सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को DNA Test को लेकर सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा कि बच्चे के पिता का नाम जानने के लिए हमेशा डीएनए टेस्ट अनिवार्य नहीं है। कोर्ट ने कहा कि तलाक के मामलों में भी DNA टेस्ट के आदेश रूटीन मैनर में नहीं दिए जाने चाहिए। बात-बात पर DNA Test शोभा नहीं देता है। कोर्ट ने आगे कहा कि अगर कभी किसी के साथ कोई जबरदस्ती संबंध बनाया गया हो और किसी महिला के साथ रेप किया गया हो, ऐसी परिस्थिति में बच्चे के पितृत्व को साबित करने के लिए डीएनए टेस्ट करवाना चाहिए।
कोर्ट ने आगे कहा कि अगर कोई कपल अपनी मरजी से तलाक ले रहा हो तो भी डीएनए टेस्ट अनिवार्य नहीं है। कोर्ट ने अपना अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि पहले आधारों को देखना और समझना चाहिए फिर DNA टेस्ट की इजाजत देना उचित है। बता दें कि जस्टिस आर सुब्रमण्यम की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह फैसला सुनाया गया है। बेच ने अपने फैसले में कहा कि अदालतें पारिवारिक मामलों में व्यभिचार के सिर्फ संदेह के आधार पर नहीं कोई भी निर्णय नहीं ले सकती है बल्कि तथ्यों को जांचने के बाद ही DNA टेस्ट की इजाजत देनी चाहिए।

बच्चे के पितृत्व को साबित करने के लिए DNA Test का उपयोग किया जा सकता है
उन्होंने आगे कहा कि यहां सुप्रीम कोर्ट को तय करना था कि तलाक के मामले में बच्चे के पितृत्व को साबित करने के लिए DNA टेस्ट करवाना उचित है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसके बाद देखेंगे कि इस पर क्या किया जा सकता है।
बताते चलें कि हाल ही में एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दो बच्चों के डीएनए टेस्टिंग पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने कहा है कि बच्चे कोई सामान नहीं हैं जिनको फरेंसिक लैब भेजा जाए। दो बच्चों की डीएनए टेस्टिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह निजता के अधिकार के खिलाफ है।
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