भारत में हिंदू-मुस्लिम रिश्तों का इतिहास आपसी सहयोग- समन्वय ,धार्मिक भेदभाव, असहिष्णुता और हिंसा से भरा रहा है। मुसलमान भारतीय संस्कृति का हिस्सा हैं और 13 शताब्दियों से अधिक समय से हिंदुओं के साथ रहते आ रहे हैं। इसी हिंदू मुस्लिम रिश्ते को केंद्र में रखता है लेखक मोहम्मद आरिफ का उपन्यास ‘उपयात्रा’। 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद को ढहा दिया गया था। उपन्यास इसी तारीख के इर्द-गिर्द घूमता है।
उपन्यास में नायक एक ट्रेन में सफर कर रहा है जिसमें बहुत से कारसेवक सवार हैं। यह सभी अयोध्या कारसेवा करने जा रहे होते हैं। उपन्यास में नायक और कारसेवकों के बीच के संवाद से पाठक को उस मुस्लिम विरोधी भावना का पता चलता है जो ज्यादातर के मन में घर किए हुए है। उपन्यास में फरीद खुद को रजनीश बताता है। यहां लेखक ने बताना चाहा है कि कैसे धार्मिक पहचान बदलने से लोगों का रवैया बदल जाता है। नायक अपने छात्र जीवन और दोस्त रजनीश के किस्से भी पाठकों के साथ साझा करता है। रजनीश के जरिए लेखक ने एक ऐसे पात्र को गढ़ा है जिसके लिए प्रेम और सेक्स ही सबकुछ है। लेखक बताना चाहते हैं कि प्यार और सेक्स में दिन रात पड़े रहने वाला व्यक्ति धार्मिक उन्मादियों से लाख बेहतर है।
लेखक उपन्यास में उस दिन का ब्योरा देते हैं जिस दिन बाबरी मस्जिद का विध्वंस किया गया था। बकौल लेखक उस दिन कारसेवकों ने मस्जिद नहीं बल्कि हिंदू मुस्लिम रिश्तों को ढहाने का काम किया। केंद्र और राज्य सरकार बस चुप्पी साधे रही। घटना ने सामाजिक ताने बाने को हिला कर रख दिया। उपन्यास पढ़कर पता चलता है कि अयोध्या और उसके आस-पास के मुसलमान रामलीला के रूप में हिंदुओं के साथ एक सांस्कृतिक विरासत साझा करते रहे हैं लेकिन बाबरी को ढहाए जाने की पूरी प्रक्रिया मुसलमानों के मन में डर पैदा कर देती है। उपन्यास सवाल करता है कि जिन मुसलमानों का न तो बाबर से कोई लेना देना है न ही मीर बाकी से वे क्यों आखिर इस नफरत के शिकार हुए।
लेखक की मानें तो 1986 से पहले तो देशभर का मुसलमान अयोध्या की इस मस्जिद से परिचित था भी नहीं। राजनेताओं द्वारा हिंदू मुस्लिम की राजनीति ने सामाजिक सौहार्द की बलि चढ़ा दी। 1987 में जो मुसलमान सब कामधाम छोड़ टीवी पर रामायण देखते थे वे 1992 आते आते कैसे राम विरोधी हो गए , पता ही नहीं चला। सच ये है कि हिंदू और मुसलमान कुछ चीजों को लेकर हमेशा से एक दूसरे को नापसंद करते रहे हैं । जैसे कि गोमांस खाना और गौ हत्या। हिंदुओं के लिए गाय जहां माता है वहीं मुसलमान उसे एक मवेशी ही समझते हैं। हिंदू मूर्तिपूजा करते हैं और मुसलमान इसे इस्लाम के खिलाफ समझते हैं लेकिन फिर भी वे बरसों से साथ रहते आ रहे हैं। इतिहास बताता है कि हिंदू मुस्लिम रिश्तों की शुरुआत तो 7वीं सदी से हो गई थी। वजह थी कारोबार। लेकिन समय के साथ बहुत कुछ बदला। 17वीं सदी से हिंसा पनपी। हालांकि हिंदू मुस्लिम रिश्ते पूरे भारत में एक से नहीं हैं। उत्तर भारत में जहां तनाव अधिक रहा है तो वहीं दक्षिण में कमोबेश शांति ही रही।
उपन्यास में कारसेवा का जिक्र सुन मुस्लिम समाज के बीच कई तरह की शंकाएं जन्म लेती हैं। वह सोचता है कि जो हिंदू समाज इतना सहिष्णु रहा है वह भला इतनी उन्मादी क्यों हो गया है? अयोध्या पहुंच रहे कारसेवकों को देख उनकों अलग-अलग तरह के डर सताते हैं। उपन्यास का अंत 6 दिसंबर के बाद नायक के गांव के परिवेश में आए बदलाव के बारे में बात करता है। अंत में लेखक दोनों समुदाय के लोगों से नफरत को भुलाने और उजाले की ओर बढ़ने की अपील करते हैं।
किताब के बारे में
लेखक – मो. आरिफ
प्रकाशक- राधाकृष्ण पेपरबैक्स
मूल्य-250 रुपये
पेज संख्या- 207