Allahabad HC: उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से बीते सोमवार को एक अहम फैसला लिया गया। प्रदेश सरकार ने करीब 841 वकीलों को पैनल से हटा दिया। जिसमें 505 इलाहाबाद हाईकोर्ट की बेंच से थे। वहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच से भी करीब 336 वकीलों को पैनल से हटा दिया गया। जानकारी के मुताबिक परफॉर्मेंस के आधार पर हुई इन वकीलों की बर्खास्तगी हुई है।
Allahabad HC: बंदी प्रत्यक्षीकरण पर कोर्ट सख्त, कहा- पुलिस पर दबाव बनाना है मकसद
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं को लेकर गंभीर टिप्पणी की है।कोर्ट ने कहा कि अपहरण, फिरौती के मामलों में जिन मामलों में पुलिस अपनी विवेचना आगे बढ़ा रही हैं, उनमें इस तरह की याचिकाएं पुलिस पर दबाव बनाने के उद्देश्य से दाखिल की जा रहीं हैं। कोर्ट ने ऐसे उद्देश्य वाली याचिकाओं को गलत बताया।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने बांदा के कालिंजर थाने में अपहरण के मामले को लेकर दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज करते हुए की। कोर्ट ने कहा कि लड़की या लड़के के घर से भाग जाने के बाद अधिकतर मां-बाप को लगता है कि उन्हें अवैध रूप से बंधक रखा गया है, लेकिन ज्यादातर मामलों में जब इन जोड़ों को न्यायालय के समक्ष लाया जाता है तो यह सही नहीं पाया जाता। नतीजतन याचिकाएं खारिज कर दी जाती हैं।
Allahabad HC: नाबालिगों के मामले में यह टिप्पणी लागू नहीं
कोर्ट ने यह भी कहा कि नाबालिगों के मामले में यह टिप्पणी लागू नहीं होगी।
लड़की के पिता (याची) ने अपनी पुत्री को बहकाने के आरोप में 22 जनवरी 2022 को कालिंजर थाने में बीरू प्रजापति के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी। बाद में याची को पता चला कि उसकी पुत्री को रोहित भट्ट उर्फ मनीष कुमार शर्मा, चांद खां व दो अन्य के साथ मिलकर बंधक बना रखा गया है। उसने यह जानकारी विवेचक को दी।
विवेचना के दौरान रोहित भट्ट उर्फ मनीष शर्मा ने याची की लड़की के साथ शादी कर लेने का आधार बनाकर कोर्ट से सुरक्षा की मांग की। न्यायालय ने उसके पक्ष में आदेश किया। याची को भी पता चला कि उसकी बेटी की शादी मनीष शर्मा से हो चुकी है। इसके बाद पिता ने मनीष शर्मा पर कई गंभीर आरोप लगाते हुए याचिका दाखिल की।
याचिका में उस पर प्रेम जाल बिछाकर कई अन्य लड़कियों का जीवन बर्बाद करने, लड़कियों की तस्करी, देह व्यापार और उसकी पत्नी से फोन कर 5 लाख रुपये की फिरौती मांगने का आरोप लगाया। कोर्ट ने बेटी को पेश करने का आदेश दिया। सुनवाई के दौरान मनीष शर्मा की ओर से प्रस्तुत तथ्यों के आधार पर कोर्ट ने याचिका को पोषणीय मानने से इनकार कर दिया। कहा कि इस तरह की याचिका केवल पुलिस पर दबाव बनाने के सिवाय कुछ नहीं है।
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