Ganesh Chaturthi 2022: देवों में सर्वप्रथम पूजनीय विघ्नहर्ता भगवान श्रीगणेश जी का जन्मोत्सव ही कहलाती है गणेश चतुर्थी।गणेश चतुर्थी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को धूमधाम से मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान गणेशजी का जन्म हुआ था।
महादेव और मां पार्वती के पुत्र भगवान श्रीगणेश का हर रूप ही निराला है। एक श्रेष्ठ व्यक्ति में निहित सभी गुण भगवान श्रीगणेश के अंदर हैं, जो हमें सीख देते हैं कि जीवन में हमेशा अपने माता-पिता का सम्मान करें, आज्ञाकारी बनें, सत्य बोलें, परिश्रम से मुंह न मोड़ें। यही वजह है कि इन्हें स्वयं महादेव ने प्रथम पूजनीय होने का वरदान दिया था। आइये जानते हैं चतुर्थी क्यों मनाते हैं, इससे जुड़ी कुछ पौराणिक कथाएं।
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Ganesh Chaturthi 2022: भगवान श्रीगणेश जी से जुड़ी पहली कथा
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महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना के लिए गणेशजी का आह्वान किया और उनसे महाभारत को लिपिबद्ध करने की प्रार्थना की। तब गणेश जी ने कहा कि मैं जब लिखना प्रारंभ करूंगा तो कलम को रोकूंगा नहीं, यदि कलम रूक गई तो लिखना बंद कर दूंगा। तब व्यास जी ने कहा प्रभु आप विद्वानों में अग्रणी हैं और मैं एक साधारण ऋषि किसी श्लोक में त्रुटि हो सकती है। अतः आप बिना समझे और त्रुटि हो तो निवारण करके ही श्लोक को लिपिबद्ध करना। आज के दिन से ही व्यास जी ने श्लोक बोलना और गणेशजी ने महाभारत को लिपिबद्ध करना प्रारंभ किया।
लगातार 10 दिन के बाद कहीं जाकर अनंत चतुर्दशी को लेखन कार्य समाप्त हुआ। इन 10 दिनों में गणेशजी एक ही आसन पर बैठकर महाभारत को लिपिबद्ध करते रहे। इस कारण 10 दिनों में उनका शरीर जड़वत हो गया और शरीर पर धूल, मिट्टी की परत जमा हो गई, तब 10 दिन बाद गणेशजी ने सरस्वती नदी में स्नानकर अपने शरीर पर जमीं धूल और मिट्टी को साफ किया। जिस दिन गणेशजी ने लिखना आरंभ किया उस दिन भाद्रमास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि थी। इसी उपलक्ष्य में हर साल इसी तिथि को गणेशजी को स्थापित किया जाता है और दस दिन मन, वचन कर्म और भक्ति भाव से उनकी उपासना करके अनन्त चतुर्दशी पर विसर्जित कर दिया जाता है।
Ganesh Chaturthi 2022: भगवान श्रीगणेश जी की दूसरी कथा
प्राचीनकाल में राजा नल के ऊपर अचानक विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा था। डाकूओं ने उनके महल से धन, गजशाला से हाथी और घुड़शाला से घोड़े हरण कर लिये, तथा महल को जला दिया। राजा नल भी जुआ खेलकर सब हार गये। राजा नल असहाय होकर रानी के साथ वन को चले गए।
शापवश स्त्री से भी वियोग हो गया।इसी दौरान एक बार वन में भटकती रानी दमयंती को महर्षि शरभंग के दर्शन हुए।दमयंती ने मुनि को प्रणाम कर प्रार्थना की प्रभु! मैं अपने पति से किस प्रकार मिलूंगी? शरभंग मुनि ने कहा- दमयन्ती! भादो की चौथ को एकदंत गजानन का व्रत और विधि-विधान से स्थापना कर पूजा करो। उनकी परिक्रमा करो, तुम्हारे सारे कष्टों का अंत होगा। तुम्हारे स्वामी तुम्हें मिल जाएंगे।
शरभंग मुनि के कहने पर दमयंती ने वैसा ही किया। भादो की गणेश चौथ को व्रत और विधि-विधान के साथ पूजा की। आगामी 7 मास में ही अपने पुत्र और पति को प्राप्त किया। इस व्रत के प्रभाव से राजा नल ने सभी सुख प्राप्त किये। विघ्न का नाश करने वाला तथा सुखा देने वाला यह सर्वोतम व्रत है।
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