Ramcharitmanas: कहते हैं कि कलयुग में हर किसी का सहारा सिर्फ राम नाम है। ऐसे में अगर हम प्रभु श्रीराम जी के नाम का स्मरण करते हैं,हमारे सभी संकटों का अंत हो जाता है। भगवान श्रीराम का जन्म त्रेता युग में हुआ था। शनि की दशा में भगवान श्रीराम को वनवास तथा सीताजी का हरण हुआ। इस समय रुद्रावतार हनुमानजी से उनका मिलन हुआ। जिनका अवतार ही शनि प्रदत्त दुखों के निवारण के लिए हुआ था।
हनुमानजी के सहयोग से रामजी ने शनि की दशा मे आने वाली कठिनाइयों का सामना किया।भगवान श्रीराम को कलयुग में मानव को शनिग्रह कष्टों के पूर्ण ज्ञान की जानकारी थी। इसीलिए उन्होंने अपने परमप्रिय भक्त हनुमान को धरती में ही रुकने का आदेश दिया। प्रभु श्रीराम ने हनुमान जी से कहा था कि जहां-जहां रामायण का पाठ होगा वहां आपका वास होगा तथा शनि और कलयुग प्रदत्त कष्ट वहां से भाग जाएंगे।
यही वजह है कि प्रभु श्रीराम के आदेश पर ही हनुमानजी ने तुलसीदास द्वारा रामचरितमानस की रचना करवाई। यही रामचरितमानस कलयुग के सभी पापों को नष्ट करने के लिये रामबाण के समान है।ये सच्चाई है कि जहां रामचरित मानस का पाठ होता है वहां भगवान हनुमानजी जी अवश्य पधारते हैं। रामचरितमानस की चौपाइयों में ऐसी क्षमता है कि इन चौपाइयों के जप से ही मनुष्य बड़े-से-बड़े संकट में भी मुक्त हो जाता है।आइये जानते हैं कुछ ऐसे ही चौपाइयों के बारे में जिनसे हर संकट टल जाता है।
Ramcharitmanas: इन चौपाइयों को बोलने मात्र से खत्म होते हैं कष्ट
Ramcharitmanas: रक्षा के लिए
मामभिरक्षक रघुकुल नायक |
घृत वर चाप रुचिर कर सायक ||
विपत्ति दूर करने के लिए
राजिव नयन धरे धनु सायक |
भक्त विपत्ति भंजन सुखदायक ||
सहायता के लिए
मोरे हित हरि सम नहि कोऊ |
एहि अवसर सहाय सोई होऊ |
सब काम बनाने के लिए
वंदौ बाल रुप सोई रामू |
सब सिधि सुलभ जपत जोहि नामू ||
वश मे करने के लिए
सुमिर पवन सुत पावन नामू |
अपने वश कर राखे राम ||
संकट से बचने के लिए
दीन दयालु विरद संभारी |
हरहु नाथ मम संकट भारी ||
विघ्न विनाश के लिए
सकल विघ्न व्यापहि नहि तेही |
राम सुकृपा बिलोकहि जेहि ||
रोग विनाश के लिए
राम कृपा नाशहि सव रोगा |
जो यहि भाँति बनहि संयोगा ||
बुखार दूर करने के लिए
दैहिक दैविक भोतिक तापा |
राम राज्य नहि काहुहि व्यापा ||
दुःख नाश के लिए
राम भक्ति मणि उर बस जाके |
दुःख लवलेस न सपनेहु ताके ||
खोई चीज पाने के लिए
गई बहोरि गरीब नेवाजू |
सरल सबल साहिब रघुराजू ||
अनुराग बढाने के लिए
सीता राम चरण रत मोरे |
अनुदिन बढे अनुग्रह तोरे ||
घर मे सुख लाने के लिए
जै सकाम नर सुनहि जे गावहि |
सुख सम्पत्ति नाना विधि पावहिं ||
सुधार करने के लिए
मोहि सुधारहि सोई सब भाँती |
जासु कृपा नहि कृपा अघाती ||
विद्या पाने के लिए
गुरू गृह पढन गए रघुराई |
अल्प काल विधा सब आई ||
सरस्वती निवास के लिए
जेहि पर कृपा करहि जन जानी |
कवि उर अजिर नचावहि बानी ||
निर्मल बुद्धि के लिए
ताके युग पदं कमल मनाऊँ |
जासु कृपा निर्मल मति पाऊँ ||
मोह नाश के लिए
होय विवेक मोह भ्रम भागा |
तब रघुनाथ चरण अनुरागा ||
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