व्यक्तियों को कुचलकर भी आप उनके विचार नहीं मार सकते हैं। यह हम नहीं कह रहे,यह विचार हैं देश के लिए महज 23 साल की उम्र में हँसते-हँसते फांसी को गले लगाने वाले शहीदआज़म भगत सिंह की उन्होंने आज से ठीक 86 साल पहले सुखदेव और राजगुरु जैसे दो अन्य वीरों के साथ आज ही के दिन यानि 23 मार्च, 1931 को शाम 7:33 बजे देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। पूरा देश उनका आभारी है आभार और सम्मान के साथ आज भी भगत सिंह की उपर्युक्त बातें प्रासंगिक हैं। भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु दुनिया छोड़ गए लेकिन भारत की आज़ादी के लिए जो ख्वाब उन्होंने देखा था उसे पूरा करने के लिए लाखों दिलों में क्रांति की ललक जगा गए। देश में हर साल इन वीर सपूतों के प्रति सम्मान और आदर व्यक्त करने के लिए इस दिन को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन वीरों को याद किया।

भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव के ऊपर अंग्रेजों की असेंबली में 8 अप्रैल 1929 को अपने साथियों के साथ केन्द्रीय विधायी सभा में इंकलाब जिंदाबादके नारे लगाते हुए बम फेंकने का आरोप लगाया गया था। उन पर हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ सुनवाई के बाद इन्हें 24 मार्च को फांसी देने का फैसला किया गया लेकिन भारी विरोध और जनाक्रोश को देखते हुए अंग्रेजों ने इन वीरों को एक दिन पहले 23 मार्च 1931 को ही लाहौर के जेल में शाम 7:33 बजे फाँसी पर लटका दिया गया था। रात में ही उनके शरीर का दाह-संस्कार सतलुज नदी के किनारे कर दिया गया था। अंग्रेजों के इस कायरता से भरे कारनामे के बाद उनके जन्म स्थान फिरोज़पुर में भारी संख्या में लोग जमा हुए और वहां मेले लगने लगे तब से आज तक यह अनवरत जारी है। वर्तमान में हुसैनवाला (भारत-पाक सीमा) में बने राष्ट्रीय शहीद स्मारक पर भी एक बहुत बड़े शहीदी मेले का आयोजन हर साल किया जाता है।

शहीद दिवस पर जानें भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव की कहानी

भगत सिंह

भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उनका पैतृक गांव खट्कड़ कलाँ है जो पंजाब, भारत में है। उनके पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती था। भगत सिंह का परिवार एक आर्य-समाजी सिख परिवार था।

13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में हुए हत्याकांड ने भगत सिंह को क्रांति के लिए प्रेरित किया था। भगत सिंह एक अच्छे वक्ता, पाठक व लेखक भी थे। जिसकी वजह से उन्हें सुनकर,पढ़कर हजारों की संख्या में लोग प्रभावित हुए और स्वाधीनता के आन्दोलन में कूद पड़े। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखा व संपादन भी किया।

राजगुरु

राजगुरू का जन्म 24 अगस्त, 1908 को पुणे ज़िले के खेड़ा गाँव में हुआ था उनके पिता का नाम श्री हरि नारायण और उनकी माता का नाम पार्वती बाई था। जीवन के शुरुआती सफ़र में ही राजगुरु देश सेवा के लिए अंग्रेजों के खिलफ कूद पड़े थे। राजगुरू ने 19 दिसंबर, 1928 को भगत सिंह के साथ मिलकर लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक पद पर नियुक्त अंग्रेज़ अधिकारी जेपी सांडर्स को गोली मारी थी। सांडर्स की हत्या के बारे में उन्होंने कहा था कि वे पंजाब में आज़ादी की लड़ाई के नायक लाला लाजपत राय की पुलिस पिटाई में हुई मौत का बदला लेना चाहते थे।

सुखदेव

सुखदेव का जन्म पंजाब के लुधियाना ज़िले के पुराने किले के पास नौघरा इलाक़े में 15 मई, वर्ष 1907 को हुआ था। उनकी माता का नाम रल्ली देवी और पिता का नाम राम लाल था। युवा होने की दहलीज पर पहुँचते ही सुखदेव अंग्रेजों के खिलाफ उतर गए और क्रांतिकारी पार्टी के सदस्य बन गए थे।सुखदेव शहीद भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद के क़रीबी सहयोगी थे। सुखदेव ने पूरे भारत में क्रांतिकारी गतिविधियाँ बढ़ाने और संगठन की इकाइयाँ बनाने में सक्रिय भूमिका निभाई थी। सुखदेव हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के भी सक्रिय सदस्य थे। क्रन्तिकारी गतिविधियों को गाँधी जी द्वारा नकारे जाने के बाद सुखदेव का मार्च 1931 में लिखा ख़त काफी चर्चा में रहा था।

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