महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे परिवार का प्रभाव दशकों से बना हुआ है। अब एक बार फिर चर्चा में हैं – उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे। एक दौर में एक-दूसरे के बेहद करीब रहे ये दोनों नेता बीते दो दशकों से अलग-अलग राजनीतिक रास्तों पर हैं, लेकिन अब दोनों के एक साथ आने की संभावनाओं ने राजनीतिक गलियारों में हलचल बढ़ा दी है।
राज ठाकरे ने हाल ही में फिल्ममेकर महेश मांजरेकर को दिए इंटरव्यू में संकेत दिया कि व्यक्तिगत मतभेद राज्यहित के आगे मायने नहीं रखते। इस बयान के तुरंत बाद, उद्धव ठाकरे ने भी सकारात्मक रुख दिखाते हुए कहा कि वे महाराष्ट्र के हितों के लिए साथ आने को तैयार हैं – हालांकि यह समर्थन पूरी तरह बिना शर्त नहीं होगा।
दोनों नेताओं की संभावित नज़दीकियों पर प्रतिक्रिया भी बंटी हुई है। जहां उद्धव गुट के संजय राउत जैसे वरिष्ठ नेता इसे स्वागत योग्य मान रहे हैं, वहीं राज ठाकरे की पार्टी के कुछ सदस्य इससे सहज नहीं हैं।
क्या होगा संभावित असर?
मराठी मतों का फिर से ध्रुवीकरण
मराठी भाषी जनता महाराष्ट्र की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाती है। वर्तमान में ये वोट बीजेपी, कांग्रेस, एनसीपी और शिंदे गुट में बंटे हुए हैं। यदि ठाकरे बंधु एक साथ आते हैं, तो मराठी वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा उनके पक्ष में आ सकता है। 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य की लगभग 70% आबादी मराठी भाषी है।
महायुती के लिए परेशानी
अगर यह गठबंधन वाकई आकार लेता है तो बीजेपी, एकनाथ शिंदे और अजित पवार के लिए यह बड़ा झटका हो सकता है। बालासाहेब ठाकरे की हिंदुत्ववादी विचारधारा के समर्थक एक बार फिर उनके वारिसों की ओर झुक सकते हैं, खासतौर पर शहरी क्षेत्रों जैसे मुंबई, नासिक और ठाणे में।
राजनीति में केंद्रबिंदु बन सकता है ठाकरे परिवार
शिवसेना की स्थापना के बाद से ही ठाकरे परिवार महाराष्ट्र की राजनीति में अहम रहा है। उनके प्रभावशाली भाषण, स्पष्ट सोच और ‘ठाकरी तेवर’ उन्हें बाकी नेताओं से अलग बनाते हैं। ऐसे में दोनों भाइयों का मेल राजनीतिक केंद्र को फिर से उनके इर्द-गिर्द केंद्रित कर सकता है।
संभव है कुछ वोटर्स की नाराज़गी
हालिया चुनावों में उद्धव ठाकरे की पार्टी को मुस्लिम और दलित समुदाय से अच्छा समर्थन मिला था। लेकिन अगर वो राज ठाकरे के साथ आते हैं, जो अपनी कट्टर हिंदुत्व छवि के लिए जाने जाते हैं, तो इन समुदायों का भरोसा डगमगा सकता है, और उनका झुकाव कांग्रेस या एनसीपी की ओर लौट सकता है।
दोनों दलों को मिल सकता है नया जीवन
जहां राज ठाकरे की पार्टी 2014 के बाद से कमजोर हुई है, वहीं उद्धव ठाकरे भी बीजेपी से अलगाव के बाद नई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। बीएमसी जैसे अहम चुनाव में अगर ये दोनों साथ उतरते हैं, तो बीजेपी के लिए स्थिति कठिन हो सकती है।
लेकिन क्या ये गठबंधन असल में मुमकिन है?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर दोनों दल एकजुट होते हैं, तो नेतृत्व किसके हाथ में होगा? साझा रणनीति क्या होगी? और क्या पुराने मतभेद खत्म हो पाएंगे? बीएमसी चुनाव इस गठबंधन की पहली परीक्षा हो सकती है, लेकिन इससे पहले पारिवारिक और वैचारिक दूरियों को पाटना जरूरी होगा।
अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या यह संभावित गठबंधन सिर्फ अटकलों तक सीमित रहेगा या ठाकरे परिवार महाराष्ट्र की राजनीति में एक नई कहानी लिखेगा।