मुस्लिम मन के “story listener” हैं शहादत

0
31

युवा कहानीकार शहादत का कहानी संग्रह ‘कर्फ्यू की रात’ लोकभारती प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है। इस कहानी संग्रह की पहली कहानी है ‘आजादी के लिए’। कहानी में एक मुस्लिम महिला है, जिसे मजहबी इल्म मुकम्मल तौर पर हासिल है वह अपने इर्द गिर्द की धार्मिक मान्यताओं और धारणाओं को तोड़ती है। इस कहानी में लेखक धर्म और पितृसत्ता दोनों के खिलाफ बगावत करवाते हैं। अमूमन कोई भी रचनाकार अपवाद को इसलिए चुनता है क्योंकि या तो वह समाज को अपनी अपेक्षाएं बताना चाहता है या सामाजिक मान्यताओं को तोड़ना चाहता है। यहां लेखक ऐसा ही करते हैं ।

इसी तरह ‘बेदीन’ का नायक भी मजहबी बंदिशों को तोड़ता है और समाज में ऐसी जिंदगी जीता है जिसकी उम्मीद कोई नहीं करता। हालांकि लेखक कहानी के अंत में नायक को उसी मजहबी खौफ का शिकार क्यों बना देते हैं यह थोड़ा समझ से परे है। क्यों नायक ऐसा सोचता है कि उसकी बुरी स्थिति नास्तिकता या धर्मविरोधिता के चलते है।

‘कर्फ्यू की रात’ कहानी , जो कि किताब का शीर्षक भी है , देश के अल्पसंख्यक समाज के भीतर के भय की कहानी है। “दंगों के लिए चुनाव कराए जाते हैं” ये पंक्ति ही इतनी त्रासदीपूर्ण है कि क्या कहें। दंगों का सामान्यीकरण समाज में व्याप्त हो चुकी हिंसा का ही विवरण है। कर्फ्यू में मातम भी खुलकर नहीं मनाया जा सकता यह पीड़ा हर दिल को कचोटने वाली है।

सबसे अंतिम कहानी ‘पहला मतदान’ में तो एक मुस्लिम युवक की लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्था दिखती है। वहीं चुनाव कैसे निरर्थक हो चला है इसके बारे में भी लेखक बात करते हैं। अल्पंख्यक समाज के लिए चुनावी लोकतंत्र कैसे बेमतलब हो गया है यह उसकी एक नजीर है ।

कुलमिलाकर लेखक न सिर्फ मुस्लिम समाज की पीड़ा को आवाज देते हैं बल्कि वे उसी समाज की रूढ़ियों को अपने किरदारों से तुड़वाते हैं। भाषा ऐसी है कि सारी कहानियां आसानी से समझ आ जाती हैं और प्रवाह भी बना रहता है। लेखक का लेखन मौलिकतापूर्ण है , अलहदा है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here