ बेलने’ पड़े।
एक वक्त ऐसा आया जब शर्मिला ने शादी के लिए मंसूर के सामने एक शर्त रख दी। शर्त में कहा गया था कि अगर मंसूर पटौदी ने मैच में लगातार तीन छक्के लगा दिए तो शर्मिला उनसे शादी करने के लिए राजी हो जाएंगी। फिर क्या हुआ, आप मंसूर का प्यार कहिए या फिर संयोग। टाइगर ने अपने मैच में लगातार 3 छक्के जड़ दिए, जिसके बाद शर्मिला टैगोर और मंसूर अली खान पटौदी की शादी हो गई।
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