हिंदू राष्ट्र पर बहस करने से पहले पढ़ लें सावरकर की किताब ‘हिंदुत्व’ का रिव्यू

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मौजूदा वक्त में एक विषय जिस पर सर्वाधिक चर्चा होती है, वह है हिंदुत्व। इस विषय पर इतनी चर्चा होने का एक कारण ये भी है कि 2014 से देश की सत्ता में जो पार्टी है उसका इस शब्द से गहरा संबंध है। हिंदुत्व, भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा से जुड़ा है इसलिए बीते सालों में कहीं न कहीं किसी बहाने इस पर बहुत चर्चा हुई। ऐसा नहीं है कि ये चर्चा 2014 के बाद ही शुरू हुई। वैसे तो हिंदुत्व बतौर विचाराधारा, का इतिहास आजादी से पहले का है लेकिन हिंदू महासभा, भारतीय जनसंघ और फिर भारतीय जनता पार्टी ने इसे राजनीति के केंद्र में लाया। इसके अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुड़े संगठनों के चलते भी हिंदुत्व पर इतनी बात होती है।

हिंदुत्व शब्द का इस्तेमाल तो काफी समय से भारतीय समाज में होता आ रहा था लेकिन विनायक दामोदर सावरकर को इस बात का श्रेय दिया जाता है कि उन्होंने हिंदुत्व को एक विचार के रूप में शक्ल दी। उन्होंने देश की आजादी से पहले एक किताब लिखी, हिंदुत्व। अगर आप हिंदुत्व को समझना चाहते हैं तो इस किताब को पढ़ सकते हैं। इस किताब को छापा है प्रभात प्रकाशन ने।

हिंदुत्व हिंदू को एक राष्ट्र , एक जाति और एक संस्कृति के रूप में बताता है। हिंदुत्व हिंदू राष्ट्रवाद की भावना को जगाने वाला विचार है। साल 1922 में सावरकर ने हिंदुत्व का विचार दिया था। वैसे हिंदुत्व के विरोधी ये आरोप लगाते हैं कि हिंदुत्व का मतलब हिंदू संस्कृति को थोपना है। इसके अलावा वे इसे फासीवादी बताते हैं। यहां तक कि विरोधियों द्वारा हिंदुत्व को धार्मिक कट्टरता और सांप्रदायिकता बताया जाता है। आइए हिंदुत्व किताब के जरिए समझने को कोशिश करते हैं कि हिंदुत्व क्या है?

इस किताब में 8 अध्याय हैं। पहला अध्याय बताता है कि हिंदुत्व क्यों महत्वपूर्ण है और इसमें और हिंदू धर्म में क्या भेद है? सावरकर कहते हैं कि हिंदू धर्म हिंदुत्व से उपजा है। दूसरे अध्याय में सावरकर ऐतिहासिक व्याख्या करते हैं। वे कहते हैं कि सप्तसिंधु आर्यों के लिए क्यों पूजनीय था। यहीं से एक राष्ट्र की भावना शुरू हुई। वे हिंदू शब्द की उत्पत्ति के बारे में कहते हैं कि सिंधु शब्द से हिंदू बना। इसी से आगे चलकर हिंदुस्थान बना।

वे बताते हैं कि समय के साथ आर्यों ने पूरे भारत में कैसे विस्तार किया और समय के साथ एक हिंदू राष्ट्र का उदय हुआ। सावरकर भारत के लिए आर्यावर्त या भारतवर्ष का इस्तेमाल सही नहीं मानते हैं। उनकी नजर में यह संकुचित सोच है। सावरकर तीसरे अध्याय में बताते हैं कि भारत में बौद्ध धर्म क्यों नहीं टिक सका। सावरकर ये भी बताते हैं कि भारत में शिक्षित लोगों के बीच इतिहास की सही समझ नहीं है। वे कहते हैं कि बौद्ध धर्म के पतन के साथ हिंदू राष्ट्रीयता का संचार तेजी से हुआ। वे बौद्ध धर्म से हुए नुकसानों के बारे में भी बताते हैं। हालांकि वे कहते हैं कि हिंदुत्व और हिंदुत्व को मानने वालों के लिए बुद्ध पूजनीय हैं।

चौथे अध्याय में वीडी सावरकर बताते हैं कि क्यों हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा होनी चाहिए। वे उस समय के बारे में बताते हैं जब हिंदू राष्ट्र वैभव सम्पन्न था। सावरकर कहते हैं कि यह मध्यकालीन समय था जब भारतवासियों को हिंदुत्व का अच्छे से आत्म साक्षात्कार हुआ। मुस्लिम हमलावरों को कैसे धूल चटाई गई। इसके अलावा वे पृथ्वीराज चौहान, छत्रपति शिवाजी, छत्रसाल , गुरु तेगबहादुर के उदाहरण देते हैं।

वैसे तो हिंदुओं के बीच यह भ्रांति है कि हिंदू नाम मुसलमानों ने नफरत के चलते दिया। सावरकर इसका खंडन करते हैं। वे कहते हैं ये सब गलत धारणा है। वे अंग्रेजी के hinduism से होने वाली समस्याओं के बारे में भी बताते हैं। वे बताते हैं कि हम सभी की रगों में एक ही खून है। वे अलग-अलग जातियों में होने वाले विवाह का समर्थन करते हैं और मानवता का पक्ष लेते हैं। वे संस्कृति की व्याख्या करते हैं और हिंदुत्व के 3 अभिलक्षणों के बारे में बताते हैं।

छठे अध्याय में सावरकर कहते हैं कि हिंदू धर्म से हिंदू का अर्थ बताना सही नहीं है। सावरकर बताते हैं कि जो हिंदू धर्म के तत्वों का पालन करता है वही हिंदू है। वे सभी हिंदुओं को एक झंडे के नीचे खड़ा करते हैं और हिंदू समुदाय की परिभाषा करते हैं। हालांकि एक बिंदु जिस पर विवाद होता है वह यह कि हिंदुत्व के मुताबिक ईसाई और मुसलमान हिंदू नहीं है। इसके पीछे सावरकर का तर्क है कि इन दो धर्मों के लिए भारत पुण्यभूमि नहीं है। वे मुस्लिम और ईसाइयों से अपील करते हैं कि वे हिंदू धर्म के तत्वों को अपना लें और हिंदू राष्ट्र को अपनी पुण्यभूमि मानें।

7वें अध्याय में सावरकर सिख धर्म का उदाहरण देते हैं और बताते हैं कि सिख हिंदू ही हैं। सिख धर्म को एक अलग धर्म मानने की सोच को सावरकर गलत बताते हैं। 8वें अध्याय में सावरकर बताते हैं कि मातृभूमि की तुलना में क्यों पुण्यभूमि से प्रेम करना चाहिए। वे आखिर में हिंदुओं से एकजुट रहने और देशविरोधी तत्वों को खत्म करने की अपील करते हैं।

नोट: इस किताब को प्रभात प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। 183 पृष्ठों की यह पुस्तक 400 रुपये (हार्डकवर) में उपलब्ध है। आप इसे ऑनलाइन भी ऑर्डर कर सकते हैं।

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