इस वैश्विक महामारी के दोरान सभी क्रिय कलाप जिस प्रकार से रुके हुए हैं वहीं मनुष्य इस युद्ध मे दोहरी मार झेलने के लिए मजबूर दिखाई पड़ता है| सरकार हर रोज नई नई सूचनाएं/ निर्देश जारी कर इस कोरोना को हराने के प्रयासो मे जुटी हुई है वही कुछ काम इतने जरूरी है उनको रोकना संभव नहीं है|
कोर्ट कचहरी के चक्कर से जैसे सभी लोग बचना चाहते हैं परंतु इस समय भी जब देश मे अधिकतम उद्योग बंद हैं वही वक़ालत का काम आज भी उसी चल रहा है| लॉकडाउन जब सभी उद्योगों को सोशल डीसटेन्सिग की वजह से बंद करना पड़ा है वही भारतीय न्यायपालिका ने इसका भी तोड़ निकल लिया है|
जैसा की हम सभी जानते हैं “आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है” ठीक उसी तर्ज़ पर भारतीय न्यायपालिका ने भी वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये अब काम-काज शरू करने का फेसला किया है| पहले यह सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के द्वारा ही प्रयोग किया जा रहा था परंतु अब इस तकनीक को निचली अदालतो में भी प्रयोग किया जाएगा|
आज मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य की निचली अदालतो के लिए वीडियो कांफ्रेंस के जरिये मामलो को सुनें के लिए कुछ दिशा निर्देश जारी किए हैं, जो कि निम्न है-
सामन्य
1-यह दिशानिर्देश COVID 19 के संक्रमण काल में अन्य आदेश तक के लिए जारी किये जा रहे हैं। पश्चातवर्ती काल में माननीय उच्च न्यायालय के पूर्व दिशा निर्देश अनुसार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की कार्यवाही सम्पादित की जाएगी।
2-वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के सफल एवं अधिकतम उपयोग हेतु तथा सभी स्टेक होल्डर्स की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए इस प्रक्रिया के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाना है।
3-इस सम्बन्ध में सर्वप्रथम अभिभाषक संघ, जेल एवं पुलिस एजेंसी से सम्पर्क स्थापित कर उन्हें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के उद्देश्य, प्रक्रिया एवं लाभ से अवगत कराना होगा। इस हेतु सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की सहायता से ऐसे पैरा लीगल वॉलेण्टियर्स की सेवाएं स्टेक होल्डर्स को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग प्रक्रिया की जानकारी देने में ली जा सकती हैं, जो वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की तकनीकि प्रक्रिया से भली-भांति परिचित हों।
4-यदि अधिवक्तागण के द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का प्रयोग अपने आवास अथवा अपने कार्यालय अथवा अन्य किसी रिमोट प्वाइंट से किया जाता है, तो उन्हें soberly dressed (सौम्य परिधान) में ही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग करना चाहिए और साथ ही शिष्टाचार के उन्हीं नियमों का पालन करना चाहिए, जो न्यायालय में भौतिक उपस्थिति के दौरान पालन किये जाते हैं।
आवेदन-पत्रों की प्रस्तुति
