भारत के दो बड़े राज्यों महाराष्ट्र और कर्नाटक (Maharashtra and Karnataka) के बीच चल रहा सीमा विवाद लगातार गहराता जा रहा है. मंगलवार को कर्नाटक के बेलगावी के बागेवाड़ी में प्रदर्शन के दौरान कर्नाटक रक्षण वेदिके के कार्यकर्ताओं ने महाराष्ट्र के ट्रकों पर पथराव कर दिया जिसको लेकर अब एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई (Basavaraj Bommai) पर निशाना साधते हुए कहा कि महाराष्ट्र के धैर्य की परीक्षा न लें. शरद पवार (Sharad Pawar) ने चेतावनी दी है कि अभी जो हो रहा है उसे अगर 48 घंटे के अंदर बंद नहीं किया गया तो वे महाराष्ट्र के नेताओं के साथ लेकर बेलगावी पहुंच जाएंगे.
महाराष्ट्र के पूर्व सीएम रहे और देश मे रक्षा मंत्रालय जैसे कई महत्वपूर्ण पद संभाल चूके शरद पवार ने कहा कि, सीमा विवाद को लेकर सीएम शिंदे ने कर्नाटक के सीएम बोम्मई से भी बात की. बातचीत हो जाने का बद भी उन्होंने इस मुद्दे पर नरम रूख नहीं दिखाया है. पवार ने आगे कहा कि किसी को भी महाराष्ट्र धैर्य की परीक्षा नहीं लेनी चाहिए और इसका हल जल्द निकलना चाहिए ताकि कुछ गलत दिशा में न जाए.
पवार ने कहा कि सीएम एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) को कोई भी फैसला लेने से पहले सभी दलों को विश्वास में लेना चाहिए. संसद सत्र शुरू होने वाला है, मैं सभी सांसदों से एक साथ आने का और इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाने का अग्रह करता हूं. पवार ने वार्ता में कहा कि कर्नाटक जा रही महाराष्ट्र की गाड़ियों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है जो असहनीय है.
मंगलवार 12 नवंबर को कर्नाटक के बागेवाड़ी में कर्नाटक रक्षण वेदिके नामक संस्था के कार्यकर्ताओं ने महाराष्ट्र की नंबर प्लेट ट्रकों को रोककर पथराव किया. कार्यकर्ताओं ने हाईवे पर धरना-प्रदर्शन भी किया. इस दौरान पुलिस ने कुछ लोगों को हिरासत में भी लिया.
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क्यों है महाराष्ट्र – कर्नाटक के बीच सीमा विवाद?
देश क अंदर दो राज्यों के बीच सबसे बड़ा सीमा विवाद बेलगाम जिले को लेकर महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच है. महाराष्ट्र–कर्नाटक के बीच का सीमा विवाद 1953 से ही चला आ रहा है, जब महाराष्ट्र सरकार ने बेलगावी सहित 865 गांवों को कर्नाटक में शामिल करने को लेकर अपनी आपत्ति जताई थी. ये गांव कर्नाटक के उत्तर-पश्चिमी और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में फैले हुए हैं और इनमें से कई की सीमाएं महाराष्ट्र की सीमा से लगी हुई हैं. 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम लागू होने के बाद, तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने कर्नाटक के साथ लगती अपनी सीमा को फिर से ठीक करने की मांग की थी जिसके बाद दोनों राज्यों की ओर से चार सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया था.
लेकिन कमेटी से भी जब बात नहीं बन पाई तो महाराष्ट्र के विरोध के बीच केंद्र सरकार ने 25 अक्टूबर, 1966 को सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस मेहरचंद महाजन के नेतृत्व में एक आयोग का गठन किया जिसने अगस्त 1967 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी. इसमें उसने कर्नाटक के 264 कस्बों और गांवों को महाराष्ट्र में और महाराष्ट्र के 247 गांवों को कर्नाटक में मिलाने की सिफारिश की थी.
महाराष्ट्र सरकार ने मुख्य रूप से कन्नड़ भाषी 260 गांवों को कर्नाटक को देने की इच्छा व्यक्त की थी, लेकिन कर्नाटक ने इसे नकार दिया. वहीं, मामले में तेजी लाने के लिए कर्नाटक और महाराष्ट्र दोनों सरकारों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया लेकिन मामला अभी भी लंबित है.
