राजकमल प्रकाशन अपने 77वें स्थापना दिवस पर बुधवार को ‘भविष्य के स्वर’ कार्यक्रम का आयोजन करेगा। इसके तहत साहित्यिक-सांस्कृतिक क्षेत्र में सक्रिय चार युवा प्रतिभाएँ व्याख्यान देंगी। विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से आने वाले इन युवाओं ने बीते कुछ समय में अपने कार्यों से बड़ी संभावनाएँ जगाई हैं। राजकमल अपना मंच प्रदान कर व्यापक जनसमुदाय के बीच इन युवाओं की प्रतिभा और संभावनाओं को रेखांकित करेगा। राजकमल प्रकाशन के प्रबन्ध निदेशक अशोक महेश्वरी ने मंगलवार को यह जानकारी दी।
उन्होंने बताया, “राजकमल प्रकाशन बुधवार को 77वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। यह हिन्दी पाठक-लेखक समाज की, हम सबकी सहयात्रा का गौरवशाली क्षण है। इस विशेष अवसर पर बुधवार को हमारा चौथे विचार पर्व का आयोजन कर रहे हैं। इसके तहत ‘भविष्य के स्वर’ शृंखला की चौथी कड़ी प्रस्तुत की जाएगी। जिसमें चार युवा अपने व्याख्यान देंगे। यह चार युवा है― इतिहास अध्येता ईशान शर्मा; कहानीकार कैफ़ी हाशमी; कवि विहाग वैभव; आदिवासी लोक साहित्य अध्येता-कवि पार्वती तिर्की।”
अशोक महेश्वरी ने कहा, “इस बार के विचार पर्व में व्याख्यान देने जा रहे चारों युवा 23 से 30 वर्ष की उम्र के हैं। इन चारों युवा प्रतिभाओं ने अपने-अपने क्षेत्र में किए गए कार्यों से बड़ी संभावनाएं जगाई हैं। नई पीढ़ी को नवाचार के लिए प्रोत्साहित करने वाली गतिविधियों में हम हमेशा सक्रिय रहे हैं। ‘भविष्य के स्वर’ कार्यक्रम भी इसी का एक हिस्सा है। इसका हमारा उद्देश्य साहित्य समेत विभिन्न क्षेत्रों में नई लकीर खींच रहे युवाओं के अनुभवों और सपनों को स्वर देना है।”
उन्होंने कहा, “राजकमल का मानना है कि विचार और पुनर्विचार की निरन्तरता से ही कोई समाज आगे बढ़ता है। भविष्य पर विचार किए बिना और दिशा के बिना कोई भी समाज आगे नहीं बढ़ सकता। इसके लिए सकारात्मक बदलाव के सूत्रों को संगठित करना जरूरी है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर राजकमल ने अपनी स्थापना के 70वें वर्ष से ‘भविष्य के स्वर’ का सिलसिला शुरू किया था। हमें उम्मीद है कि इस आयोजन से हम सब युवा रचनात्मकता के नए आयामों से परिचित होंगे। हमें विश्वास है कि ‘भविष्य के स्वर’ की चौथी कड़ी के वक्ताओं के विचारों से नई संभावनाओं और दिशाओं से हम सब रूबरू होंगे।
गौरतलब है कि राजकमल प्रकाशन की स्थापना 28 फरवरी 1947 को हुई थी। राजकमल का स्थापना दिवस, प्रकाशन दिवस के रूप में मनाया जाता है। लेखकों, पाठकों और बौद्धिकों ने इसको अपने सालाना जलसे के रूप में अपनाया है। राजकमल प्रकाशन दिवस पर वर्ष 2019 से ‘भविष्य के स्वर’ व्याख्यान शृंखला की शुरूआत की गई। अब तक तीन अध्यायों में यह विचार पर्व आयोजित हो चुका है।
पहले तीन अध्यायों में इन 21 युवा प्रतिभाओं का हो चुका है व्याख्यान
राजकमल स्थापना दिवस पर आयोजित हो रहे ‘भविष्य के स्वर’ विचार पर्व में अब तक 21 युवा प्रतिभाएँ अपने व्याख्यान दे चुकी है। जिन्हें बाद में अन्य मंचों ने भी विशिष्ट प्रतिभा के रूप में स्वीकारा। ‘भविष्य के स्वर’ के वक्ताओं के तौर पर पहले राजकमल 40 वर्ष तक की प्रतिभाओं को मौका देता था। अब इसकी अधिकतम आयु सीमा 30 वर्ष कर दी गई है।
