अयोध्या मामले पर सुनवाई के दौरान शुक्रवार (6 अप्रैल) को सुप्रीम कोर्ट में वरीष्ठ वकील राजीव धवन और एडिशनल सॉलिसिटर जनरल मनिंदर सिंह और तुषार मेहता के बीच तीखी बहस हुई। मामला इतना बड़ा की कोर्ट को दखल देते हुए पूरे मामले को शांत कराना पड़ा। सुनवाई के दौरान फिर 1994 के इस्माइल फारुखी फैसले को संविधान पीठ को पास भेजने की मांग की गई जिस में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा था कि मस्ज़िद इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है।
अयोध्या में विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्वामित्व को लेकर सुप्रीम कोर्ट में के दौरान मुस्लिम पक्ष के वरिष्ठ वकील राजीव धवन, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल मनिंदर सिंह और तुषार मेहता और भगवान राम लला की ओर से वरिष्ठ वकील के परासरण के बीच नोकझोंक हो गई। राजीव धवन ने सुनवाई के दौरान एडिशनल सॉलिसिटर जनरल मनिंदर सिंह की बातों को नॉन सेंस कह दिया जिसके जवाब में तुषार मेहता ने कहा कि धवन ने घमंड का क्रैश कोर्स किया हुआ है।
राजीव धवन के बहस के तरीके पर मंदिर पक्ष की तरफ से भी सवाल उठाते हुए कहा गया कि मुस्लिम पक्ष कोर्ट से ही कह रहा है कि सवाल का जवाब कोर्ट दे। बहस के तरीके पर सवाल उठाए जाने पर वरिष्ठ वकील के. परासरण पर राजीव धवन ने टिप्पणी कर दी, जिसकी वजह से एक बार फिर कोर्ट का माहौल गर्म हो गया। मंदिर पक्ष की तरफ से कहा गया कि ये किस तरह की बहस हो रही है, कोई वरिष्ठ वकील पर इस तरह की टिप्पणी कैसे कर सकता है।
इस तमाम गहमा गहमी के बीच वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने मुस्लिम पक्ष की तरफ से दलीलें रखी और कहा कि 1994 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा था कि मस्ज़िद इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। कहीं न कहीं इसका असर भी अयोध्या मामले में हाईकोर्ट के फैसले पर रहा है इसलिए इस्माइल फारूखी के फैसले को संविधान पीठ के पास भेजा जाना चाहिए। राजीव धवन ने कहा कि अगर बहुविवाह का मामला संविधान पीठ के पास भेजा जा सकता है तो ये क्यों नही ? राजीव धवन ने कहा कि मामला महत्वपूर्ण है लिहाजा इसको 7 जजों की संविधान पीठ के पास भेजा जाए।
इस पर जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि पिछली सुनवाई में भी आपने इस मामले को संविधान पीठ को भेजने की मांग की थी. जस्टिस भूषण ने कहा कि पहले भूमि विवाद के मामले पर फैसला किया जाएगा उसके बाद इस मामले पर विचार किया जा सकता है। इस पर राजीव धवन ने कहा इस मामले पर इस्माइल फारूखी केस के फैसले का असर पड़ेगा इसलिए इसको पहले सुना जाना चाहिए। राजीव धवन ने कहा कि मीडिया कोर्ट रूम में मौजदू है कोर्ट क्यों नहीं कह देता की बहुविवाह का मामला इस मामले से ज्यादा जरूरी है।
धवन के बार-बार ये बात कहे जाने पर उत्तर प्रदेश की तरफ से पेश वकील तुषार मेहता ने राजीव धवन से कहा कि आप बार-बार मीडिया को बीच में क्यों ला रहे हैं। इससे संस्थान कमजोर होता है, संस्थान को धक्का पहुंचता है, जिसके बाद फिर दोनों पक्षो के बीच तीखी बहस हुई।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये बहस का कोई तरीका नहीं होता कि आप कह रहे हैं कि इस्माइल फारुखी केस को संविधान पीठ के पास भेज दिया जाए और आप वहां बहस करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी पक्षों को सुनने के बाद हम तय करेंगे कि मामले को संविधान पीठ के समक्ष भेजा जाए या नहीं। अब मामले की अगली सुनवाई 27 अप्रैल को होगी।