महज एक बेटी की यादों का संग्रह नहीं है ‘प्रणब माय फादर’, आधी सदी का सियासी सफर है ये किताब

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हाल के दिनों में जिस एक किताब ने देश के सियासी तबके में सुर्खियां बटोरी हैं, वह है लेखिका शर्मिष्ठा मुखर्जी की लिखी किताब प्रणब माय फादर। यह किताब महज एक बेटी की यादों का संग्रह नहीं है बल्कि प्रणब मुखर्जी की कहानी कहने के बहाने देश की राजनीति का इतिहास है। इंदिरा गांधी के समय में शुरू हुए प्रणब मुखर्जी के सियासी सफर का अंत राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण करने पर खत्म होता है। राष्ट्रपति के रूप में प्रणब मुखर्जी के कार्यकाल का उल्लेख इस किताब में है। इस किताब की खासियत ये भी है कि यह मौजूदा समय की सरकार यानी नरेंद्र मोदी सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर टिप्पणी करती है।

आइए आपको बतातें है कि आपको यह किताब क्यों पढ़नी चाहिए:

  1. किताब की शुरूआत प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति के पदभार ग्रहण के दिन से शुरू होती है। जिस दिन वे शपथ लेते हैं।
  2. दूसरे अध्याय में लेखिका शर्मिष्ठा अपने पिता के बचपन, शुरुआती दिनों और उनकी शादी कैसे हुई ये सब बताती हैं।
  3. तीसरा चैप्टर तो प्रणब मुखर्जी के संसद के प्रति लगाव के बारे में बताता है। बतौर एक राज्यसभा सांसद के रूप में शुरू हुआ उनका संसदीय करियर कैसे राष्ट्रपति कार्यकाल खत्म होने पर पूरा हुआ। लगभग आधी सदी तक उनका संसद से संबंध रहा। जो कि अपने आप में एक ऐतिहासिक चीज है।
  4. चौथा चैप्टर प्रणब के इंदिरा गांधी संग रिश्तों के बारे में बताता है कि कैसे वह इंदिरा गांधी के एक भरोसेमंद सिपाही बने और फिर सरकार का हिस्सा बने। इस अध्याय में आपातकाल के बारे में बताया गया है और उसके बाद के समय के बारे में भी जब इंदिरा गांधी को विपक्षियों ने निशाना बनाया। उस वक्त के बारे में भी बताया गया है जब इंदिरा के अपने उनको छोड़कर चले गए और कांग्रेस दो फाड़ हो गई। पार्टी को नए सिरे से खड़ा करने और 1980 में फिर से चुनाव जीतने की यात्रा बताई गई है। यह वो समय था जब मुखर्जी पहली बार देश के वित्त मंत्री बने और वो सरकार में नंबर दो का दर्जा रखते थे।
  5. इस अध्याय में शर्मिष्ठा मुखर्जी ने राजीव गांधी और प्रणब मुखर्जी के बिगड़े रिश्तों की कहानी कही है। क्यों राजीव और प्रणब के बीच दूरियां आईं इसकी तहकीकात की गई है। लेखिका बताती हैं कि एक धारणा बन चुकी थी कि प्रणब राजीव को चुनौती दे सकते हैं इसलिए उनको पार्टी और सरकार से दरकिनार किया गया। यहां तक कि प्रणब मुखर्जी को पार्टी से निकाल दिया गया। कांग्रेस के बिना प्रणब क्या हैं , यहां इसके बारे में भी बताया गया है। त्रिपुरा चुनाव के बहाने कैसे राजीव -प्रणब के रिश्ते सुधरे इसकी कहानी भी कही गई है।
