समलैंगिक संबंधों पर IPC की धारा 377 को अपराध के दायरे से बाहर करने की मांग को लेकर दायर LGBT समुदायों के 5 लोगों की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (8 जनवरी) को विचार के लिए संवैधानिक पीठ के पास भेज दिया है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने मामले को बड़ी बैंच को रैफर किया है।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने नाज फाउंडेशन की ओर से दायर क्यूरेटिव पिटिशन को संवैधानिक पीठ के पास भेज दिया था। नाज फाउंडेशन की क्यूरेटिव पिटिशन में कहा गया है कि ये कानून लोगों के मूल अधिकारों का हनन करता है और इसे रद्द किया जाना चाहिए। दरअसल, 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 377 में बदलाव करने से मना कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कानून में बदलाव करना संसद का काम है। नाज़ फाउंडेशन मामले में दिए फैसले में हाईकोर्ट ने धारा-377 को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए धारा-377 यानी समलैंगिकता को अपराध करार दिया था।
इसके खिलाफ दायर संशोधन याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी। समलैंगिक अधिकारों के लिए काम करने वाले एनजीओ नाज़ फाउंडेशन ने क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल की थी। 2 फरवरी 2016 को कोर्ट में कपिल सिब्बल ने वयस्कों के बीच बंद कमरे में सहमति से बने संबंधों को संवैधानिक अधिकार बताया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही नहीं था। हालांकि अदालत में मौजूद चर्च के वकील और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील ने याचिका का विरोध किया था। तत्कालीन चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने मामले को पांच जजों के संविधान पीठ में भेज दिया था। पिछले साल डांसर एनएस जौहर, शेफ रितू डालमिया, होटल मालिक अमन नाथ समेत कई लोगों ने भी इसी तरह की याचिका दायर की थी।
अब यहां गौर करने वाली बात यह है कि निजता के अधिकार के फैसले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने नाज़ फाउंडेशन की जजमेंट का जिक्र करते हुए कहा है कि LGBT के अधिकार को तथाकथित नहीं कहा जा सकता और सेक्सुअल ओरिएंटेशन (Sexual Orientation) निजता का महत्वपूर्ण अंग है। संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के मूल में निजता का अधिकार है और सेक्सुअल ओरिएंटेशन उसमें बसा हुआ है।