1- जिला न्यायिक स्थापना पर प्रस्तुत होने वाले आवेदन-पत्र सम्बन्धित जिला न्यायालय के आधिकारिक ई-मेल आई डी पर तथा तहसील न्यायिक स्थापना पर प्रस्तुत होने वाले आवेदन-पत्र सम्बन्धित तहसील न्यायिक स्थापना के आधिकारिक e-mail ID पर प्रस्तुत किये जा सकते हैं। (इस सम्बन्ध में जिला न्यायिक स्थापनाओं की आधिकारिक ई-मेल आई डी की सूची एनेक्सजर-ए संलग्न है)
2- अधिवक्तागण एवं पुलिस की ओर से प्रस्तुत होने वाले समस्त आवेदन-पत्रों, प्रतिवेदनों एवं केस डायरी को उपरोक्तानुसार ई-मेल पर प्रेषित किये जाने हेतु निर्देशित किया जा सकता है।
3- यदि कोई पक्षकार आवेदन पत्र पर देय न्यायालय शुल्क प्रस्तुत करने में असमर्थ है, तो वह इस संबंध में अपने कारण को दर्शित करते हुए और यह अण्डरटेकिंग देते हुए कि न्यायालयों के सामान्य कामकाज प्रारंभ होने के 72 घंटे के भीतर वह देय न्यायालय शुल्क अदा कर देगा तथा न्यायालयों के सामान्य कामकाज प्रारम्भ होने पर न्यायालय शुल्क का भुगतान करना पक्षकार अथवा अधिवक्ता (जैसी भी स्थिति हो) व्यक्तिगत दायित्व होगा। उपरोक्तानुसार न्यायालय शुल्क का भुगतान करने के दायित्वाधीन ही वर्तमान परिस्थिति में कोई मामला देय न्यायालय शुल्क का भुगतान किये बिना संस्थित किया जा सकेगा।
आवेदन-पत्र प्राप्ति के उपरांत प्रक्रिया
1- आवेदन-पत्रों को e-mail से प्राप्त कर सम्बन्धित जिला एवं सत्र न्यायाधीश महोदय के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए एक कर्मचारी को अधिकृत किया जा सकता है।
2- आवेदन-प्राप्त होने पर सम्बन्धित जिला न्यायाधीश द्वारा माननीय उच्च न्यायालय के आदेश क्रमांक Q-5 जबलपुर दिनांक 23.03.20 के अनुसार आवेदन-पत्र की Urgency निर्धारित की जा सकती है। यदि सम्बन्धित जिला न्यायाधीश उचित समझें, तो तहसील न्यायिक स्थापनाओं के मामलों में अर्जेंसी निर्धारित करने के लिए सम्बन्धित न्यायिक स्थापना के वरिष्ठ न्यायाधीश को भी अधिकृत कर सकते हैं।
3- ऐसे आवेदन-पत्र, जिन्हें सम्बन्धित जिला एवं सत्र न्यायाधीश महोदय के द्वारा अत्यावश्यक प्रकृति का नहीं माना गया है, उनके सम्बन्ध में सम्बन्धित अधिवक्ता /पक्षकार को e-mail के माध्यम से “Application not urgent, so not taken on board” की सूचना भेजी जा सकती है एवं निर्धारित प्रक्रिया का पालन किये बिना प्रस्तुत अथवा अपूर्ण अभिवचनों/ दस्तावेजों के प्रस्तुत आवेदन-पत्रों को “Incomplete, so not taken on board” की सूचना प्रेषित की जा सकती है।
4- ऐसे आवेदन-पत्र, जिन्हें सम्बन्धित जिला एवं सत्र न्यायाधीश महोदय के द्वारा अत्यावश्यक प्रकृति का माना गया है, उन्हें नियत दिन के लिए सुनवाई हेतु अधिकृत अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश अथवा मजिस्ट्रेट के समक्ष भेजा जा सकता है।
न्यायालय मे आवेदन-पत्र प्राप्ति पर प्रकिया
1.आवेदन-पत्र प्राप्त होने पर सम्बन्धित अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश/मजिस्ट्रेट मामले से सम्बन्धित अभिलेख/केस डायरी हेतु आहूत करने का निर्देश जारी कर सकते हैं और सुनवाई हेतु तिथि नियत कर सकते|
