राम प्रसाद बिस्मिल (Ram Prasad Bismil), अशफाक उल्ला खान (Ashfaqulla Khan), राजेंद्र लाहिड़ी (Rajendra Lahiri) और ठाकुर रोशन सिंह (Thakur Roshan Singh ) को काकोरी कांड (Kakori Conspiracy ) मामले में उनकी कथित भूमिका के एवज में ब्रिटिश शासकों ने फांसी पर लटका दिया था। दिसंबर 1927 में मां भारती के वीर सपूतों को अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी दी थी। भारतियों ने फांसी का विरोध किया था, पर अंग्रेजों ने एक न सुनी। आजादी के इन आंदोलनकारियों पर काकोरी कांड (अब काकोरी ट्रेन एक्शन) में शामिल होने का आरोप लगाया था। कई लोगों को 14 साल तक की सजा दी गई। सरकारी गवाह बनने पर दो लोगों को रिहा कर दिया गया।
सरकारी खजाना लूटा
काकोरी ट्रेन एक्शन की कहानी हिंसा और अहिंसा से जुड़ी है। साल 1922 में गोरखपुर में हुए चौरी-चौरा कांड के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। गांधी जी के फैसले से आजादी के दीवाने युवा क्रांतिकारी बहुत निराश हुए। युवाओं ने इसी निराशा के साथ खुद आजादी के लिए जंग लड़ने की तैयारी की और एक पार्टी बनाई।
सचीन्द्रनाश सान्याल के नेतृत्व में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना हुई। योगेशचन्द्र चटर्जी, रामप्रसाद बिस्मिल, सचिन्द्रनाथ बक्शी पार्टी के महत्वपूर्ण सदस्यों में शामिल थे। बाद में चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह भी पार्टी से जुड़ गए। पार्टी को सदस्यों का मानना था कि इस तरह अहिंसा की पूजा के साथ भारत को आजादी नहीं मिलने वाली है। खुली हवा में सांस लेने के लिए हथियार तो उठाना ही पड़ेगा। पर हथियारों के लिए पैसों की भी जरूरत थी। इसलिए स्वतंत्रता सेनानियों ने फैसला किया कि अंग्रेजी सरकारी संपत्ति को लूटा जाए।
अलग अलग जेल में हुई फांसी
क्रांतिकारियों ने 9 अगस्त 1925 को सहारनपुर से लखनऊ जा रही ट्रेन को लूटा। इस ट्रेन को काकोरी स्टेशन पर रोका गया और बंदूक की नोक पर गार्ड को बंधक बनाकर जितनी भी संपत्ति थी उसे लूट लिया। क्रांतिकारियों के हाथ कुल 4,601 रुपए की रकम आई। इस घटना के बाद अंग्रेजों के पैरों तले से जमीन खिसक गई। हुकूमत ने फैसला किया कि कांड में शामिल सभी लोगों को गिरफ्तार किया जाएगा और फांसी दी जाएगी।
काकोरी ट्रेन एक्शन से अंग्रेजी सरकार कुछ इस तरह बौखलाई थी कि 40 लोगों को ताबड़तोड़ गिरफ्तार कर लिया जबकि इसमें 10 लोग ही शामिल थे। एक माह के भीतर गिरफ्तारी के साथ 6 अप्रैल 1927 को फैसला सुनाया गया। राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई। कई लोगों को 14 साल तक की सजा दी गई। सरकारी गवाह बनने पर दो लोगों को रिहा कर दिया गया। चंद्रशेखर आजाद पुलिस की गिरफ्त से दूर ही रहे।
रामप्रसाद बिस्मिल की यह गजल
सबसे पहले 17 दिसंबर 1927 को गोंडा जेल में राजेंद्र लाहिड़ी को फांसी दी गई। आज ही के दिन 1927 में रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल अशफाक उल्ला खान को फैजाबाद जेल और रोशन सिंह को इलाहाबाद में फांसी दी गई।
रामप्रसाद बिस्मिल की यह गजल जो आज भी लोगों के जुबां पर है।
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
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