मिजोरम में लुशाई हिल्स पर रहने वाले आदिवासियों को मुआवज़ा दिए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा है। एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ए एन एस नाडकर्णी ने कोर्ट को बताया कि इस मामले में वह सरकार से बात कर इस मामले में केंद्र का पक्ष कोर्ट को बताएंगे।
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में लुशाई हिल्स पर रहने वाले मिजोरम के आदिवासियों के मुखियाओं के समूह (मिज़ो चीफ्स कॉउंसिल) ने कहा कि सदियों से इन पाहड़ियों पर हम रह रहे हैं और स्वतंत्रता के बाद 1954 में हमे इस इलाके को सरकार के अधीन करने के बाद मुआवज़ा देने की बात कही गई थी लेकिन इतने समय के बाद भी हमे मुआवज़ा नही दिया गया है। संगठन ने मांग रखी की उन्हें या तो इस इलाके पर पूर्ण प्रशासनिक नियंत्रण दिया जाए या फिर सरकार 500 करोड़ का मुआवज़ा दे।
ऐतिहासिक रूप से मिजोरम के लुशाई पहाड़ियों के प्रमुखों के पूर्वजों ने इन क्षेत्रों पर शासन किया। उन्होंने संबंधित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों पर विभिन्न तरह के टैक्स लगाए, और यहां तक कि वह आपराधिक मामलों में आरोपी को माफी भी दे देते थे। अंग्रेजों ने 1895 में लुशाई पहाड़ी पर कब्जा कर लिया लेकिन उन्हें देश के अन्य भागों में रियासतों के शासकों की तरह काम करने की अनुमति दी।
आज़ादी के बाद लुशाई हिल्स को असम का एक हिस्सा बना दिया गया था। 1951 में असम स्वायत्त (जिला परिषद का संविधान) लागू किया गया, जिसमें लुशाई हिल्स समेत छह स्वायत्त जिलों का निर्माण हुआ। तीन साल बाद, असम लुशाई हिल्स (चीफ्स राइट्स का अधिग्रहण) अधिनियम पारित किया गया और राज्य ने इन प्रमुखों के पारंपरिक अधिकारों को ले लिया और हर साल के राजस्व के बराबर 10 साल का राजस्व मुआवज़े को तौर पर दिया। वक्त के साथ इनकी आय के पारंपरिक स्रोत खत्म हो गए और यह गरीबी का हालत में चले गए।
1999 में मिज़ो चीफ्स काउंसिल ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर 509 करोड़ रूपये की मांग की थी या फिर उनके पूर्वजों की तरह इस इलाके पर प्रशासनिक और वित्तीय नियंत्रण देने के लिए कहा था।
मामले में गुवाहाटी हाईकोर्ट राज्य सरकार को आदिवासियों को मुआवज़ा देने का आदेश दे चुका है लेकिन राज्य सरकार का कहना है कि यह केंद्र सरकार का मामला है। केंद्र सरकार को इन्हें मुआवज़ा देने चाहिए। केंद्र और राज्य सरकार के आपसी खींचतान के कारण इन आदिवासियों को सुप्रीम कोर्ट का रुख करना पड़ा। मिजोरम सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामे दायर किया है जिसमें कहा गया है कि उसने परिषद के दावे का समर्थन किया है, लेकिन प्रमुखों द्वारा मांगे गए मुआवज़े को दने में अपनी वित्तीय असमर्थता व्यक्त की है।
याचिका में तीसरे प्रतिवादी रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि यह मामला राज्य सरकार के कार्यकारी क्षेत्र का है इसलिए अगर कोई मुआवज़ा दिया जाना है तो वह राज्य सरकार दे।
मामले पर जस्टिस मदन बी लोकुर की बेंच 4 जनवरी को अगली सुनवाई करेगी।