2- सम्बन्धित मामले की केस डायरी के लिए पुलिस अधीक्षक या थाना प्रभारी के ई-मेल आई डी पर आवेदन व मांग पत्र भेजा जा सकता है। पुलिस अधीक्षक नोडल अधिकारी नियुक्त कर सकते हैं, जिनके e-mail ID पर आवश्यक आवेदन के लिए प्रतिवेदन का मांगपत्र भेजा जाये और नोडल अधिकारी सभी थानों से समन्वय कर प्रतिवेदन व केस डायरी सम्बन्धित न्यायिक स्थापना के आधिकारिक e-mail पर प्रेषित कर सकते हैं।
3- न्यायालय से अभिलेख प्राप्ति हेतु CIS के SMS सुविधा का प्रयोग कर संबंधित रीडर या रिकॉर्ड कीपर को मांगपत्र भेजा जा सकता है।
4- अधिवक्ता के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के लिए उन्हें एस.एम.एस. के माध्यम से VidyoMobile app डाउनलोड किये जाने के पश्चात लिंक भेजी जा सकती है, जो 30 मिनट तक मान्य रहेगी तथा तकनीकि खराबी हो जाने की दशा में पुनः लिंक भेजी जा सकेगी तथा उसे पृथक से सुनवाई का समय भी बचाया जा सकेगा, जिसकी लिंक पृथक से प्रेषित की जाएगी।
5- वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान श्रवण अथवा दृश्य (Audio or Visual) की गुणवत्ता में अथवा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के सुचारू संचालन में कमी आने पर एकल बिंदु समन्वयक (Single Point of Contact) पर अविलम्ब सम्पर्क किया जाये और कार्यवाही के पश्चातवर्ती प्रक्रम पर ऐसी कोई आपत्ति ग्राहय नहीं होगी।
6- अधिवक्ता अपने तर्को को लिखित रूप में ई-मेल के माध्यम से भी सम्बन्धित न्यायालय को प्रेषित कर सकते हैं।
अभिलेख/ केस डायरी प्राप्ति पर प्रक्रिया
1-अभिलेख/केस डायरी प्राप्त होने पर मौखिक तर्क हेतु जी.पी./डी.पी.ओ. को व अभियुक्त के अधिवक्ता/ आवेदक के अधिवक्ता को सूचना एस.एम.एस. /ई-मेल के माध्यम से प्रदान की जा सकती है।
2- लोक अभियोजकों को केस डायरी से सम्बन्धित प्रतिवेदन (कैफियत) की प्रतिलिपि उनके ई-मेल पर पुलिस अधीक्षक अथवा थाना प्रभारी द्वारा ही प्रेषित की जा सकती है।
3- रिमाण्ड ड्यूटी के दौरान VidyoMobile App की लिक शेयर कर तर्क श्रवण किये जा सकते हैं। तर्क श्रवण करने के दौरान यदि कोई अतिरिक्त दस्तावेज पेश करना हो, तो उसे भी स्केन करके सम्बन्धित न्यायालय के ई-मेल के माध्यम से प्रेषित किया जा सकता है।
4-तर्क श्रवण करने के पश्चात पारित आदेश Digitally signed कर उक्त आदेश को CIS में Upload में किया जा सकेगा। यदि सम्बन्धित न्यायाधीश के डिजीटल हस्ताक्षर उपलब्ध न हो, तो आदेश की स्केन कॉपी/पीडीएफ फार्मेट को अपलोड किया सकेगा।
5- मामले के परिणाम के सम्बन्ध में अधिवक्ता को एस एम एस/ई-मेल के माध्यम से तत्काल प्रेषित की जा सकती है।
6- मामलों की केस डायरी PDF अथवा इलेक्ट्रॉनिक फार्मेट में न्यायालय में प्रस्तुत की जा सकेगी। इस हेतु केस डायरी का प्रत्येक पेज अन्वेषण अधिकारी या थाना प्रभारी द्वारा हस्ताक्षरित व पदमुद्रा युक्त होगी, ताकि Duplication से बचा जा सके। आवेदन-पत्रों को विधिवत दर्ज कर निराकरण पश्चात उनका परिणाम अंकित करने के लिए सिस्टम ऑफीसर को उपस्थित रखा जा सकता है।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इस पहल की सराहना की जानी चाहिए जो की इस प्रकार के एतिहासिक कदम उठा कर सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गयी है|