Allahabad High Court ने सेवा में नियमित हुए संग्रह अमीनो को सीजनल संग्रह अमीन पद पर नियुक्ति की तिथि से सेवा जोड़कर पेंशन और अन्य मिलने वाले सेवानिवृत्ति परिलाभों के भुगतान का निर्देश दिया है।
इस मामले में कोर्ट ने कहा कि पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ देने में कर्मचारी द्वारा दी गई सेवा की प्रकृति को देखा जाना चाहिए, न कि इस बात को देखा जाए कि उसकी नियुक्ति किस पद नाम से की गई है।
नियुक्ति चाहे अस्थाई ही क्यों न हुई हो पेंशन का लाभ मिलना चाहिए
कोर्ट ने कहा कि यह बात मायने नहीं रखती कि उनके द्वारा दी गई सेवा कर्मचारी है या सीजनल संग्रह अमीन के तौर पर कार्य कर रहे हैं। उनकी नियुक्ति चाहे दैनिक वेतन भोगी, अस्थाई या किसी और नाम से हुई हो, पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ देने में यह बात कहीं से भी मायने नही रखती है।
कोर्ट का कहना था कि याचिकाकर्ता दशकों से सीज़नल अमीन के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं, जो नियमित संग्रह अमीन देते हैं। उनको भी वह सभी लाभ दिए गए हैं, जो नियमित कर्मचारी को मिलते हैं। ऐसे में उनको पेंशन देने से इनकार करना न सिर्फ मनमाना है, बल्कि संविधान में दिए गए समानता के अधिकार का उल्लघंन भी है।
यह आदेश जस्टिस सरल श्रीवास्तव ने दिया। कोर्ट ने यह आदेश महाराजगंज तहसील में कार्य कर चुके कौशल किशोर चौबे की याचिका पर दिया।
कौशल किशोर चौबे की याचिका पर कोर्य ने सुनाया फैसला
कोशल किशोर चौबे साल 1976 से 1990 के बीच सीजनल संग्रह अमीन के तौर पर नियुक्त किए गए थे। तब से वह लगातार अपनी सेवाएं देते रहे थे। जिसके कारण सक्षम प्राधिकारी की संस्तुति पर संग्रह अमीन के पद पर नियमित कर दिया गया था।
उनका वेतन भी नियमित कर्मचारियों की तरह समय-समय पर पुनरीक्षित किया गया। लेकिन रिटायर होने के बाद उन्हें पेंशन का लाभ यह कहते हुए देने से इंकार कर दिया गया कि नियमितीकरण की तिथि से ही सेवाकाल माना जाएगा न कि मूल नियुक्ति तिथि से।
इस मामले में सरकारी अधिवक्ता का कहना था की सीजनल अमीन के तौर पर की गई सेवा को नियमित सेवा में जोड़ का पेंशन का लाभ नहीं दिया जा सकता है क्योंकि याचिकाकर्ता साल 2005 के बाद नियमित हुए। जब पेंशन का प्रावधान बंद कर दिया गया। इसलिए वह पेंशन पाने के हकदार नहीं हैं। कोर्ट ने सरकारी वकील के इस दलील को ठुकराते हुए याचिकाकर्ता को 3 माह में पेंशन व अन्य लाभ देने का निर्देश दिया।
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