Public Interest Litigation: हमारे देश में कानून सर्वोपरि है।कानून का पालन नहीं होने, नियमों के उल्लंघन,मानवाधिकारों और मौलिक अधिकारों का हनन होने पर कोई भी व्यक्ति शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है।इसके लिए एक प्रकार की याचिका कोर्ट के समक्ष दायर करनी होती है। यही जनहित याचिका कहलाती है।
आज कई ऐसे बड़े मुद्दे हैं जिसमें लोगों को न्याय नहीं मिलने या उनके मूल अधिकारों का हनन होने पर कोर्ट में जनहित याचिका दायर की जाती है। इसे ही अंग्रेजी में भी कहा जाता है।
‘जनहित याचिका (Public Interest Litigation-PIL)’ की अवधारणा अमेरिकी न्यायशास्त्र से ली गई है।यह न्यायिक सक्रियता के माध्यम से अदालतों द्वारा जनता को दी गई एक प्रकार की शक्ति होती है।नियमानुसार इसे केवल उच्च न्यायालय अथवा सर्वोच्च न्यायालय में दायर किया जा सकता है।
आमतौर पर यह रिट एवं दूसरी याचिकाओं से अलग होती हे।एक सामान्य रिट आम व्यक्तियों या संस्थानों द्वारा अपने लाभ के लिये दायर की जाती है, जबकि जनहित याचिका आम जनता के लाभ के लिये दायर की जाती है।
भारत के संविधान में जनहित याचिका की अवधारणा अनुच्छेद 39 में निहित सिद्धांतों के अनुकूल है,ताकि कानून की मदद से त्वरित सामाजिक न्याय की रक्षा और उसे विस्तारित किया जा सके।जनहित याचिका अक्सर आम नागरिक की सुरक्षा, प्रदूषण, आतंकवाद, निर्माण संबंधी खतरे आदि को देखते हुए दायर की जा सकती है।
Public Interest Litigation: जानिए PIL का अधिकार देने वाली हस्ती के बारे में
Public Interest Litigation:सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी.एन. भगवती देश के 17वें मुख्य न्यायाधीश थे। उन्होंने 12 जुलाई 1985 से 20 दिसंबर 1996 तक बतौर चीफ जस्टिस सेवाएं दी थीं।
पीआईएल को 1986 में समाज के पिछड़े और सुविधाहीन लोगों के हितों की रक्षा के उद्देश्य से पेश किया गया था। उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने देश की विभिन्न जेलों से 40,000 विचाराधीन कैदियों को रिहा करने का फैसला सुनाया था। इसके बाद से यह न्यायिक व्यवस्था का अहम हिस्सा बन चुकी है।
भारतीय न्याय व्यवस्था में चीफ जस्टिस पीएन.भगवती का सबसे बड़ा योगदान है।
उन्होंने ही जनहित याचिका (पीआईएल) लाकर देश की न्यायिक तस्वीर बदली। आम लोगों को 1986 में मिले पीआईएल के अधिकार से न्यायिक सक्रियता का युग शुरू हुआ।इसके तहत ही ताजमहल के संरक्षण से लेकर शहरों की सफाई तक हजारों मामलों पर न्यायपालिका ने ऐतिहासिक फैसले सुनाए।
Public Interest Litigation: जानिए जनहित याचिका दायर करने की प्रक्रिया
Public Interest Litigation: ये बेहद जरूरी है कि जनहित याचिका दायर करने से पूर्व एक याचिकाकर्ता को मामले की पूरी जानकारी और तहकीकात करनी चाहिए। अगर जनहित याचिका कई व्यक्तियों से संबंधित है तो याचिकाकर्ता को सभी लोगों से परामर्श करना चाहिए। एक बार जब किसी व्यक्ति द्वारा जनहित याचिका दायर करने का निर्णय ले लिया जाता है, तो उसे अपने केस को मजबूत करने के लिए सभी संबंधित जानकारी और दस्तावेज एकत्रित करने चाहिए।
ध्यान योग्य है कि जनहित याचिका जब उच्च न्यायालय में दायर की जाती है, तो अदालत में याचिका की दो प्रतियां जमा करनी पड़ती हैं। याचिका की एक प्रति अग्रिम रूप से प्रत्येक प्रतिवादी को भेजनी पड़ती है और इसका सबूत जनहित याचिका में जोड़ना पड़ता है।
