निपुन सक्सेना बनाम भारत सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों से कहा है कि वह 6 हफ्ते में इस बात का जवाब दें कि निर्भया फंड के अंतर्गत कितना पैसा बलात्कार पीड़ितों और एसिड हमलों के शिकार लोगों को दिया गया है।

इससे पहले जस्टिस मदन बी लोकूर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने एमिकस क्यूरी के सुझावों पर राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (NALSA) से चार से पांच व्यक्तियों की एक समिति गठित करने को कहा था जो यौन अपराधों और एसिड हमलों के मामलों में पीड़ित को मुआवज़ा देने के लिए कुछ आदर्श नियम तैयार करें।

9 जनवरी को NALSA के अध्यक्ष की अगुवाई में निर्भया निधि के उपयोग पर हुई एक बैठक में वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि समिति द्वारा तैयार किए गए नियम में कहा गया है कि FIR दर्ज होने के साथ ही बलात्कार पीड़ित को अंतरिम मुआवज़ा दे दिया जाना चाहिए।

यह राशि जिला स्तर पर संबंधित कानूनी सेवा प्राधिकरण या पारिवारिक अदालत के बैंक में खाते खोलकर वितरित की जा सकती है और इस प्रक्रिया की निगरानी मंत्रालय द्वारा की जानी चाहिए। जयसिंह ने अदालत से अनुरोध किया कि वह आदेश दें कि पैसा सीधे तौर पर पीड़ित के बैंक खाते में जाए या एक डिमांड ड्राफ्ट बनाकर उसे सौंप दिया जाए।

अदालत ने पूछा कि क्या NALSA और राज्य कानूनी सेवाओं के अधिकारियों ने पिछले वर्षों के बचे हुए निर्भया निधि के पैसों का भुगतान के लिए पुन: उपयोग किया है।  इस पर दिल्ली लीगल सर्विसेज अथॉरिटी के अध्यक्ष ने कहा कि वह इस बात का पता लगाऐंगे कि क्या वह ऐसा करने के हकदार हैं। इसके बाद इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट को बताया कि कुछ राज्य पीड़ितों और उन्हें दी गई धनराशि पर जानकारी देने के लिए अनिच्छुक थे। जयसिंह ने अनुरोध किया कि कोर्ट राज्य सरकारों को इस मामले में सहयोग करने का निर्देश दें। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को नोटिस जारी किया। मामले में 15 फरवरी की अगली सुनवाई होगी।

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