चुनाव आते हैं, चुनाव जाते हैं लेकिन जनता वहीं की वहीं खड़ी रह जाती है, क्या इसका मतलब यह है कि जनता की जरुरत उस समय में होती है जब उनसे वोट चाहिए हो, चुनावों के बाद जब विकास की बात आती है तब जनता की न तो कोई सोचता और न ही कोई सुनता है। या यूं कहें कि सत्ता किसी की भी हो, हालत एक जैसी ही रहती है। ये तो थी विकास और जनता की बात, अब बात आती है कि सत्ता में नेता आते कैसे हैं? क्या उन्हें बाहुबलियों की जरुरत पड़ती है? अगर ऐसा नहीं है तो क्यों सत्ता में आज बाहुबलियों का बोलबाला है?सत्ता को चलाने के लिए लोकतंत्र और राजतंत्र के साथ -साथ नौकरशाही की भी जरुरत पड़ती है। बात भी सही है, सबसे पहले आती है जान-माल की सुरक्षा। कानून व्यवस्था सही होगी, लोग सुरक्षित होगें तभी तो किसी का विकास होगा। लेकिन क्या सत्ता और नौकरशाह की सांठपाठ में फंसा है विकास? सारी ही बातें एक दूसरे से जुड़ी हुई है प्रशासनिक विफलता के कारण माफिया फलते- फूलते हैं? यूपी में राजकाज को कितनी चुनौतियां हैं? सवाल तो बहुत है, लेकिन जवाब ?
एपीएन के स्टूडियो में इन्हीं तमाम सवालों का जवाब तलाशने के लिए खास शो मुद्दा में बेहद अनुभवी लोगों को चर्चा में शामिल किया गया। जिनमें रविंद्र माथुर (पूर्व प्रमुख सचिव,यूपी), इंद्रजीत बधवार (एडिटर इन चीफ इंडिया लीगल) मंतोष शर्मा (सलाहकार, एपीएन), एसपी सिंह (पूर्व आईएएस), आनंद लाल बनर्जी (पूर्व डीजीपी) शामिल थे। शो का संचालन किया एंकर अनंत त्यागी ने।
रविंद्र माथुर ने कहा कि परम्परागत भूमिका को मद्देनजर रखते हुए देखा जाए तो पहले राजनीतिक तंत्र नीति निर्धारित करते थे और ब्यूरोक्रैसी उसको लागू करती थी लेकिन पिछले कुछ दशकों में काफी बदलाव आए हैं, ब्यूरोक्रैसी का नीति निर्धारण में रोल बढ़ गया है। नीतियां तो सही बनती हैं,मगर एग्जिक्यूशन में कमी रह जाती है। ज्यादातर राजनेता माफिया के बिना चुनाव नहीं लड़ते और अब ये माफिया खुद चुनाव लड़ने लगे हैं। अगर ब्यूरोक्रैसी, राजनीति में आती है तो हर्ज ही क्या है?
इंद्रजीत बधवार ने कहा कि ब्यूरोक्रैसी पर प्रशासन का केंद्र आधारित है। वह गवर्नेंस को क्नटिन्यूटि देता है ताकि अराजकता न बढ़े। सत्ता अब एक बिजनेस बन गई है। इसमें ज्यादातार बाहुबली शामिल हैं। अगर आंकड़ों को देखा जाए तो ज्यादातर ऐसे लोग शामिल हैं जिनमें आपराधिक मामले दर्ज हैं। विकास के लिए अगर पैसा आता है तो इन्हीं बाहुबलियों के पास जाता है। बाहुबलियों अवैध चीजों को प्रोटक्ट करेंगे। अब तो बिना पैसों के एफआईआर भी दर्ज नहीं होती।
मंतोष शर्मा ने माफियों की जरुरत क्यों पड़ती है,बात को बताते हुए कहा कि जब उन्हें दबाव बनाना हो,किसी काम को हल कराना हो, तब वो माफिया लोगों के पास जाते हैं,अगर मामले सरल रुप से समझ लें नेता, तो माफिया की जरुरत नहीं होगी। कमजोर गवर्नेंस की वजह से माफिया को बढ़ावा मिलता है।
एसपी सिंह ने कहा कि ब्यूरोक्रैसी का रोल एग्जिक्यूशन का है। राज्य का कर्तव्य सबसे पहले जान –माल की सुरक्षा का है। कानून-व्यवस्था सर्वोपरि है। पॉलिटिक्स में व्यवसायिकता आने की जरुरत है। नेता लोग माफिया को टिकट देने पर मजबूर हो जाते हैं क्योंकि पता है कि वो ही जीतेंगे। पॉलिटिक्स में सच्चे मन से समाज सेवा करने वाले लोगों के आने की जरुरत है।
आनंद लाल बनर्जी ने कहा कि जगह जगह माफिया का विकास हो रहा है। कहीं सम्पत्ति पर कब्जा करना हो, तो जरुरत पड़ती है लैंड माफिया की। कोई शिकायत नहीं करता, उनका सरंक्षण किया जाता है, इसीलिए माफिया पनपते हैं।