Food Ethics: इस जगत में हमारे जीने का आधार हमारा भोजन है।भोजन जो ईश्वर की ओर से हमारे लिए विशेषतौर से बनाया गया है।अन्न के एक-एक कौर और उससे प्राप्त ऊर्जा से ही हमें शक्ति मिलती है। जो हमें जीवन जीने की सीख भी देती है।ऐसे में बेहद जरूरी होता है कि हम अन्न का सम्मान करें और परमात्मा को इसके लिए धन्यवाद करें।जिस प्रकार भोजन हमें बड़ी मेहनत से प्राप्त होता है, ठीक उसी प्रकार उसका सम्मान करना और भूखे को भरपेट भोजन करवाना हमारा पहला कर्तव्य भी बनता है। ये माना जाता है कि भोजन में परोसी गई मीठी वस्तु से खाने की शुरुआत करना शुभ माना जाता है।
इस परंपरा के पीछे वैज्ञानिक कारण भी छुपा हुआ है। आयुर्वेद ग्रंथों में बताया गया है कि मीठे से भोजन की शुरुआत करनी चाहिए, वहीं विज्ञान का भी मानना है कि एक स्वस्थ इंसान को मीठा खाकर ही भोजन की शुरुआत करनी चाहिए। सनातन धर्म में भोजन से जुड़ी बहुत सारी बातें हैं, इनके साथ ही भोजन ग्रहण करने के जरूरी नियमों का भी वर्णन किया गया है, जो हम आपके साथ साझा करने जा रहे हैं। मशहूर ज्योतिष पंडित सचिन दूबे के अनुसार हमें सदैव अपने पूर्वजों की ओर से भोजन के बारे में बताए गए कुछ नियमों का पालन करना चाहिए।

Food Ethics: जानिए भोजन के बारे में क्या रहस्य बताया था कि भीष्म पितामह ने अर्जुन को ?

द्वापर युग में भीष्म पितामह ने भी अर्जुन को भोजन के बारे कई बातों का ज्ञान दिया था।भीष्म पितामह ने अर्जुन को 4 प्रकार के भोजन न करने के लिए बताया था।
पहले प्रकार का भोजन-जिस भोजन की थाली को कोई लांघ कर गया हो वह भोजन की थाली नाले में पड़े कीचड़ के समान होती है।
दूसरा भोजन-जिस भोजन की थाली में ठोकर लग गई हो यानी किसी का पांव लग गया वह भोजन की थाली भिक्षा के समान होता है।
तीसरे प्रकार का भोजन- जिस भोजन की थाली में बाल पड़ा हो, केश पड़ा हो वह दरिद्रता के समान होता है।
चौथे नंबर का भोजन-अगर पति और पत्नी एक ही थाली में भोजन कर रहे हो तो वह मदिरा के तुल्य होता है।
सुनो! अर्जुन अगर पत्नी,पति के भोजन करने के बाद थाली में भोजन करती है उसी थाली में भोजन करती है, तो उसे चारों धाम के पुण्य का फल प्राप्त होता है। अगर दो भाई एक थाली में भोजन कर रहे हो तो वह अमृतपान कहलाता है। चारों धाम के प्रसाद के तुल्य वह भोजन हो जाता है।
Food Ethics: जानिए पुत्री अगर पिता के साथ भोजन करे तो क्या होगा?
सुनो! अर्जुन ….. बेटी अगर कुमारी हो और अपने पिता के साथ भोजन करती है एक ही थाली में तो उस पिता की कभी अकाल मृत्यु नहीं होती।
क्योंकि बेटी पिता की अकाल मृत्यु को हर लेती है ! इसीलिए बेटी जब तक कुमारी रहे तो अपने पिता के साथ बैठकर भोजन करें क्योंकि वह अपने पिता की अकाल मृत्यु को हर लेती हैं । संस्कार दिये बिना सुविधायें देना पतन का कारण बनता है।
Foods Ethics: थाली में हाथ कदापि न धोएं
अन्न का हर एक दाना सम्मानीय होता है। अक्सर लोगों की आदत होती है खाने के बाद थाली में ही हाथ धोते हैं, शास्त्रों के अनुसार ये आदत बेहद खराब मानी जाती है और अशुभ फल देती है। ऐसा माना जाता है कि थाली में झूठे हाथ धोने से जो अन्न के कण बचे होते हैं उनका अपमान होता है। ऐसा करने पर दरिद्रता आती है।
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