अखिलेश सरकार ने ओबीसी की सत्रह जातियों को एससी कैटेगरी में शामिल किया था। मंगलवार इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अखिलेश की इस कोशिश को बड़ा झटका दिया है। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने इन पिछड़ी जातियों को एससी में शामिल करने के फैसले पर रोक लगा दी है। यूपी सरकार को आदेश दिया है कि कोर्ट का फैसला आने तक इन जातियों को एससी का जाति प्रमाण पत्र जारी न करे। कोर्ट ने समाज कल्याण विभाग को भी निर्देश दिये है कि वह हर जिले के डीएम को इस बात का सर्कुलर जारी कर दे और कोर्ट का फैसला आने तक वह किसी शख्स नया सर्टिफिकेट जारी न करें।

मुख्य न्यायाधीश डीबी भोंसले और न्यायाधीश यशवंत वर्मा की बेंच ने गोरखपुर की सामजिक संस्था डॉ. भीमराव अम्बेडकर ग्रंथालय सेवा समिति की पीआईएल की सुनवायी के बाद दिया है। पीआईएल में कहा गया था कि अखिलेश सरकार ने 22 दिसंबर 2016 को सत्रह ओबीसी जातियों को एससी में शामिल किया था। इस तरह के फैसले लेने का उन्हें कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि नियम के मुताबिक कोई भी सरकार जातियों को एससी कैटेगरी में न तो शामिल कर सकती है और न ही हटा सकती है। याचिकाकर्ता की तरफ से कोर्ट में दलील दी गई कि जातियों को एससी में शामिल करने या हटाने का अधिकार सिर्फ संसद में कानून बनाकर ही किया जा सकता है। अर्जी में कहा गया था कि, विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अखिलेश सरकार ने यह फैसला वोटर को लुभाने के लिए लिया था।

अर्जी में यह भी कहा गया,‘कि साल 2005 में मुलायम सिंह  की सरकार ने भी कई जातियों को एससी कैटेगरी में शामिल किया था, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उस फैसले को रद्द कर दिया था। अखिलेश सरकार ने ओबीसी की जिन सत्रह जातियों को एससी में शामिल करने का फैसला लिया था, उनमे कहार- कुम्हार, मांझी, गोंड, प्रजापति, राजभर, निषाद और मल्लाह भी शामिल हैं। अदालत इस मामले में नौ फरवरी को दोबारा सुनवाई करेगी। अदालत के इस फैसले से यूपी की अखिलेश यादव सरकार को बड़ा झटका लगा है।

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