
Book Review: हिंदी का चर्चित आंचलिक उपन्यास ‘आधा गांव’ डॉक्टर राही मासूम रज़ा (Rahi Masoom Raza) द्वारा 1966 में लिखा गया था , जो कि भोजपुरी उर्दू का एक जीवित दस्तावेज है। डॉक्टर राही मासूम रज़ा को गंगा-जमनी तहज़ीब का लेखक कहा जा सकता है। राही मासूम रजा ने ‘टोपी शुक्ला’, ‘नीम का पेड़’ जैसी रचनाएं लिखी हैं। जिससे पढ़कर लगता है कि डॉक्टर रज़ा ग्रामीण परिवेश पर कितना अच्छा लिखते हैं।
Book Review: शिया मुस्लिमों के बारे में जानने वालों को पढ़ना चाहिए ‘आधा गांव’
अब आते हैं ‘आधा गांव’ पर। उपन्यास पूर्वी उत्तरप्रदेश के ग़ाज़ीपुर ज़िले के गंगौली गांव की कहानी कहता है। जो कि एक शिया मुस्लिम बहुल गांव है। भारत के शिया मुस्लिमों के बारे में किसी को जानना हो तो यह उपन्यास ज़रूर पढ़ना चाहिए। उपन्यास में डॉक्टर रज़ा ने गांव के भूगोल से लेकर वहां के सामाजिक ताने-बाने के बारे में बहुत अच्छे से बयां किया है। गांव के किस्सों से निरन्तरता बनी रहती है।

सबसे खास बात ये है कि गंगौली के लोग बंटवारे के समय और उसके बाद पाकिस्तान को लेकर क्या सोचते हैं ये सबसे दिलचस्प है। उपन्यास के आखिर में बंटवारे के बाद के गांव के अकेलेपन और नई पीढ़ी-पुरानी पीढ़ी के फर्क और आज़ादी के बाद हुए बदलावों के बारे में बताया गया है।
Book Review: ‘सूखा बरगद’ हिंदुस्तानी मुसलमानों के भीतर की असुरक्षा को खुलकर सामने रखता है
मंज़ूर एहतेशाम आज़ादी के बाद के लेखकों में एक जाना माना नाम हैं। इन्हीं का उपन्यास सूखा बरगद एक मुस्लिम परिवार की कहानी है जो कि भोपाल में रहता है। परिवार बंटवारे के वक़्त हिंदुस्तान में रहने का फैसला करता है। इसी परिवार के बच्चों सुहेल और रशीदा की कहानी उपन्यास में कही गयी है। आज़ादी के बाद जन्मे मुस्लिम युवक और युवतियों की क्या सोच रही होगी? उसे इस उपन्यास के ज़रिए समझा जा सकता है।

उपन्यास पढ़ने के बाद लगता है कि सुहेल और रशीदा के मन का द्वंद्व आज भी मुस्लिम युवाओं में दिखता है। इस रचना में लेखक ने हिंदुस्तानी मुसलमानों के भीतर की असुरक्षा को खुलकर सामने रखा है। उपन्यास का शीर्षक हिन्दू मुस्लिम रिश्तों का प्रतीक है।
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