क्या बताता है इतिहास?
यह क्षेत्र अंग्रेजों के समय बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा हुआ करता था, लेकिन वर्ष 1956 में राज्यों के पुनर्गठन के बाद इसे कर्नाटक में शामिल कर लिया गया. महाराष्ट्र लंबे समय से कर्नाटक के बेलगांव और कुछ अन्य मराठी भाषी गांवों पर प्रशासनिक नियंत्रण की अपनी पुरानी मांग के दावे को दोहराता रहा है. वहीं कर्नाटक के मुखिया बसवराज बोम्मई ने हाल ही में मांग कर दी कि महाराष्ट्र के अक्कलकोट और सोलापुर के कन्नड़ भाषी इलाकों को कर्नाटक में शामिल करवाया जाए. उन्होंने यह भी कहा कि सांगली जिले में जाट तालुका के कुछ गांवों के लोग भी कर्नाटक में शामिल होना चाहते हैं.
देश में राज्यों के बीच अन्य सीमा विवाद
असम – अरुणाचल प्रदेश
देश के उत्तर पूर्व के दो राज्य, असम एवं अरुणाचल प्रदेश 804.10 किलोमीटर लंबी अंतर-राज्यीय सीमा साझा करते हैं. वर्ष 1987 में बनाया गया अरुणाचल प्रदेश दावा करता है कि पारंपरिक रूप से इसके निवासियों की कुछ भूमि असम को दे दी गई है. इस मुद्दे को लेकर एक त्रिपक्षीय समिति ने सिफारिश की थी कि कुछ क्षेत्रों को असम से अरुणाचल में मिला दिया जाए. लेकिन, इस मुद्दे को लेकर दोनों राज्य न्यायालय की शरण में हैं.
असम – मिजोरम
देश का उत्तर पूर्व के का राज्य मिजोरम एक अलग केंद्रशासित प्रदेश बनने से पहले असम का एक जिला हुआ करता था जो बाद में एक अलग राज्य बना. मिजोरम की सीमा असम के कछार, हैलाकांडी और करीमगंज जिलों से लगती है. समय के साथ सीमांकन को लेकर दोनों राज्यों की अलग-अलग धारणाएं बनने लगीं.
मिजोरम चाहता है कि यह बाहरी दखल से आदिवासियों की रक्षा के लिये वर्ष 1875 में अधिसूचित एक आंतरिक रेखा के साथ हो, जो मिज़ो को उनकी ऐतिहासिक मातृभूमि का हिस्सा लगता है, असम का मानना है कि सीमा का निर्धारण बाद में तैयार की गई जिला सीमाओं के अनुसार किया जाए.
असम – नागालैंड
1963 में नगालैंड के गठन के बाद से ही असम – नागालैंड के बीच सीमा को लेकर विवाद चल रहा है. दोनों राज्य असम के गोलाघाट जिले के मैदानी इलाकों के बगल में स्थित एक छोटे से गांव मेरापानी को लेकर अपना-अपना दावा जताते हैं.
असम – मेघालय
मेघालय ने करीब एक दर्जन क्षेत्रों की पहचान की है जिन पर राज्य की सीमाओं को लेकर असम के साथ उसका विवाद है.
हरियाणा – हिमाचल प्रदेश
देश के दो उत्तरी राज्यों का परवाणू क्षेत्र पर सीमा विवाद है, जो हरियाणा के पंचकुला जिले के समीप हिमाचल प्रदेश में स्थित है. हरियाणा ने इलाके की एक बड़ी ज़मीन पर अपना दावा किया है और हिमाचल प्रदेश पर हरियाणा के कुछ पहाड़ी इलाके पर कब्जा करने का आरोप लगाया है.
लद्दाख – हिमाचल प्रदेश
लद्दाख और हिमाचल दोनों प्रदेश सरचू क्षेत्र पर अपना का दावा करते हैं, जो लेह-मनाली राजमार्ग से यात्रा करने वालों के लिये एक प्रमुख पड़ाव बिंदु है. यह क्षेत्र हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति जिले और लद्दाख के लेह जिले के बीच स्थित है.