केरल के उच्च न्यायालय ने केरल आपदा और सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल (विशेष प्रावधान) अध्यादेश 2020 पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया और परिणामस्वरूप इस आदेश से पांच महीने की अवधि के लिए सरकारी कर्मचारियों के वेतन के एक हिस्से में कमी आए गयीं।
न्यायालय ने इससे पहले 27 अप्रैल को दो महीने के लिए इस आदेश पर रोक लगी दिया थी , जिसमें अगले पांच महीनों के लिए प्रति माह 6 दिनों के वेतन के आधर वेतन दिया जाना का राज्य सरकार का आदेश था|
उसके बाद 30 अप्रैल को सरकार ने सरकार कर्मचारियों के 25% वेतन तक कटौती का जारी अध्यादेश को लागू कर दिया जिसे कोरोना महामारी से उत्पन्न आपातकालीन स्थिति से निपटा जा सके|
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता सुधीर कुमार द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. के. पी. सत्येशन ने याचिकाकर्ताओं के पक्ष में दलीलों का नेतृत्व किया। उन्होंने कहा कि लगाए गए अध्यादेश को अनुचित जल्दबाजी के साथ और बिना किसी विचार-विमर्श के, केवल न्यायालय के आदेश पर काबू पाने के उद्देश्य से प्रख्यापित किया गया है , जिसने राज्य सरकारों के वेतन कटौती करने पर रोक रोक लगा दी थी।
कोर्ट मे आगे कहा कि “केरल सेवा नियम जो कि इस क्षेत्र को नियंत्रित करता है वह एक कानून है और इसके तहत अधिकारों को किसी अन्य क़ानून द्वारा नहीं बदला जा सकता है।
य़ह अध्यादेश असंवैधानिक है क्योंकि कोई विधायिका के पास यह क्षमता नहीं है और यह अध्यादेश एक तहत बड़े पैमाने पर भेदभाव करेगा । उनके अनुसार, एकमात्र तरीका था जिसमें वेतन में कटौती की जा सकती थी, वह है संविधान के अनुच्छेद 360 4 (ए) का सहारा, न कि किसी अध्यादेश द्वारा। ”
हालाँकि वरिष्ठ सरकारी वकील सी.पी.सुधाकर प्रसाद द्वारा एडवोकेट जनरल ने सहायता करते हुए राज्य सरकार की ओर से पेश एन मनोज कुमार ने कहा कि अध्यादेश का स्रोत प्रविष्टि 6 और प्रविष्टि 41 भाग II से है ना कि भारत के संविधान की 7 वीं अनुसूची की सूची III की 20, 23 और 29 प्रविष्टियों के माध्यम से प्रस्तुत नहीं किया गया है, ना ही कोई मौलिक अधिकारों को हनन हुआ है ।”यह इंगित करते हुए कहा कि अध्यादेश पारित करने में कथित जल्दबाजी की गई और उसे यह प्रतीत होता है कि आपातकालीन स्थिति उत्पन हो गयी है और इस स्थिति मे भारत के संविधान के अनुच्छेद 213 में अध्यादेश के प्रख्यापन का अधिकार होता है।”
पीठ ने कहा कि राज्य के लिए अध्यादेश को लागू करने की सम्पूर्ण क्षमता है और अध्यादेश 2को संविधान की 7 वीं अनुसूची की सूची II और सूची III में प्रविष्टियों में से एक के भीतर लाया जा सकता है।
पीठ ने आगे कहा कि “यह न्यायालय लागू किए गए अध्यादेश की घोषणा में ज्ञान पर सवाल नहीं उठा सकता है, खासकर जब अध्यादेश कर्मचारी के वेतन को, कुछ समय के लिए कम करेगा और इस बात की इजाजत सरकार को विशिष्ट स्थिति मे कानून प्राप्त है|
कोरोना वायरस रोग (कोविद 19 महामारी) के आपदा और सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल से उत्पन्न परिस्थितियों को देखते हुए अप्रैल 2020 से अगस्त 2020 तक पांच महीने की अवधि के लिए, सरकार तथा अन्य निकायों के कर्मचारियों की विभिन्न श्रेणियों के कुल मासिक वेतन और भत्ते (छह दिन) का 20% कम किया जाएगा है।
जैसा कि इस दावे के संबंध में कहा गया कि स्वास्थ्य कार्यकर्ता पूरी तरह से एक अलग वर्ग के रूप में व्यवहार के हकदार थे और उनको वेतन के बहिष्कार से बाहर रखा जाना चाहिए था, पीठ ने कहा कि “जब सरकार ने य़ह फेसला लिया कि सभी कर्मचारियों के वेतन को काटा जाएगा उस समय सरकार कर्मचारियों के वर्ग(कार्य) को ध्यान में ना रखते हुए उनके वेतन को आधर बना कर य़ह अध्यादेश लायी है जिसमें युक्तियुक्त वर्गीकरण के सिद्धांत को स्पष्ट रूप से दर्शाया है इस लिए कोर्ट स्वास्थ्य कर्मचारियों को इसमे सम्मिलित होने पर कोई राय नहीं देना चाहती है, । ”
पीठ ने मामले को जून के दूसरे सप्ताह में विचार के लिए सूचीबद्ध किया।