  6. राजीव गांधी की हत्या के बाद प्रणब मुखर्जी की एक नई पारी शुरू होती है। प्रधानमंत्री राव ने मुखर्जी को पहले तो योजना आयोग का डिप्टी चेयरमैन बनाया और बाद में अपना विदेश मंत्री। 1992 में हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस ने कैसे राजनीति को बदल के रख दिया और तत्कालीन कांग्रेस सरकार की भूमिका के बारे में भी बताया गया है। पीवी नरसिम्हा राव क्यों कांग्रेस और सोनिया गांधी को नापसंद होने लगे इसका जिक्र भी किया गया है। जब सोनिया गांधी ने राव के पार्थिव शरीर को कांग्रेस कार्यालय में रखवाने से भी इंकार कर दिया तो मुखर्जी ने कहा कि वे इसके लिए सोनिया को कभी माफ नहीं करेंगे। इस चैप्टर में बताया गया है कि प्रणब मुखर्जी के ममता बनर्जी से कैसे रिश्ते थे और कैसे वे सोनिया गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने में मददगार रहे।
  7. 2004 में जब सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद ठुकरा दिया तो कयास लगे कि प्रणब पीएम बनेंगे पर ऐसा नहीं हुआ 1984 की तरह वे फिर से पीएम नहीं बन सके और ऐसा ही कुछ 2009 में भी हुआ। इस किताब में खुलकर बताया गया है कि प्रधानमंत्री पद को लेकर प्रणब मुखर्जी की क्या सोच थी? प्रणब पीएम तो बनना चाहते थे लेकिन वे इस बात से परिचित थे कि वे कभी बन नहीं पाएंगे। इस चैप्टर में ये भी बताया गया है कि कैसे प्रणब मुखर्जी ने गठबंधन के सभी सहयोगियों का एक कुशल प्रबंधन किया। सरकार और संसद में कैसे वे कांग्रेस के संकटमोचक रहे। किताब में बताया गया है कि कैसे यूपीए-2 में गठबंधन सहयोगियों के चलते सरकार नाकाम रही। वहीं पीएम मनमोहन सिंह प्रणब मुखर्जी के संबंधों के बारे में भी बताया गया है। इस दौरान हुए भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन पर टिप्पणी भी की गई है। 2012 में कैसे प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति उम्मीदवार बने यह भी बताया गया है।
  8. 8वें चैप्टर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति मुखर्जी के रिश्तों के बारे में बताया गया है कि क्यों मोदी मुखर्जी का इतना सम्मान करते थे और मुखर्जी का मोदी के प्रति कैसा नजरिया था। मुखर्जी की नजर में मोदी बहुत प्रोफेशनल हैं और जनता की नब्ज पकड़ना जानते हैं। मोदी बातों को सुनने और सीखने में यकीन रखते हैं और देशभक्त हैं। इस अध्याय में 2012-17 के बीच राष्ट्रपति कार्यकाल में हुई घटनाओं के बारे में भी बताया गया है।
  9. आखिरी अध्याय में बताया गया है कि क्यों प्रणब मुखर्जी की चीजों को लेकर इतनी अच्छी समझ थी और न सिर्फ उनके सहयोगी बल्कि विपक्षी भी उन्हें इतना क्यों चाहते थे। इसमें उस घटना के बारे में बताया गया है जब मुखर्जी आरएसएस के एक कार्यक्रम में पहुंचे। यह लोकतंत्र के प्रति मुखर्जी की गहरी आस्था को दिखाता है। मुखर्जी की नजर में कांग्रेस मुक्त भारत की बात करना सही नहीं है क्योंकि कांग्रेस के योगदान को मिटाया नहीं जा सकता। मुखर्जी की नजर में कांग्रेस की ओर से सावरकर पर टिप्पणियां और बीजेपी द्वारा नेहरू पर की गई टिप्पणियां दोनों सही नहीं है। इतिहास में हुई घटनाओं को उस समय के संदर्भ में देखना चाहिए। शर्मिष्ठा मुखर्जी ने बताया है कि आज के नेता क्या कुछ प्रणब से सीख सकते हैं।

पुस्तक के बारे में-

लेखिका- शर्मिष्ठा मुखर्जी (शर्मिष्ठा एक भारतीय कथक नृत्यांगना हैं, कोरियोग्राफर हैं और कांग्रेस पार्टी की सदस्य रही हैं)

प्रकाशक- रूपा पब्लिकेशन

पृष्ठ संख्या- 379

मूल्य- 795 (हार्डकवर)

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