Bilkis Bano Case : सुप्रीम कोर्ट में आज यानी सोमवार के दिन बिलकिस बानो मामले पर बड़ा फैसला सुना दिया है, जिसमें 11 दोषियों की रिहाई के आदेश को निरस्त कर दिया गया है। इस मामले पर कोर्ट ने दोषियों की रिहाई की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि गुजरात सरकार रिहाई का निर्णय लेने के लिए सक्षम सरकार नहीं है।
जस्टिस नागरत्ना ने टिप्पणी करते हुए कहा, “सजा इसलिए दी जाती है कि भविष्य में अपराध रुके। अपराधी को सुधरने का मौका दिया जाता है, लेकिन पीड़ित की तकलीफ का भी एहसास होना चाहिए।”
गुजरात सरकार सजा में छूट देने में सक्षम नहीं
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने दोषियों की सजा को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई करते हुए कहा, ‘गुजरात सरकार सजा में छूट का आदेश पारित करने के लिए उपयुक्त सरकार नहीं है।’
सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि जिस राज्य में अपराधी पर मुकदमा चलाया जाता है और सजा सुनाई जाती है, वही राज्य ही दोषियों की माफी याचिका पर फैसला लेने में सक्षम है। ऐसे में कोर्ट ने 11 दोषियों की रिहाई का आदेश निरस्त करते हुए कहा, “सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि दोषियों की सजा माफी का आदेश पारित करने के लिए गुजरात सरकार सक्षम नहीं है, बल्कि महाराष्ट्र सरकार सक्षम है।” मालूम हों कि बिलकिस बानो केस में दोषियों को उम्रकैद की सजा मुंबई कोर्ट द्वारा सुनाई गई थी।
बता दें कि 15 अगस्त 2022 के दिन गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो गैंगरेप केस में उम्रकैद की सजा काट रहे सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया था। जिसके बाद गुजरात सरकार के इस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई थी।
Bilkis Bano Case : क्या है पूरा मामला ?
बता दें कि 2002 के गुजरात दंगों के दौरान 11 दोषियों के खिलाफ दायर मामले में बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के आरोप शामिल थे। जिसपर मुंबई की एक स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने 21 जनवरी 2008 को सभी दोषियों को बिलकिस बानो साथ सामूहिक दुष्कर्म करने और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के आरोप में उम्र कैद की सजा सुनाई थी। इसी फैसले मुंबई हाई कोर्ट ने भी कायम रखा था। बता दें कि बिलकिस बानो के साथ जब दुष्कर्म हुआ था तो वह 21 वर्ष की थीं और पांच महीने प्रेग्नेंट भी थीं। उनके परिवार के मारे गए सात सदस्यों में उनकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी।