Supreme Court: महाराष्ट्र में तेजी से बदल रहे सियासी समीकरणों के बीच अब डिप्टी सीएम अजित पवार ने एनसीपी पर अपना हक जताया है। उन्होंने दावा किया है कि एनसीपी उनकी पाटी है, जबकि शरद पवार का कहना है कि ये जो जनता ही बताएगी कि पार्टी किसकी है? शरद पवार ने कड़ा एक्शन लेते हुए प्रफुल्ल पटेल और सुनील तटकरे को पार्टी से बाहर कर दिया है।
अजित पवार समेत उन 9 विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिका दायर कर दी है। जिन्होंने शिंदे सरकार में मंत्रीपद की शपथ ली है।एनसीपी ने अजित पवार और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली राज्य सरकार में मंत्री पद की शपथ लेने वाले 8 अन्य लोगों के खिलाफ अयोग्यता याचिका दायर की है।
ऐसे में इन परिस्थितयों से निपटने और राजनीतिक झगड़े और पार्टी से बगावत करने वाले विधायकों के लिए दल-बदल कानून बनाया गया है।इन कानून के तहत उन सांसदों/विधायकों को दंडित करने का प्रावधान है जो दल बदलते हैं।
Supreme Court: स्पीकर की भूमिका अहम
Supreme Court: इसके लिए संबंधित पार्टी को विधानसभा स्पीकर के पास ऐसा करने वाले सांसद/विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिका दायर करनी होती है। इस मसले पर स्पीकर फैसला लेते हैं और दलबदल करने वाले नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करते हैं। कानून के तहत उनकी सदस्यता भी जा सकती है।अक्सर स्पीकर पर ये आरोप लगते रहते हैं कि अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने में देरी होती है?
Supreme Court: जानिए सुप्रीम कोर्ट का क्या है कहना?
सुप्रीम कोर्ट की साल 1992 की संविधान पीठ की ओर से लिए गए एक फैसले के मुताबिक, अध्यक्ष/सभापति द्वारा निर्णय लेने से पहले कोर्ट इस पर फैसला नहीं सुना सकती है।अभी तक इसके लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है।लेकिन एक मामले में स्पीकर द्वारा अयोग्यता याचिका पर फैसला लेने के लिए कोर्ट ने समय सीमा तय कर दी थी।
ये वाद था केशम मेघचंद्र सिंह बनाम मणिपुर का। जिसमें विधानसभा स्पीकर के मामले में शीर्ष अदालत ने 2020 में फैसला सुनाया था।सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि स्पीकर को उचित समय अवधि में निर्णय लेना होगा।अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेने के लिए कोर्ट ने 3 महीने निर्धारित किए थे।
इसके साथ उच्चतम न्यायालय ने संसद को दसवीं अनुसूची के तहत विवादों का फैसला करने के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की अध्यक्षता में एक स्थायी न्यायाधिकरण जैसे एक स्वतंत्र तंत्र प्रदान करने के लिए संविधान में संशोधन करने का भी सुझाव दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अब समय आ गया है कि संसद इस पर पुनर्विचार करे कि जब अध्यक्ष किसी विशेष राजनीतिक दल से संबंधित हो तो क्या अयोग्यता याचिकाएं अर्ध-न्यायिक प्राधिकार के रूप में अध्यक्ष को सौंपी जानी चाहिए।कोर्ट ने कहा था, ‘संसद दसवीं अनुसूची के तहत उत्पन्न होने वाले अयोग्यता से संबंधित विवादों के मध्यस्थ के लिए संविधान में संशोधन करने पर गंभीरता से कर सकती है।
Supreme Court: SC ने दिया था सुझाव
सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया था कि निष्पक्षता बनी रहे इसके लिए कुछ कदम अहम हैं। अध्यक्ष की जगह सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट जज या हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में समिति बनाकर मामलों को देखा जा सकता है।
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