Pichoda: पिछोड़ा इस नाम का जिक्र होते ही बहुत अच्छा लगता है। पिछोड़ा एक ऐसा पारंपरिक कुमाऊंनी पोशाक, जिसका उपयोग विवाह समारोह में शामिल होने वाली विवाहित महिलाओं द्वारा किया जाता है। उदाहरण के लिए विवाह, नामकरण या यज्ञोपवीत समारोह।पिछोड़े को बेटी की मां और सास द्वारा विवाह समारोह के दौरान दुल्हन को उपहार स्वरूप दिया जाता है। इसलिए, यह हर महिला के लिए एक बेशकीमती उपहार है क्योंकि इसमें उसकी शादी से जुड़ी यादें होती हैं।बदलते समय के साथ आज पिछोड़ा पहाड़ ही नहीं बल्कि शहरों में अपनी अलग पहचान बना चुका है।
फिर चाहे शादी हो या सगाई, कलशयात्रा हो या कोई उत्सव।दरअसल बदलते समय के साथ ही आज इसका महत्व भी तेजी के साथ बढ़ा है। यही वजह है कि कई लोग इसे ट्रेंडी फैशन मानकर पहनना बेहद पसंद कर रहे हैं। अब ये कुमाऊंनी महिलाओं की पहचान ही नहीं रह गया है, बल्कि कई राज्य के लोग इसे बेहद पसंद भी कर रहे हैं।
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Pichoda: शुभता का प्रतीक
Pichoda: पारंपरिक रूप से रंगवाली पिछोड़ा ही इसे क्यों कहा जाता है, क्योंकि जिस दौर से ये चलन में आया तब इसका हस्त-निर्मित होता था।जिसे वानस्पतिक रंजकों से रंगा जाता था। उसके बाद उस पर बूटियां एवं अन्य शुभ आकृतियां हाथों से उकेरी जाती थीं।इनके निर्माण में केवल दो रंग सुर्ख लाल और केसरिया ही इस्तेमाल होते हैं।क्योंकि भारतीय सभ्यता में इन दोनों रंगों को मांगलिक माना गया है।
सुर्ख लाल रंग ऊर्जा व वैभवमय दाम्पतिक जीवन का सूचक माना जाता है और केसरिया रंग पवित्र धार्मिकता एंव सांसारिक सुखों का संकेत होता है। इन दो रंगों का संयुग्म महिला को अपने वैवाहिक जीवन में सौभाग्य प्रदान करता है। हालांकि समय बदलने के साथ ही रंगवाली पिछोड़ा बनाने का तरीका भी पूरी तरह से बदल गया है। अब ये मशीनों की मदद से तैयार किया जाता है। पिछोड़ा का कपड़ा एक सामान्य कपड़ा ही होता है पर इसके रूपांकन का आभास एक उत्सवमय प्रतीक प्रस्तुत करता है ।
Pichoda: मांगलिक कामों में पहना जाता है पिछोड़ा
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Pichoda: अक्सर सभी मांगलिक कामों में पिछोड़ा पहना जाता है। मसलन शादी, नामकरण, जनेऊ, व्रत त्यौहार, पूजा- अर्चना जैसे मांगलिक मौके पर परिवार और रिश्तेदारों में महिला सदस्य विशेष तौर से इसे पहनती हैं। पूजा- अर्चना जैसे मांगलिक मौके पर परिवार और रिश्तेदारों में महिला सदस्य विशेष तौर से इसे पहनती है। पारंपरिक हाथ के रंग से रंगे इस दुपट्टे को पहले गहरे पीले रंग और फिर लाल रंग से बूटे बनाकर सजाया जाता था।
रंगवाली के डिजाईन के बीच का हिस्सा इसकी जान होता है। इसके बीच में ऐपण की चौकी जैसा डिजाईन बना होता है। ऐपण से मिलते जुलते डिजाईन में स्वास्तिक का चिन्ह ऊं के साथ बनाया जाता है। भारतीय संस्कृति में इन प्रतीकों का अपना विशेष महत्व होता है। पिछोड़ा में बने स्वातिक की चार मुड़ी हुई भुजाओं के बीच में शंख, सूर्य, लक्ष्मी और घंटी की आकृतियां बनी होती हैं। स्वातिक में बने इन चारों चिन्हों को भी हमारी भारतीय संस्कृति में काफी शुभ माना गया है।
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