UP News- उत्तर प्रदेश के महोबा जिले में घूंघट से निकल कर शीला नाम की महिला ने हैंडपंप मिस्त्री बन कर यह साबित कर दिया कि माहिला चाहें तो कुछ भी कर सकती हैं। महिला ने हैंडपंपों को ठीक करना शुरू किया तो वो अन्य महिलाओं के लिए आइकॉन बन गयी है। 64 वर्षीय शीला देवी आज खुद साइकिल चला कर हैंडपंप ठीक करने कई किलेमीटर दूर जाती हैं। उनका काम लोगों के लिए प्रेरणा से कम नहीं है।
UP News: शीला अन्य महिलाओं को कर रही हैं सशक्त

64 साल की उम्र में भी शीला देवी का हौसला काम के प्रति बुलंद है। शीला देवी हैंडपंप मिस्त्री बनकर अब तक 500 हैंडपंप की मरम्मत कर चुकी हैं। महिलाओं को भी यह हुनर सिखाने में जुटी हुई हैं। गांव में 20 से 25 लड़कियों को साइकिल चलाना भी सिखा चुकी हैं।
साइकिल चलाकर कई किलोमीटर दूर जा कर हैंडपम्प ठीक करने वाली 64 साल की बहादुर महिला हैं शीला देवी। जो अपनी हिम्मत और बहादुरी से दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणा बन कर उभरी हैं। महिलाओं को साइकिल चलाने का प्रशिक्षण वो निःशुल्क देती हैं। शीला एक संस्था के साथ जुड़कर काम कर रही हैं। शीला देवी के इस साहस की लोग तारीफे करते नहीं थकतें हैं।
UP News: मेरा सफर आसान नहीं था- शीला
शीला देवी अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए कहती हैं कि उन्होंने अपने संघर्ष के दिन भी देखे हैं। पुत्र के पैदा होने के बाद पति की मौत हो गई जिसके बाद ससुराल के लोगों ने भी प्रताड़ित किया। इसके बाद मजबूर हो कर अपने मायके आकर रहना पड़ा और फिर यहीं से संघर्ष की शुरुआत हुई।
अपनी ननद के गांव में रहकर मजदूरी कर अपने बच्चे को पालने लगी इसके लिए उन्होंने हैंडपंप सुधारने का काम शुरू किया। इसके बाद ग्रामीण उन्नति संस्थान का साथ मिला और धीरे-धीरे यह काम करने का सिलसिला और जुनून बढ़ता चला गया। इसके बाद यूनिसेफ से हैंडपंप सुधारने की भी ट्रेनिंग मिली साथ ही टूल किट भी दी गई।
महोबा जिले के कबरई ब्लॉक के तिंदौली गांव की रहने वाली शीला का विवाह वर्ष 1966 में हो गया था। उस वक्त उनकी उम्र नौ साल थी। 16 साल की उम्र में उन्होंने पुत्र को जन्म दिया। कुछ दिन बाद ससुराल वालों ने प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। वह अपने मायके पनवाड़ी चली गई। 13 साल वह अपने मायके में रहीं। वहीं उन्होंने इंटरमीडिएट तक पढ़ाई की फिर अपनी ननद के साथ तिंदौली गांव आ गई।
वर्ष 2000 में यूनिसेफ की ओर से हैंडपंप मरम्मत का प्रशिक्षण दिया गया। संस्था से साइकिल व टूल्स भी मिले। शीला बताती हैं कि लोकलाज की वजह से गांव के बाहर तक वह साइकिल लेकर पैदल जाती थी। घूंघट भी डालकर साइकिल चलाती थी।
आत्मनिर्भर बनकर अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के जज्बे ने उन्हें घूंघट की ओर से बाहर कर दिया। किसी की परवाह किए बिना वह घर से ही अब साइकिल पर बैठकर हैंडपंप मरम्मत का काम करने जाती है। साइकिल से रोजाना 70 से 80 किलोमीटर का सफर तय करती है। ब्लॉक के 18 गांव में 500 से ज्यादा हैंडपंप की मरम्मत का काम किया है। हैंडंपप की मरम्मत में उन्हें 150 से 250 रुपए तक मिलते हैं।
UP News: ग्रामीण करते हैं शीला की तारीफ

गांव वालों का कहना है कि शीला महिलाओं के लिए एक मिसाल हैं। बढ़ती उम्र भी उनका जज्बा कम नहीं कर सकी। वह महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में सराहनीय काम कर रही हैं। वर्ष 1995 में मध्य प्रदेश के दमोह में महिला सशक्तीकरण के लिए ‘मुझे भी गिनो’ अभियान चलाया गया। इसमें एमपी-यूपी के बुंदेलखंड के 14 जिलों को शामिल किया गया। शीला ने इसमें सहभागिता की। इसके बाद वर्ष 2000 में बुंदेलखंड के सभी जिलों में साइकिल यात्रा निकाली गई। इसमें भी वह शामिल हुई।
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