संत कवयित्री मुक्ताबाई के अभंग से शुरू होने वाला उपन्यास ‘स्वैलोइंग द सन’, एक नारीवादी उपन्यास है। मुक्ताबाई का अभंग इस उपन्यास का मूलमंत्र है। लेखिका लक्ष्मी पुरी के इस उपन्यास का शीर्षक एक स्त्री की महत्वाकांक्षाओं के बारे में है। यह रचना मालती और कमला जैसी लड़कियों के बारे में है जो कि सपने देखने का साहस करती हैं और समाज के रूढ़िवादी ढाँचे से बाहर निकलने का दृढ़ संकल्प रखती हैं। उपन्यास को पढ़ने के बाद आप इसके किरदारों के बारे में काफी वक्त तक सोचते रहेंगे।
इस उपन्यास में आजादी की लड़ाई के आंदोलन को भी दर्शाया गया है। उपन्यास के काल्पनिक किरदार असली इतिहास पुरुषों से मिलते हैं। लेखिका लक्ष्मी इस किताब में एक अलग तरह की पड़ताल करती दिखती हैं। उपन्यास का प्रवाह निर्बाध बना रहता है। लेखिका जिस कैनवास पर तस्वीर उकेरना चाहती हैं वह बहुत बड़ा है, जिसमें कई किरदार हैं। उपन्यास का कथानक मनोरंजक है और उसमें कोई भटकाव नहीं है।
यह उपन्यास 20वीं सदी की शुरुआत से शुरू होता है और कहानी आगे बढ़ती जाती है। यह उस वक्त से शुरू होता है जब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। ‘स्वैलोइंग द सन’ हमें उस वक्त की कहानी सुनाता है जब बाधाओं के बावजूद, कुछ लोगों ने नई जमीन तलाशने का साहस किया।
जैसे कि तीन लड़कियों के पिता, बाबा। जो कि प्रगतिशील विचार रखते हैं और साहसी व्यक्ति हैं। वे एक साधारण किसान हैं और अपनी तीन बेटियों के लिए बड़े सपने देखते हैं। तीन लड़कियों में सबसे बड़ी सुरेखा की वैशाली महाराजा के दरबार में वित्त मंत्री मलक विलास राव से शादी होती है। सुरेखा की आत्महत्या की दिल दहला देने वाली त्रासदी मानव स्वभाव की कड़वी सच्चाई कहती है।
उपन्यास में बाबा रूढ़िवादी समाज को चुनौती देते हैं और अपनी दो बेटियों कमला और मालती को एक बोर्डिंग स्कूल भेजते हैं। इसके बाद बाबा एक और साहसिक कदम उठाते हैं और अपने बेटियों को बंबई के एलफिंस्टन कॉलेज में दाखिला दिलाते हैं। जहां से वे समाज की रूढ़ियाँ तोड़ती हैं। यह उपन्यास उन पुरुषों के बारे में भी है जो महिलाओं का समर्थन करते हैं या नारीवादी हैं।
किताब के बारे में…
लेखिका- लक्ष्मी मुर्देश्वर पुरी
प्रकाशक- एलेफ़ बुक कंपनी
पेज संख्या- 412 पेज, मूल्य- 899 रुपये (हार्डकवर)