‘भविष्य के स्वर’ विचार पर्व के पहले आयोजन में घुमन्तू पत्रकार-कथाकार अनिल यादव; कवि-शोधकर्ता अनुज लुगुन; कवि-कथाकार गौरव सोलंकी; कलाकार डिजाइनर अनिल आहूजा; मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार; आरजे सायमा और पत्रकार अंकिता आनंद ने वक्तव्य दिया। वर्ष 2020 में इसके दूसरे अध्याय के वक्ताओं में कवि सुधांशु फिरदौस; कवि जंसिता केरकेट्टा; किस्सागो हिमांशु वाजपेयी; सिने आलोचक मिहिर पांड्या; कथाकार चन्दन पांडेय; वंचित बच्चों में कलात्मक कौशल के विकास के लिए सक्रिय जिज्ञासा लाबरु और कवि-आलोचक मृत्युंजय शामिल थे। वर्ष 2021 में कोरोना महामारी के चलते यह आयोजन करना सम्भव नहीं हो सका।
2022 में ‘भविष्य के स्वर’ कार्यक्रम के तीसरे अध्याय में यायावर लेखक अनुराधा बेनीवाल; अनुवादक-यायावर लेखक अभिषेक श्रीवास्तव; लोकनाट्य अध्येता एवं रंग आलोचक अमितेश कुमार; अध्येता-आलोचक चारु सिंह; लोक साहित्य अध्येता एवं कथाकार जोराम यालाम नाबाम; गीतकार-लेखक नीलोत्पल मृणाल; चित्रकार एवं फैशन डिजाइनर मालविका राज ने अपना वक्तव्य दिया। वहीं पिछले वर्ष राजकमल स्थापना दिवस विश्व पुस्तक मेला के दौरान होने के चलते यह कार्यक्रम आयोजित नहीं हो सका। चौथे अध्याय में इसका आयोजन आगामी 28 फरवरी को हो रहा है।
‘भविष्य के स्वर’ 2024 के वक्ता
- ईशान शर्मा TEDX वक्ता, लेखक और राष्ट्रीय धरोहर व स्मारकों के क्षेत्र में सक्रिय कार्यकर्ता हैं। वे भारत में इतिहास और धरोहर से जुड़े मुद्दों पर एक प्रखर युवा आवाज बनकर उभरे हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में स्नातक ईशान एमएसयू बड़ौदा से आधुनिक भारतीय इतिहास में एम.ए. कर रहे हैं। इतिहास के अलावा सिनेमा में ख़ास दिलचस्पी रखते हैं। भारत के अग्रणी इतिहास कलेक्टिव्स में से एक ‘कारवाँ : द हेरिटेज एक्सप्लोरेशन इनिशिएटिव’ के संस्थापक भी हैं। ख़ुद को ‘हिस्टोरियन इन ट्रेनिंग’ कहलाना पसन्द करते हैं।
- कैफ़ी हाशमी ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया से उच्च शिक्षा प्राप्त की है। पेशे से शिक्षक हैं। उनकी कहानियों ने पिछले कुछ समय में अपनी खास पहचान बनाई है। ‘कैफे कॉफी डे’, ‘दुनिया का पहला और आखरी सवाल’, ‘मोबियस स्ट्रिप’ आदि उनकी चर्चित कहानियाँ हैं। ‘वनमाली कथा’ में प्रकाशित उनकी कहानी ‘शिया बटर’ विशेष रूप से चर्चित रही है।
- विहाग वैभव ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की है। विभिन्न पत्रिकाओं में उनके शोध पत्र प्रकाशित हैं। कई सेमिनारों में उन्होंने व्याख्यान भी दिए हैं। हिन्दी की लगभग सभी चर्चित पत्रिकाओं में उनकी कविताएँ प्रकाशित हैं। अंग्रेजी समेत कई भारतीय भाषाओं में उनकी कविताएँ अनूदित भी हुई हैं। ‘मोर्चे पर विदागीत’ उनका प्रकाशित कविता संग्रह है। वे ‘भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार’ और ‘कलिंगा लिटरेरी बुक अवार्ड’ 2024 से सम्मानित हैं।
- पार्वती तिर्की ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से ‘कुडुख आदिवासी गीत : जीवन राग और जीवन संघर्ष’ विषय पर शोधकार्य किया है। ‘फिर उगना’ नाम से उनका एक कविता-संग्रह प्रकाशित है। कविता के अलावा गीत और कहानी में भी वे ख़ास दिलचस्पी रखती हैं। फ़िलहाल राँची विश्वविद्यालय के राम लखन सिंह यादव महाविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत हैं।