आज Supreme Court में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग यानी EWS के 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था को लेकर अहम फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने EWS के 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था को जारी रखने के फैसले पर मुहर लगा दी है। दरअसल, सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में EWS वालों को मिलने वाला 10 प्रतिशत का आरक्षण बरकरार रहेगा या नहीं इस पर Supreme Court अपना फैसला सुनाएगी।
Supreme Court ने 27 सितंबर को सुरक्षित रखा था फैसला
दरअसल, यह व्यवस्था केन्द्र सरकार की ओर से साल 2019 में लागू की गई थी जिसके लिए संविधान में 103वां संशोधन किया गया था। इसके बाद तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी डीएमके समेत कई याचिकाकर्ताओं ने इस व्यवस्था को संविधान के खिलाफ बताते हुए अदालत में चुनौती दी। आखिरकार, 2022 में संविधान पीठ का गठन हुआ और 13 सिंतबर को चीफ जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ,जस्टिस दिनेश महेश्वरी, जस्टिस रवींद्र भट्ट और जस्टिस जेबी पादरीवाला की संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू की और 27 सितंबर को सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।
चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच सुनाएगी फैसला
Supreme Court ने इस मामले में लगभग सात दिनों तक पक्ष और विपक्ष की तमाम दलीलें सुनीं और इसके बाद 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। इसके बाद अदालत ने सोमवार यानी आज सुबह अपना फैसला सुना दिया है। चीफ जस्टिस यूयू ललित 8 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं, इसलिए आज ही फैसला सुनाने की बात कही गई थी।
दोनों पक्षों ने रखी थी अपनी दलीलें
तमिलनाडु की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफाड़े ने EWS कोटा का विरोध करते हुए कहा था कि वर्गीकरण करने के लिए आर्थिक मानदंड को आधार नहीं बनाया जा सकता है। यदि कोर्ट इस आरक्षण को बरकरार रखना चाहती है तो उसे इंदिरा साहनी (मंडल) फैसले पर फिर से विचार करना होगा।
वहीं दूसरी ओर, तत्कालीन अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल ने संविधान में किए गए संशोधन का पुरजोर बचाव करते हुए कहा था कि यह आरक्षण अलग है तथा इसे किसी तरह की सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 50 प्रतिशत कोटा से छेड़छाड़ किए बिना लागू किया गया है। साथ ही पक्षकर्ता ने कहा था कि संशोधित प्रावधान संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है।
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