मुंबई में हिंदू जन आक्रोश सभा द्वारा आयोजित एक कथित हेट स्पीच कार्यक्रम पर रोक लगाने की मांग करने वाली एक हस्तक्षेप अर्जी पर बुधवार को सुनवाई हुई। एडवोकेट निजाम पाशा और रश्मि सिंह ने हस्तक्षेप करने वालों की ओर से 28 जनवरी को हिंदू जन आक्रोश सभा द्वारा आयोजित एक रैली को प्रकाश में लाया जिसमें मुसलमानों के सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार का आह्वान किया गया था। कोर्ट के सामने वकील निजाम पाशा ने मुस्लिम समुदाय के खिलाफ आपत्तिजनक बयानबाजी पर सवाल उठाया। वहीं सकल हिंदू समाज की ओर से कहा गया कि उसके संगठन को धार्मिक जुलूस निकालने का अधिकार है।
कोर्ट ने कहा जुलूस निकालने का अधिकार है लेकिन क्या ऐसी रैली के जरिये आपको देश का क़ानून तोड़ने की इजाज़त दी जा सकती है। ऐसी रैली के जरिये ऐसी बातें कहीं जा रही हैं जो अल्पसंख्यक समुदाय को नीचा दिखाने वाली हैं। कोर्ट ने उदाहरण देते हुए कहा उन्हें पाकिस्तान जाने के लिए कहा जा रहा है उन लोगों को जिन लोगों ने इस देश को अपना देश चुना। वो लोग आपके ही भाई बहन हैं। कोर्ट ने कहा कि भाषण का स्तर इस हद तक नीचे नहीं जाना चाहिए। हमारा देश विभिन्न नेताओं को स्वीकार करता है और यही हमारी संस्कृति भी है।
जस्टिस नागरत्ना ने भी चिन्ता जाहिर करते हुए कहा सवाल यह है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं। हमारे पास जवाहर लाल नेहरू और वाजपेयी जैसे स्पीकर रहे हैं। नेहरू जी की मध्यरात्रि की उस स्पीच को देखिए। उन्होंने कहा कि बयानों में अब कितना अंतर देखने को मिल रहा है अब हर पक्ष से इस तरह के आपत्तिजनक बयान सामने आ रहे हैं। यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर कोर्ट इन मामलों से कैसे निपटेगा?
उन्होंने कहा कि इस समस्या से निपटने का बेहतर तरीका है कि हम संयम बरते और दूसरे और सम्प्रदाय के लिए कोई अप्रिय बात ही न कहें। सुप्रीम कोर्ट 28 अप्रैल को इस याचिका पर सुनवाई करेगा उस दौरान महाराष्ट्र सरकार को इस मामले पर हलफनामा दाखिल करना है।