कैसे हुआ शूद्र वर्ण का उद्भव, Who Were The Shudras में अंबेडकर देते हैं जवाब…

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Who Were The Shudras
Who Were The Shudras

Who Were The Shudras? इतिहास से जुड़ी पुस्तक है। जिसे डॉ. भीमराव अंबेडकर ने 1946 में लिखा था। यह पुस्तक बताती है कि शूद्र वर्ण का उद्भव कैसे हुआ। इस पुस्तक में अंबेडकर ने ऋगवेद, महाभारत और प्राचीन वैदिक ग्रंथों का उल्लेख किया है। इस पुस्तक में बताया गया है कि शूद्र मूल रूप से आर्य ही थे।

इस पुस्तक के प्राक्कथन में अंबेडकर ने लिखा है कि इस पुस्तक में दो प्रश्नों का उत्तर पाने का प्रयास किया गया है। 1. शूद्र कौन थे और 2 . उन्हें भारतीय आर्य समुदाय का चौथा वर्ण कैसे बनाया गया?

अंबेडकर ने पुस्तक में लिखा है-

  • शूद्र आर्य समुदाय में से ही थे।
  • एक समय था जब आर्य समुदाय केवल तीन वर्णों को ही मान्यता देता था।
  • शूद्र अलग से कोई वर्ण नहीं था। वह क्षत्रिय वर्ण से बना।
  • शूद्र का अलग वर्ण बनना, शूद्र राजाओं और ब्राह्मणों के बीच हुए संघर्ष का नतीजा था। पहले तो ब्राह्मणों का शूद्र राजाओं द्वारा अपमान किया गया और कष्ट दिया गया। उसके बाद ब्राह्मणों ने शूद्र राजाओं का उपनयन करना बंद कर दिया।
  • उपनयन संस्कार न होने पर शूद्र राजाओं का सामाजिक ह्रास हुआ और वे चौथे वर्ण में आ गए।

पुस्तक में अंबेडकर ने बताया है कि आज हिंदू समाज में जिन्हें शूद्र माना जाता है वे वह शूद्र नहीं हैं जिन्हें आर्य समुदाय में शूद्र बताया गया। दोनों संदर्भों में शूद्र शब्द का अर्थ अलग है। आर्यों के लिए जहां शूद्र एक अलग नस्ल के लोग थे वहीं हिंदू समाज के लिए शूद्र का अर्थ वे लोग हैं जिन्हें समाज में निचला समझा जाता है। जिन शूद्रों ने एक समय में ब्राह्मणों को कष्ट दिया वे वह शूद्र नहीं जिन्हें हिंदू समाज शूद्र कहता है। इसके अलावा अंबेडकर इस किताब में आर्यों पर चर्चा करते हैं और इस बात को मानने से इंकार करते हैं कि आर्य भारत के बाहर से आए थे।