बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने दिल्ली बीजेपी के प्रवक्ता और वकील अश्विनी उपाध्याय के उस पत्र पर संज्ञान लिया है जिसमें उन्होंने विधायकों और सांसदों को वकील के तौर पर कोर्ट में प्रैक्टिस करने से रोकने की मांग की थी। BCI ने इस मामले पर विचार करने के लिए तीन सदस्यों की समिति गठित की है। इस समीति में आरजी वाह, बीसी ठाकुर और डीपी ढल शामिल हैं। यह तीन दिन में इस पर अपना फैसला देंगे।

बता दें कि अश्विनी उपाध्याय ने BCI को पत्र लिखकर कहा था कि विधायकों और सांसदों को वकील के तौर पर कोर्ट में प्रैक्टिस करने से रोका जाए।  उपाध्याय ने अपने पत्र में  बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों का उल्लेख किया है और अपनी मांग के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व के फैसले का भी ज़िक्र किया है।

बार काउंसिल के अध्यक्ष को लिखे अपने पत्र में (पत्र देखें), अश्विनी उपाध्याय ने BCI के नियमों के अध्याय- II, भाग- VI का उल्लेख किया है जो ‘व्यावसायिक आचरण और शिष्टाचार के मानक’ से संबंधित है, खासकर ‘अन्य रोजगारों पर प्रतिबंध ‘ जिसमें कहा गया है कि एक वकील व्यक्तिगत रूप से किसी भी व्यवसाय में शामिल नहीं हो सकता (हालांकि वह इस तरह के किसी व्यवसाय में एक निष्क्रिय भागीदार हो सकता है), किसी भी व्यक्ति, सरकार, फर्म, निगम का पूर्णकालिक वेतनभोगी कर्मचारी नहीं हो सकता अगर वह प्रैक्टिस कर रहा है।

पत्र में यह भी कहा गया है कि कार्यपालिका और न्यायपालिका के सदस्यों को एक वकील के रूप में प्रैक्टिस की अनुमति नहीं है, लेकिन जनप्रतिनिधियों, जो एक सार्वजनिक सेवक भी हैं को यह अनुमति है। यह संविधन के अनुच्छेद 14-15 के खिलाफ है।

हालांकि इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि मार्च 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि अधिवक्ता अधिनियम और बार काउंसिल के नियमों के मुताबिक, वकील जो सांसद और विधायक बन गए हैं, वह अदालत में अपनी प्रैक्टिस जारी रख सकते हैं। अदालत ने यह भी कहा था कि भले ही इन सांसदों और विधायकों को वेतन और दूसरी सुविधाएं मिलती हैं लेकिन यह इन्हें वकील के तौर पर प्रैक्टिस से नहीं रोकती हैं। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने इस दावे को खारिज कर दिया था कि विधायकों और सांसदों को भी दूसरे पूर्णकालिक कर्मचारियों की तरह प्रैक्टिस करने से रोका जाना चाहिए। रोक सिर्फ तब है जब कोई सांसद या विधायक मंत्री बन जाता है।