अटल बिहारी वाजपेयी की गिनती उन चुनिंदा नेताओं में की जाती है जो चाहे विपक्ष में रहे या फिर सरकार में लेकिन विरोधी नेताओं से भी उनके काफी बेहतर संबंध रहे। विपक्ष में रहते हुए भी उन्होंने जवाहर लाल नेहरु और इंदिरा गांधी की संसद में तारीफ की थी। नरसिम्हा राव से उनके रिश्ते अच्छे थे और राजीव गांधी की तारीफ करने में भी उन्होंने कभी कंजूसी नहीं की।

अटल 1952 से चुनाव लड़ते रहे हैं लेकिन कभी किसी पर कीचड़ नहीं उछाला। उन्हें राजनीति में भी मानवीय मूल्यों का पक्षधर माना जाता था। 1957 में जब अटल बिहारी वाजपेयी बलरामपुर से पहली बार लोकसभा सदस्‍य बनकर पहुंचे तो सदन में उनके भाषणों ने तत्‍कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को बेहद प्रभावित किया था। विदेश मामलों में वाजपेयी की जबर्दस्‍त पकड़ को देखकर पंडित नेहरू ने भी उनकी कई मौकों पर तारीफ की थी।

1977 में जब वाजपेयी विदेश मंत्री बनने के बाद कार्यभार संभालने के लिए साउथ ब्‍लॉक के अपने दफ्तर पहुंचे तो उन्‍होंने गौर किया कि वहां पर लगी पंडित नेहरू की तस्‍वीर गायब है। उन्‍होंने तुरंत अपने सेकेट्री से इस संबंध में पूछा। पता लगा कि कुछ अधिकारियों ने जानबूझकर वह तस्‍वीर वहां से हटा दी थी। वो शायद इसलिए क्‍योंकि पंडित नेहरू विरोधी दल के नेता थे। लेकिन वाजपेयी ने आदेश देते हुए कहा कि उस तस्‍वीर को फिर से वहीं लगा दिया जाए।

ये किस्सा 1971 का है जब भारत-पाकिस्तान का युद्ध ख़त्म ही हुआ था और बांग्लादेश के रूप में एक नया राष्ट्र बना था। इस दौरान अटल विपक्ष के नेता थे और इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री। अटल ने विपक्ष के नेता के तौर पर एक कदम आगे जाते हुए इंदिरा को ‘दुर्गा’ करार दिया था।

1987 में अटल बिहारी वाजपेयी किडनी की समस्‍या से जूझ रहे थे। हालांकि आर्थिक तंगी के चलते अमेरिका जाकर इलाज कराना उनके लिए संभव नहीं था। हुआ यूं कि तत्कालीन पीएम राजीव गांधी को किसी ने अटल की इस समस्या की सूचना दे दी। राजीव ने तुरंत अटल को बुलावा भेजकर अपने ऑफिस में बुलाया और कहा कि वे उन्हे संयुक्‍त राष्‍ट्र में न्‍यूयॉर्क जाने वाले भारत के प्रतिनिधिमंडल में शामिल कर रहे हैं और वे इस मौके का लाभ उठाकर वहां अपना इलाज भी करा सकते हैं।

साल 1991 में राजीव गांधी की हत्‍या के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने उनको याद करते हुए इस बात को पहली बार सार्वजनिक रूप से कहा था कि ‘मैं न्‍यूयॉर्क गया और इस वजह से आज जिंदा हूं।’ दरअसल न्‍यूयॉर्क से इलाज कराकर जब वह भारत लौटे तो इस घटना का दोनों ही नेताओं ने किसी से भी जिक्र नहीं किया। कहा जाता है कि इस संदर्भ में उन्‍होंने पोस्‍टकार्ड भेजकर राजीव गांधी के प्रति आभार प्रकट किया था।

साल 1993 में जिनेवा में मानवाधिकार सम्मेलन का आयोजन किया गया। तब तत्कालीन पीएम पीवी नरसिम्हा राव ने विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को संयुक्त राष्ट्र संघ में देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए भेज दिया था। नरसिम्हा राव के इस फैसले से देश ही नहीं दुनिया के नेता भी हैरान रह गए थे। दरअसल साल 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी और अटल विदेश मंत्री बने तो तब उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण दिया था। ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी अंतरराष्ट्रीय मंच से हिंदी में भाषण दिया गया हो, नरसिम्हा राव, अटल की इस पहल से खासा प्रभावित हुए थे और उन्होंने ये फैसला लेकर सबको चौंका दिया।

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह को राजनीति में लाने का श्रेय भले पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव को जाता है, लेकिन उन्हें राजनीति का माहिर खिलाड़ी बनाने में अटल बिहारी वाजपेयी का अहम  योगदान माना जाता है। नरसिम्हा राव कैबिनेट में वित्त मंत्री रहे मनमोहन सिंह को तब विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी की ओर से काफी सियासी प्रहार झेलने पड़ते थे। एक वक्त तो नौबत ऐसी आ गई कि मनमोहन सिंह ने नाराज़ होकर वित्त मंत्री पद से इस्तीफे तक का इरादा कर लिया था।

हालांकि तब नरसिंह राव खुद वाजपेयी के पास पहुंचे और नाराज़ मनमोहन से मिलकर उन्हें समझाने का आग्रह किया। अटल भी मनमोहन सिंह के पास गए और उन्हें समझाया कि इन आलोचना को खुद पर न लें, वह तो बस विपक्षी नेता होने के नाते सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हैं।

ब्यूरो रिपोर्ट, एपीएन

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