दूसरी तरफ अगर जनहित याचिका को सर्वोच्च न्यायालय में दायर किया जाता है।ऐसे में कोर्ट के समक्ष याचिका की 5 प्रतियां जमा करनी पड़ती हैं। प्रतिवादी को जनहित याचिका की प्रति केवल तभी भेजा जाता है जब अदालत द्वारा इसके लिए नोटिस जारी किया जाता है।
जनहित याचिका दायर करने वाला व्यक्ति खुद भी बहस कर सकता है।इसके अलावा एक वकील को नियुक्त कर सकता है, लेकिन किसी भी मामले में, जनहित याचिका दाखिल करने से पहले एक वकील से सलाह लेने के लिए सलाह दी जाती है।
Public Interest Litigation: PIL दाखिल करने का शुल्क
Public Interest Litigation: किसी जनहित याचिका में वर्णित प्रत्येक प्रतिवादी के लिए 50 रूपये का शुल्क चुकाना पड़ता है। इसका उल्लेख याचिका में करना जरूरी है। हालांकि, पूरी कार्यवाही में होने वाला खर्च उस वकील पर निर्भर करता है, जिसे याचिकाकर्ता अपनी तरफ से बहस करने के लिए अधिकृत करता है।
Public Interest Litigation: किन मुद्दों पर दायर नहीं की जा सकती?
देश की शीर्ष अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका दायर करने के संबंध में महत्वपूर्ण दिशानिर्देशों की एक सूची जारी की है।जानिए निम्नलिखित मामलों में जनहित याचिका दायर नहीं की जा सकती है।
- मकान मालिक-किरायेदार से संबंधित मामले
- सेवाओं से संबंधित मामले
- पेंशन और ग्रेच्युटी से संबंधित मामले
- चिकित्सा और अन्य शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश से संबंधित मामले
- उच्च न्यायालय या अधीनस्थ अदालतों में लंबित मामलों की जल्दी सुनवाई के लिए याचिका
- दिशानिर्देशों की सूची में उल्लिखित 1 से 10 मदों से संबंधित मुद्दों को छोड़कर केन्द्र और राज्य सरकार के विभागों और स्थानीय निकायों के खिलाफ शिकायतें
क्या जनहित याचिकाओं को दायर करने के दौरान हो रहा अधिकारों का दुरुपयोग?
जनहित याचिकाओं का लगातार दुरुपयोग बढ़ता जा रहा है। साल 2010 में, सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्तिगत या अप्रासंगिक मामलों वाले जनहित याचिकाओं पर काफी नाराजगी जाहिर की थी। अदालतों को जनहित याचिकाओं को स्वीकार करने के संबंध में कुछ जरूरी दिशानिर्देश भी जारी किए थे।
इस संबंध में न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी और मुकुंदकम शर्मा की पीठ ने कहा था, कि “अंधाधुंध जनहित याचिकाओं को दायर करने से न्यायिक व्यवस्था पर अनावश्यक दबाव उत्पन्न होता है। इसके परिणामस्वरूप वास्तविक और प्रासंगिक मामलों के निपटारे में अत्यधिक देरी होती है।”
विभिन्न देशों में जनहित याचिका के उद्भव और विकास का अध्ययन करने के बाद न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी लिखते हैं कि, “गरीब वर्गों की मदद करने के उद्देश्य से जनहित याचिका के माध्यम से अदालतों ने जीवन और स्वतंत्रता की एक नई परिभाषा दी है।
जनहित याचिका के माध्यम से पारिस्थितिकी, पर्यावरण और जंगलों की सुरक्षा से संबंधित मामलों को भी समय-समय पर उठाया गया है। हालांकि, दुर्भाग्यवश ऐसे महत्वपूर्ण अधिकार क्षेत्र, जिसे अदालतों द्वारा सावधानी से तैयार किया गया है और देखभाल किया जाता है, कुछ गलत इरादों के साथ दायर किए गए याचिकाओं के माध्यम से दुरूपयोग किया जाता है।”
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